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कहानी करप्शन की-4 : डॉ. प्रमिला जैन को संतुष्ट करने लिए स्वर्ण विहार में आवंटित कर दीं 6 दुकानें
- गिरिराज अग्रवाल-
जयपुर। इस कहानी के तीसरे भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह जेडीए के अधिकारियों ने डॉ. प्रमिला जैन को बिना भू-उपयोग परिवर्तन कराए काटी गई स्कीम बालाजी विहार आवासीय/फार्म हाउस में खरीदे 1200 वर्गमीटर भूखंड के सेक्टर रोड में आने पर बतौर मुआवजा 25 प्रतिशत 300 वर्गमीटर व्यावसायिक जमीन देने की की फाइल एक दशक बाद चलाई और भूखंड आवंटित कर दिए। उसे पहले पार्श्वनाथ नारायण विहार, फिर मौजी विहार कॉलोनी में व्यावसायिक भूखंड आवंटित किए गए। इनमें तमाम तरह की खामियों पर पर्दा डालते हुए उसे लाखों रुपए का फायदा पहुंचाया गया। यहां भी जब वह संतुष्ट नहीं हुई तो उसे स्वर्ण विहार में 30 मीटर चौड़ी सड़क पर 6 शॉप अलॉट कर दी गईं। किसी एक व्यक्ति को इस स्तर पर जाकर फायदा पहुंचाने का संभवतः यह पहला मामला है। अब आगे-
जेडीए अफसरों की बेईमानीपूर्ण कार्य़वाही यहीं बंद नहीं हुई। बल्कि प्रमिला जैन को नाजायज फायदा पहुंचाने का एक और तरीका ईजाद किया गया। इसके तहत पार्श्वनाथ नारायण विहार स्कीम में आवंटित 3 भूखंडों के कुल क्षेत्रफल 337.5 वर्गमीटर का मूल्यांकन डीएलसी दर 21,870 रुपए से किया गया। जबकि 3 भूखंडों के आवंटन के समय उससे अतिरिक्त भूमि 37.5 वर्गमीटर की कीमत 20,000 रुपए प्रति वर्गमीटर से जमा करवाई गई थी।
रोचक यह है कि तत्कालीन AC (LPC) द्वारा इस भ्रष्ट कार्य़वाही को यह कहते हुए रोकने का प्रयास किया गया कि जब प्रार्थिया का पूर्व में भूखड जब 30 मीटर चौड़ी सड़क पर था तो अब उसे 60 मीटर चौड़ी सड़क पर आवंटन क्यों? उन्होंने समान चौड़ाई वाली सड़क पर प्लॉट प्रस्तावित करने की राय दी। लेकिन, जेडीए के बेईमान अफसरों ने इस ईमानदार कोशिश का भी दुरुपयोग किया।
जेडीए अफसरों ने आगे बढ़कर अलॉट कीं दुकानेंः
अफसर जब किसी को फायदा पहुंचाने की हद पर आ जाएं तो नियम-कायदों और ओपनियन को किस तरह तोड़-मरोड़कर पेश किया जाता है, यह केस इसका ज्वलंत उदाहरण है। तत्कालीन AC (LPC) ने जब 30 मीटर के बजाय 60 मीटर चौड़ी सड़क पर भूखंड आवंटन पर सवाल उठाए तो जेडीए अफसरों ने इसका दुुरुपयोग करते हुए प्रमिला जैन को 30 मीटर की सड़क पर 300 वर्गमीटर भूखंड देने बजाय जेडीए की स्वर्ण विहार स्कीम में 40.50 वर्गमीटर वाली 9 दुकानें आवंटित करने की कार्यवाही शुरू कर दी। इन दुकानों का कुल क्षेत्रफल 364.5 वर्गमीटर बनता है जबकि उसे केवल 300 वर्गमीटर जमीन ही देनी थी। यानि पार्श्वनारायण विहार स्कीम में आवंटित जमीन 337.5 वमी से भी 27 वमी ज्यादा। यह कार्य़वाही तब शुरू हुई जब प्रमिला जैन के पति प्रदीप जैन जोन-8 के उपायुक्त से खुद मिले थे।
दुकानों की रेट तय करने के लिए फिर अपनाई पुरानी पेंतरेबाजीः
