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देश में सिखों और मुस्लिमों सहित अल्पसंख्यक समुदायों की स्थिति बेहद दयनीय है : सिख चिंतक दया सिंह
बहुसंख्यक हिन्दू समाज और देश का संविधान उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में पूरी तरह से विफल रहे हैं। दु:ख तो इस बात का भी है कि सिखों व मुस्लिमों के खिलाफ कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूके और बाकी देशों में भी ऐसा माहौल सृजित कर दिया गया जिससे इन समुदायों के सामने सर्वाइवल का प्रश्न खड़ा हो गया। उन्होंने बताया कि इसे देखते हुए एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रस्ताव पारित करके यह तय किया गया कि इन हालातों का मुकाबला करने के लिए संयुक्त कोशिश की जाए और एक मंच की स्थापना हो जो अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के लिये संवाद की शुरुआत करें। यह भी देखने को मिल रहा है कि वैसे तो सिखों में जातिवाद नहीं है, परन्तु अब सिखों में भी एससी/एसटी के आरक्षण के कारण टकराव पैदा हो रहा है। उन्होंने कहा कि हिन्दुओं का तो आधार ही जातिवाद पर खड़ा है और अब जाति आधारित जनगणना को लेकर बंटेंगे तो कटेंगे जैसे जुमले घड़े जा रहे हैं। उनके मुताबिक सिख नेतृत्व तो पहले से ही यह संघर्ष करता रहा है कि संविधान के अनुच्छेद 25 से वह बाहर निकलना चाहता है क्योंकि उसे हिन्दू में वर्गीकृत कर दिया गया हुआ है। उनके लिए संविधान में कोई विशेष प्रावधान हो जिससे सिख, मुस्लिम और ईसाई भी हिन्दू के बराबर का हकदार हो सकें।
दया सिंह ने कहा कि आरएसएस उसी प्रकार से सिखों को पंजाब में नेतृत्व विहीन करने के लिए प्रयासरत है, जिस प्रकार से कॉंग्रेस मुक्त भारत के लिए। उन्होंने कहा कि शिरोमणि अकाली दल, जिसका 100 वर्ष का सुनहरी इतिहास रहा है व जिसने आजादी के संघर्ष में अहम रोल अदा किया हो, वो इस हालात से रूबरू हो जाये कि आने वाले उपचुनावों में उमीदवार ही न खड़े कर पाये, इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी? उनके साथ समाजसेवी कर्नल (सेनि) जीपीएस विर्क भी मौजूद थे।
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