मध्यप्रदेश में राज परिवार का राजनीतिक एकीकरण, दादी से लेकर पोते तक को भायी भाजपा!

अब ज्योतिरादित्य अपनी दादी की सपनों को साकार करते दिख रहे हैं। ग्वालियर की राजमाता विजया राजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी। राजमाता गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं। लेकिन सिर्फ 10 साल में ही उनका कांग्रेस से मोहभंग हो गया। सन् 1967 में विजया राजे जनसंघ में आ गईं। विजया राजे सिंधिया की बदौलत ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ और 1971 में इंदिरा गांधी की लहर के बावजूद जनसंघ तीन सीटें जीतने में कामयाब रहा।
खुद विजया राजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और विजय राजे सिंधिया के बेटे और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद चुने गए। गुना संसदीय सीट पर सिंधिया परिवार का कब्जा लंबे समय तक रहा। माधवराव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में सांसद चुने गए, लेकिन वे बहुत दिनों तक जनसंघ में नहीं रुके। सन् 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयाराजे सिंधिया से अलग हो गए।
1980 में माधवराव सिंधिया ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीतकर केंद्रीय मंत्री भी बने। दूसरी तरफ, विजया राजे सिंधिया की दोनों बेटियां वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे भी भाजपा में शामिल हो गईं। कहा जाता है कि भाजपा को खड़ा करने में राजमाता ने भरपूर सहयोग किया। उनके योगदान की वजह से 1984 में विजया राजे सिंधिया की बेटी वसुंधरा राजे को भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल किया गया था। वे राजस्थान की मुख्यमंत्री भी बन चुकी हैं। उनके बेटे दुष्यंत भी राजस्थान की झालवाड़ सीट से भाजपा सांसद हैं।
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