दरअसल, प्रमिला जैन को नियमानुसार उसकी समर्पित भूमि के मूल्य के बराबर की ही विकसित जमीन अलॉट की जानी थी। स्वर्ण विहार में अलॉट की गई दुकानों की रेट तय करने के लिए जेडीए अफसरों ने फिर पुरानी पेंतरेबाजी यानि डीएलसी रेट को ही आधार बनाया। जबकि यह जानने का भी प्रयास नहीं किया कि यहां दुकानों की नीलामी किस रेट में हुई है अथवा नहीं हुई।
रोचक यह है कि स्वर्ण विहार में दुकानों की डीएलसी रेट 21870 प्रति वर्गमीटर दर्शाई जबकि मौजी विहार स्कीम की डीएलसी रेट 22680 रुपए प्रति वर्गमीटर दर्शाई गई ताकि प्रमिला जैन को ज्यादा पैसा नहीं देना पड़े।
प्रमिला जैन की समर्पित जमीन के भाव में बढ़ा दिए 14.09 लाख रुपएः
जेडीए अफसरों द्वारा इस महिला को फायदा पहुंचाने की हद देखिए। स्वर्ण विहार स्कीम में पहले तो बिना एलपीसी अनुमोदन के जोन-8 के उपायुक्त ने 9 दुकानों के आवंटन का प्रस्ताव भिजवाया। इसमें प्रमिला जैन की समर्पित भूमि की कीमत 46.97 लाख बताई गई। जबकि इससे पहले फाइल पर उसी जमीन की कीमत 32.87 लाख रुपए बताई गई थी। यानि प्रमिला जैन की समर्पित जमीन के मूल्यांकन में ही 14.09 लाख रुपए बढ़ा दिए गए। आखिरकार एलपीसी की स्वीकृति के बिना प्रमिला जैन को स्वर्ण विहार स्कीम में 6 दुकानें आवंटित कर दी गईं। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से उसके द्वारा पूर्व में जमा कराई गई राशि 10.03 लाख के अतिरिक्त और कोई पैसा जमा नहीं कराया गया।
प्रमिला जैन चाहती है कि जेडीए 6 नहीं बल्कि 9 दुकानें आवंटित करेः
जब जेडीए द्वारा स्वर्ण विहार स्कीम में 6 दुकानें आवंटित कर दी गईं तो प्रमिला जैन इससे संतुष्ट नहीं हुई। उसकी ओर से फिर जोन-8 में एक प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया कि उसे स्वर्ण विहार स्कीम में 6 के बजाय 9 दुकानें आवंटित की जाएं अथवा मौजी विहार स्कीम में पहले जो भूखंड एससी-6 दिया गया था, वही आवंटित किया जाए। इस पर जोन-8 की ओर से प्रमिला जैन को सबसे पहले पार्श्व नारायण विहार में आवंटित किए गए 3 व्यावसायिक भूखंड 73, 74, 75 का कब्जा दिए जाने के लिए फाइल चलाई गई। जबकि इन भूखंडों की लीज डीड रजिस्टर्ड कराने के साथ ही प्रमिला जैन को पहले ही कब्जा दिया जा चुका था। जब यह फाइल विधि शाखा में परीक्षण के लिए गई तो पूरे मामले का खुलासा हुआ।
विधि शाखा ने की एसीबी से जांच कराए जाने की सिफारिशः
इस केस में खास बात यह है कि जेडीए की विधि शाखा ने पूरे मामले की पड़ताल के बाद जेडीए अफसरों द्वारा इस केस में भ्रष्ट आचरण अपनाते हुए जेडीए की बेशकीमती जमीन को खुर्दबुर्द करने की कोशिश माना है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 39 के तहत नोटशीट की एक-एक प्रति के साथ यह मामला विशिष्ट न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निरोधक मामलात) क्रम संख्या 1 जयपुर महानगर द्वितीय और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के महानिदेशक को तत्काल भिजवाए जाने की सिफारिश की है। अब देखना यह है कि जेडीए के ईमानदार अफसर इस केस को दबाते हैं या एसीबी से इसकी जांच करवाकर कार्यवाही करते हैं।
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