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Oct 3, 2023 6:31 am
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बिहार की राजनीति में क्या हैं मांझी के मायने!

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बिहार की राजनीति में क्या हैं मांझी के मायने!
पटना। बिहार की राजधानी पटना से उत्तर में स्थित श्रीपालपुर गांव के लोग जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद से हटा दिए जाने से दुखी और आक्रोशित हैं। गांव के सुमंत रविदास नाराजगी जताते हुए कहते हैं, "जीतन मांझी को सीएम नीतीश कुमार ने बनवाया, लेकिन उनको हटवाया काहे! बार-बार बेइज्जत काहे करवाए! जब हटाने था त सीएम काहे बनाए!" जवाब भी खुद ही देते हैं, "हरिजनवा के पंखा-बिजली माफ करना उनको खराब लगा का! वे मांझी जिंदाबाद कहते हैं और चले जाते हैं। इसी प्रकार परशुराम राम कहते हैं, "उनके कार्यकाल के दौरान निचले तबके को सुविधा मिली।
सरकार त ठीके चला रहे थे, फैसला भी व्यावहारिके था. लेकिन, बरबस हटा दिए।" इन लोगों से बातचीत करने से लगता है कि मांझी भले ही सत्ता से बेदखल कर दिए गए हों, लेकिन दलितों-महादलितों और गरीबों में उन्हें पसंद करने वाले लोग मौजूद हैं। लेकिन सत्तारूढ जनता दल यूनाइटेड के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह इस बात से सहमत नहीं लगे। उनके अनुसार, जीतनराम मांझी को लेकर एक भ्रम था। वशिष्ठ नारायण सिंह बताते हैं कि मांझी के एक दर्जन सिपहसलार ऎसे हैं, जिन्होंने विश्वासमत के दौरान अपनी सदस्यता बचाने के लिए पार्टी लाइन पर वोट किया। दलितों के लगभग 16 प्रतिशत एकमुश्त वोट पर जदयू की नजर को ध्यान में रखकर मांझी को नीतीश कुमार का उत्तराधिकारी बनाया गया था। शोध संस्थान एशियन डेवेलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट के सदस्य-सचिव प्रोफेसर शैबाल गुप्ता कहते हैं, "मांझी के चलते बिहार की राजनीति में दलित मुद्दा आगे नहीं आया, बल्कि मुख्यमंत्री नीतीश के द्वारा महादलित एजेंडे को सशक्त ढंग से रखने का परिणाम जीतन राम मांझी हैं। अब शासन तंत्र के बिना वे दलित एजेंडा को आगे रखने में कितना सफल होंगे यह देखना होगा।
सत्तारूढ जदयू को आगामी चुनाव में इससे नुकसान होने की संभावना है। महादलितों की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए ही शायद जदयू के नए सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता भी उनकी घर वापसी की बात बार-बार कह रहे हैं। पूर्व सांसद शिवानंद तिवारी के अनुसार, जीतनराम मांझी की छवि उत्तर भारत के एक स्वाभिमानी दलित नेता के रूप में उभरी है। इनकी लोकप्रियता का खामियाजा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आगामी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड सकता है।
पूर्व मुख्यमंत्री मांझी ने बिहार के दलितों को नया राजनीतिक तेवर देने के लिए 28 फरवरी को हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) का गठन कर अपने इरादे साफ कर दिए हैं। उनका मोर्चा कब पार्टी में तब्दील होगा और किसके साथ गठबंधन करेगा, यह अभी तय नहीं है। लेकिन इतना तय है कि अगले विधान सभा चुनाव में महादलित बिहार की राजनीति में नए रंग जरूर भरेंगे।

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