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103 साल बाद भी महोबा के गांधी आश्रम में महिलाएं चला रही हैं चरखा

केंद्र के व्यवस्थापक धनप्रसाद विश्कर्मा ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि इन चरखों को मुख्य रूप से महिलाएं चलाती हैं, जो घर के काम से खाली होकर श्री गांधी आश्रम उत्पत्ति केंद्र में आती हैं और सूत कातकर पैसे कमाती हैं। पहले ऊन लाया जाता है, जिससे चरखे से धागा बनाया जाता है और फिर बुनकरों को दिया जाता है। बुनकर हथकरघा से कपड़ा तैयार करते हैं। अंत में, कपड़े की धुलाई करके उन्हें बिक्री के लिए दुकानों पर भेजा जाता है। इस प्रकार, यह केंद्र आज भी जैतपुर के कई परिवारों, विशेषकर महिलाओं, की आय का एक महत्वपूर्ण ज़रिया बना हुआ है, जो गांधी के स्वदेशी और स्वावलंबन के विचार को साकार कर रहा है।
बुनकरों ने आईएएनएस से बात करते हुए बताया कि हम चरखा चलाकर सूत काटते है इससे जो पैसा मिलता है उससे हम लोग अपने घर का खर्च चलाते है, 103 साल बाद भी यहां चरखा से सूत काटा जाता है।
--आईएएनएस
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