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यमुनानगर हादसा : एक परिवार के टूटने की कहानी और समाज के सामने खड़े सवाल

इन अधूरे सपनों की कहानी इस हादसे को और भी करुण बना देती है।
13 वर्षीय तन्मय, जिसने अपने माता-पिता और बहन को खो दिया, अब जीवन की सबसे कठिन जिम्मेदारियों के साथ खड़ा है। यह सवाल केवल उसके परिवार का नहीं, बल्कि समाज का भी है कि ऐसे बच्चों को कैसे सहारा और सुरक्षा दी जाए।
सड़क सुरक्षा पर गहरे सवाल
हादसे की प्रारंभिक जांच से सामने आया कि यह टक्कर तेज रफ्तार और ओवरटेकिंग के कारण हुई। भारत में हर साल लाखों लोग सड़क हादसों में अपनी जान गंवाते हैं।
सवाल यह है कि क्या हमारी सड़क सुरक्षा नीतियां पर्याप्त हैं? क्या लोग यातायात नियमों का पालन करने के प्रति सचेत हैं? क्या प्रशासन की जिम्मेदारी केवल हादसे के बाद रिपोर्ट दर्ज करने तक सीमित रह जानी चाहिए?
राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन के लिए यह हादसा चेतावनी है। हर बड़े हादसे के बाद कुछ दिन तक चर्चा होती है, जांच समितियां बनती हैं, लेकिन फिर सब भुला दिया जाता है। असल सुधार तभी संभव है जब सड़क सुरक्षा को राजनीतिक प्राथमिकता बनाया जाए।
इस हादसे ने दिखाया कि दुख में पूरा समाज साथ खड़ा होता है। लेकिन यह भी सच है कि सामुदायिक सहयोग केवल शोक-संवेदना तक सीमित नहीं होना चाहिए। समाज को ऐसे अनाथ हुए बच्चों की शिक्षा, पालन-पोषण और मानसिक सहारे की जिम्मेदारी भी उठानी होगी।
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