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पहले आप अभिनेता होते थे, अब वस्तु हैं : अरशद
मुंबई। जब उन्होंने आज से लगभग 30 साल पहले बॉलीवुड में अपने सफर की शुरुआत की थी, तब एक अभिनेता को बस अभिनय करने की जरूरत थी, हालांकि अब परिदृश्य कुछ और है। अरशद वारसी का मानना है कि अभिनेता अब बस महज 'अभिनेता' नहीं रहे, वे एक 'वस्तु' हैं। एक 'उत्पाद' जिसे बेचे जाने की जरूरत है।
वारसी ने साल 1987 में 'काश' में महेश भट्ट के सहायक निर्देशक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। साल 1996 में फिल्म 'तेरे मेरे सपने' के साथ बतौर अभिनेता अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करने से पहले उन्होंने एक कोरियोग्राफर के तौर पर भी काम किया।
अरशद ने आईएएनएस को बताया, "मुझे लगता है कि जब मैंने अपने करियर की शुरुआत की थी, चीजें सहज-सरल थीं, लोग भी उतने जटिल नहीं थे, बोझ भी कम था, लेकिन अब यह थोड़ा जटिल हो गया है। पहले आप एक अभिनेता थे, अब एक उत्पाद हैं, जिसे बेचे जाने की आवश्यकता है, तो ऐसे में आपको एक निश्चित तरीके से पहनावे, चलने, बात करने की जरूरत है। इसके साथ ही कुछ निश्चित चीजों को करने की भी आवश्यकता है और आपको लगभग हर वक्त या अक्सर या जितना हो सके सूर्खियों में रहना होगा। पहले आपको बस अभिनय करना होता था।"
अरशद का यह भी कहना है कि आज के समय के फिल्मों की किस्मत ओपेनिंग वीकेंड में बॉक्स ऑफिस नंबर्स द्वारा तय होती है, जबकि पहले ऐसा नहीं था।
उन्होंने कहा, "पूरी चीज शुक्रवार, शनिवार और रविवार के बीच टिकी हुई है, ये बेहद दुखद है। काफी सारी फिल्मों को वक्त की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, अगर 'शोले' आज रिलीज हुई होती, तो यह अच्छा प्रदर्शन नहीं करती क्योंकि रिलीज के वक्त इसने उतना अच्छा नहीं किया था। लोगों ने इसे मौका दिया, उन्होंने जाकर इसे देखा और माना कि यह एक बेहतरीन फिल्म है। यह दुख की बात है कि अब ये सुविधा उपलब्ध नहीं है। कोई सिनेमा की गुणवत्ता के लिए इसे नहीं बनाता, फिल्में अब कमाई के लिए बनाई जाती है, तो आप ऐसी चीजें फिल्मों में डालते हैं जो उन तीन दिनों लोगों को रोमांचित करे।"
वारसी ने साल 1987 में 'काश' में महेश भट्ट के सहायक निर्देशक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। साल 1996 में फिल्म 'तेरे मेरे सपने' के साथ बतौर अभिनेता अपने फिल्मी सफर की शुरुआत करने से पहले उन्होंने एक कोरियोग्राफर के तौर पर भी काम किया।
अरशद ने आईएएनएस को बताया, "मुझे लगता है कि जब मैंने अपने करियर की शुरुआत की थी, चीजें सहज-सरल थीं, लोग भी उतने जटिल नहीं थे, बोझ भी कम था, लेकिन अब यह थोड़ा जटिल हो गया है। पहले आप एक अभिनेता थे, अब एक उत्पाद हैं, जिसे बेचे जाने की आवश्यकता है, तो ऐसे में आपको एक निश्चित तरीके से पहनावे, चलने, बात करने की जरूरत है। इसके साथ ही कुछ निश्चित चीजों को करने की भी आवश्यकता है और आपको लगभग हर वक्त या अक्सर या जितना हो सके सूर्खियों में रहना होगा। पहले आपको बस अभिनय करना होता था।"
अरशद का यह भी कहना है कि आज के समय के फिल्मों की किस्मत ओपेनिंग वीकेंड में बॉक्स ऑफिस नंबर्स द्वारा तय होती है, जबकि पहले ऐसा नहीं था।
उन्होंने कहा, "पूरी चीज शुक्रवार, शनिवार और रविवार के बीच टिकी हुई है, ये बेहद दुखद है। काफी सारी फिल्मों को वक्त की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए, अगर 'शोले' आज रिलीज हुई होती, तो यह अच्छा प्रदर्शन नहीं करती क्योंकि रिलीज के वक्त इसने उतना अच्छा नहीं किया था। लोगों ने इसे मौका दिया, उन्होंने जाकर इसे देखा और माना कि यह एक बेहतरीन फिल्म है। यह दुख की बात है कि अब ये सुविधा उपलब्ध नहीं है। कोई सिनेमा की गुणवत्ता के लिए इसे नहीं बनाता, फिल्में अब कमाई के लिए बनाई जाती है, तो आप ऐसी चीजें फिल्मों में डालते हैं जो उन तीन दिनों लोगों को रोमांचित करे।"
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