शरीफ चाचा के लिए बेहद खास है पद्मश्री पुरस्कार

पेशे से साइकिल मिस्त्री मोहम्मद शरीफ हर रोज लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने के लिए कब्रिस्तान और श्मशान का चक्कर लगाया करते हैं।
अगर कभी वह वहां नहीं पहुंच पाते तो श्मशान स्थल या कब्रिस्तान के निगरानीकर्ता लावारिश लाश होने पर उन्हें सूचित कर देते हैं।
उन्होंने सिर्फ मुसलमानों व हिंदुओं की लाशों को दफनाया व दाह-संस्कार ही नहीं किया है, बल्कि सिखों व ईसाइयों के भी अंतिम संस्कार किए हैं।
शरीफ के अनुसार, उन्होंने अपने बेटे को 28 साल पहले खो दिया था और उसका शव रेल पटरी पर मिला था।
शरीफ का केमिस्ट बेटा किसी काम से सुल्तानपुर गया था और वहीं से लापता हो गया था। यह वही समय था, जब बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि मुद्दे को लेकर सांप्रदायिक तनाव अपने चरम पर था। बाद में पता चला कि उनका बेटा उसी सांप्रदायिक दंगे की भेंट चढ़ गया।
यह ऐसी हृदयविदारक घटना थी, जिसने मोहम्मद शरीफ के जीवन को हमेशा के लिए बदल दिया। उनके बेटे के शव को लावारिस समझा गया। तब से उन्होंने अपने जिले में लावारिस शवों के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी उठा ली और धर्म की परवाह किए बिना हर लावारिस लाश का अंतिम संस्कार करने का फैसला किया।
शरीफ कहते हैं कि उन्हें कई बार आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा, लेकिन चंदा जुटाकर या दान में मिले पैसों से यह पुनीत काम करना जारी रखा। (आईएएनएस)
ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
Advertisement
Advertisement
अयोध्या
उत्तर प्रदेश से
सर्वाधिक पढ़ी गई
Advertisement
Traffic
Features
