"भूल और क्षमा: क्या हर गलती माफ़ की जा सकती है?"

आधुनिक जीवन की आपाधापी में हम अक्सर यह कहते सुनते हैं – "इस इंसान की भूल क्षमा करने योग्य नहीं है।" यह वाक्य सुनते ही मन ठिठक जाता है। प्रश्न उठता है — आखिर ऐसी कौन सी भूल है, जिसे क्षमा नहीं किया जा सकता? क्या वास्तव में कोई भी भूल इतनी बड़ी हो सकती है कि वह "अक्षम्य" कहलाए?
हम सभी इंसान हैं, और इंसान से भूल होना स्वाभाविक है। परंतु जब हम भूल और अपराध के बीच की रेखा को मिटा देते हैं, तब वही स्वाभाविकता खतरनाक बन जाती है। यह भूलना कि हम भी मानव हैं — त्रुटिपूर्ण, लेकिन सुधरने की क्षमता से युक्त — यही सबसे बड़ी विडंबना है।
ईश्वर ने मनुष्य को जो सबसे अनमोल तोहफ़ा दिया है, वह है विवेक। और इसी विवेक का प्रयोग करना ही हमें इंसान और जानवर में अंतर स्थापित करने वाला बनाता है। भूलें होंगी, परंतु उनके पीछे की मंशा, भाव और परिणाम — ये सभी यह तय करते हैं कि वह क्षमा के योग्य है या नहीं।
भूल और अक्षम्यता के बीच की रेखा
"अक्षम्य" — यह शब्द जितना कठोर है, उतना ही गहराई लिए हुए भी। हर भूल अक्षम्य नहीं होती। हर गलती को अपराध की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता। दायरा मायने रखता है — यदि वह भूल किसी को चोट पहुँचाने की मंशा से नहीं की गई, यदि वह किसी की आत्मा को कुचलने के लिए नहीं थी, तो वह क्षमा के योग्य है।
परंतु जब भूल की आड़ में बार-बार वही कृत्य दोहराया जाए, जब पश्चाताप केवल औपचारिकता बन जाए, तब वह क्षमा नहीं, प्रमाद कहलाता है।
रिश्तों में क्षमा — शक्ति या कमजोरी?
बहुत से लोग मानते हैं कि माफ़ कर देना कमजोरी है। पर वास्तव में, क्षमा करना साहस है — वह भी मानसिक साहस। यह दर्शाता है कि आप क्रोध, घृणा और प्रतिशोध जैसी भावनाओं से ऊपर उठ चुके हैं। यह कोई दिखावा नहीं होना चाहिए, न ही समाज को दिखाने का अभिनय। सच्ची क्षमा तब होती है जब पीठ पीछे भी आप वही शांति महसूस करें जो सामने दर्शाई।
"क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को अपराध" — इस कहावत की गहराई को समझिए। "बड़न" का तात्पर्य उम्र से नहीं, मनोबल और मानसिक परिपक्वता से है।
स्वयं को क्षमा करना भी सीखें
दूसरों की भूलों को माफ़ करना एक गुण है, परंतु स्वयं को क्षमा करना भी उतना ही आवश्यक है। अपने भीतर के अपराधबोध से बाहर निकलें, खुद से कहें — "हाँ, मुझसे गलती हुई। पर मैं उसे स्वीकार करता हूँ और अब आगे नहीं दोहराऊँगा।" यही आत्मशुद्धि की दिशा में पहला कदम है।
क्षमा केवल दूसरे के लिए नहीं, स्वयं की मानसिक शांति के लिए भी होती है। यह शांति आपको बाहरी दुनिया में नहीं, अपने भीतर मिलेगी — जहां कोई द्वंद्व नहीं, कोई बोझ नहीं।
" फॉरगेट टू फॉरगिव" के सिद्धांत में स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण व विचारों का मंथन करते हुए मनुष्य से परमहंस होने की शांतिपूर्ण यात्रा करें।
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