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बिहार: भाजपा के लिए नीतीश-लालू की तोड होंगे महादलित, लुभाने में जुटी

नई दिल्ली। बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के संभावित गठबंधन को चुनौती देने के लिए कमर कस ली है। नीतीश-लालू के बीच गठबंधन होने की स्थिति में ओबीसी, महादलित और मुस्लिम वोटों का धुव्रीकरण बीजेपी की समस्या बन सकती है और इस समीकरण का तोड उसने दलित और महादलितों के रूप में निकाल लिया है। इसी के मद्देनजर उसने इन जातियों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश में लग गई है।
भाजपा की रणनीति इन चुनावों में सवर्ण वोट बैंक के साथ दलित और महादलितों को अपनी तरफ मिलाने की है, जिससे एकजुट नीतीश कुमार और लालू यादव के वोट बैंक की ताकत से निपटा जा सके। भाजपा 14 अप्रैल को भीमराव आंबेडकर के जन्म दिवस के मौके पर एक लाख बूथ लेवल भाजपा कार्यकर्ताओं का सम्मेलन करने जा रही है ताकि राज्य के दलितों को अपने पक्ष में गोलबंद किया जा सके।
बिहार में दलित वोटरों की संख्या कुल वोटरों की करीब 20 फीसदी है। पटना के गांधी मैदान में होने वाले इस ऎतिहासिक सम्मेलन को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा कई और बडे नेता संबोधित करेंगे। भाजपा ने बिहार के 62,000 पोलिंग बूथों को ध्यान में रखते हुए हर बूथ के लिए दो इंचार्ज बनाए हैं। पार्टी ने पटना की रैली में इन लोगों को भी बुलाया है। भाजपा के केंद्रीय संगठन से जुडे एक नेता ने बताया, ट्रेनिंग सेशन के अलावा इस बैठक में पार्टी के बडे नेता भाजपा की कैंपेन रणनीति और चुनाव के दौरान उठाए जाने वाले मुद्दों के बारे में बात करेंगे और वोटरों को लुभाने के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।
इसके अलावा इसमें चुनाव के दिन वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाने के बारे में भी निर्देश दिए जाएंगे। पटना के गांधी मैदान में 27 अक्टूबर 2013 को नरेंद्र मोदी की रैली से पहले विस्फोट हुआ था। इन बातों को ध्यान में रखते हुए रैली के लिए स्थान और तारीख का चुनाव किया गया है। रैली में शामिल होने वाले ज्यादातर वक्ता अपने भाषणों में 2013 में हुई घटना का जिR करेंगे। बिहार में इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार भाजपा के एक नेता ने बताया कि दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए पार्टी अन्य कार्यRमों की रूपरेखा तैयार करने में जुटी हुई है। नीतीश कुमार और लालू प्रासद के साथ मजबूती से खडे ओबीसी-मुस्लिम वोट बैंक की ताकत को देखते हुए भाजपा को लगता है कि केवल सवर्ण वोट बैंक की मदद से इन्हें नहीं हराया जा सकता, बिहार में सरकार बनाने के लिए उसे सवर्ण वोट बैंक से इतर भी कहीं देखना होगा। भाजपा लंबे समय बाद बिहार में जदयू के बिना चुनाव लडने जा रही है।
नीतीश कुमार की वजह से भाजपा को कुर्मी और अन्य ओबीसी समुदायों का जबकि कुछ चुनिंदा सीटों पर उसे पसमांदा मुसलमानों का भी सपोर्ट मिलता था। राजग से नीतीश कुमार के बाहर निकलने के बाद भाजपा अब ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहर और वैश्य वोट बैंक के भरोसे है। भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है, जो अब महादलित मुसहर जाति के प्रतिनिधि बन चुके हैं।
भाजपा की रणनीति इन चुनावों में सवर्ण वोट बैंक के साथ दलित और महादलितों को अपनी तरफ मिलाने की है, जिससे एकजुट नीतीश कुमार और लालू यादव के वोट बैंक की ताकत से निपटा जा सके। भाजपा 14 अप्रैल को भीमराव आंबेडकर के जन्म दिवस के मौके पर एक लाख बूथ लेवल भाजपा कार्यकर्ताओं का सम्मेलन करने जा रही है ताकि राज्य के दलितों को अपने पक्ष में गोलबंद किया जा सके।
बिहार में दलित वोटरों की संख्या कुल वोटरों की करीब 20 फीसदी है। पटना के गांधी मैदान में होने वाले इस ऎतिहासिक सम्मेलन को पार्टी अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा कई और बडे नेता संबोधित करेंगे। भाजपा ने बिहार के 62,000 पोलिंग बूथों को ध्यान में रखते हुए हर बूथ के लिए दो इंचार्ज बनाए हैं। पार्टी ने पटना की रैली में इन लोगों को भी बुलाया है। भाजपा के केंद्रीय संगठन से जुडे एक नेता ने बताया, ट्रेनिंग सेशन के अलावा इस बैठक में पार्टी के बडे नेता भाजपा की कैंपेन रणनीति और चुनाव के दौरान उठाए जाने वाले मुद्दों के बारे में बात करेंगे और वोटरों को लुभाने के बारे में दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।
इसके अलावा इसमें चुनाव के दिन वोटरों को पोलिंग बूथ तक लाने के बारे में भी निर्देश दिए जाएंगे। पटना के गांधी मैदान में 27 अक्टूबर 2013 को नरेंद्र मोदी की रैली से पहले विस्फोट हुआ था। इन बातों को ध्यान में रखते हुए रैली के लिए स्थान और तारीख का चुनाव किया गया है। रैली में शामिल होने वाले ज्यादातर वक्ता अपने भाषणों में 2013 में हुई घटना का जिR करेंगे। बिहार में इस साल अक्टूबर में विधानसभा चुनाव होने हैं। बिहार भाजपा के एक नेता ने बताया कि दलित मतदाताओं को लुभाने के लिए पार्टी अन्य कार्यRमों की रूपरेखा तैयार करने में जुटी हुई है। नीतीश कुमार और लालू प्रासद के साथ मजबूती से खडे ओबीसी-मुस्लिम वोट बैंक की ताकत को देखते हुए भाजपा को लगता है कि केवल सवर्ण वोट बैंक की मदद से इन्हें नहीं हराया जा सकता, बिहार में सरकार बनाने के लिए उसे सवर्ण वोट बैंक से इतर भी कहीं देखना होगा। भाजपा लंबे समय बाद बिहार में जदयू के बिना चुनाव लडने जा रही है।
नीतीश कुमार की वजह से भाजपा को कुर्मी और अन्य ओबीसी समुदायों का जबकि कुछ चुनिंदा सीटों पर उसे पसमांदा मुसलमानों का भी सपोर्ट मिलता था। राजग से नीतीश कुमार के बाहर निकलने के बाद भाजपा अब ब्राह्मण, राजपूत, भूमिहर और वैश्य वोट बैंक के भरोसे है। भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही है, जो अब महादलित मुसहर जाति के प्रतिनिधि बन चुके हैं।
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