#SupremeCourt नेपाल के शब्दकोश पर निर्भर नहीं है, ओम का अस्तित्व!

नेपाल में ओम को लेकर एक विचित्र मामला सामने आया है, नेपाल सरकार की ओर से शब्दकोश से ओम शब्द को हटाने के फैसला किया गया था, जिसे वहां के सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है।
अदालत ने ओम के साथ ही कोई भी संयुक्ताक्षर को शब्दकोश से हटाने के आदेश को निरस्त कर दिया है।
आश्चर्यजनक बात यह है कि.... कोई सरकार ऐसा फैसला, ऐसा निर्देश कैसे दे सकती है?
यह बात अलग है कि.... ओम का अस्तित्व नेपाल के शब्दकोश पर निर्भर नहीं है!
कोई सरकार शब्दकोश से तो भले ही ओम को हटाने की कोशिश कर ले, लेकिन ब्रह्मांड से ओम का अस्तित्व हटाना किसी सरकार के बस की बात नहीं है?
खबरों पर भरोसा करें तो.... वर्ष 2012 में शिक्षा मंत्रालय के अन्तर्गत रहे पाठ्यक्रम विकास केन्द्र ने एक निर्णय करते हुए शब्दकोश से ओम शब्द को हटाने का निर्णय किया था, यही नहीं, केन्द्र के इस फैसले को सही करार देते हुए तत्कालीन शिक्षा मंत्री दीनानाथ शर्मा ने सभी पाठ्य पुस्तक से ओम शब्द को हटाने का लिखित निर्देश भी दिया था।
शिक्षा मंत्री दीनानाथ शर्मा के 9 अगस्त 2012 को दिए इसी निर्देश के खिलाफ 13 अगस्त 2012 को सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर की गई थी, अब अदालत ने इस पर अपना फैसला दिया है।
अदालत के जस्टिस सपना प्रधान मल्ल और जस्टिस सारंगा सुवेदी की डबल बेंच ने इस रिट पर अपना अन्तिम फैसला दिया है, जिसमें कहा गया है कि- पाठ्यक्रम विकास केन्द्र का काम पाठ्यक्रम बनाना है, नीति बनाना है, पाठ्यक्रम विकास केन्द्र का काम व्याकरण बनाना नहीं है।
खबरों की मानें तो.... नेपाल सरकार की ओर से जो दलीलें अदालत में दी गई थी, उस पर सख्त टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि- पाठ्यक्रम विकास केन्द्र को अपनी हदें पार करते हुए व्याकरण में बदलाव करने का कोई अधिकार नहीं है, इसके साथ ही, अदालत ने यह कहते हुए तत्कालीन शिक्षा मंत्री के निर्देश को भी निरस्त कर दिया कि- शिक्षा मंत्री के लिखित आदेश का कोई मतलब नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने शब्दकोश से ओम शब्द को हटाने के सभी स्तर के फैसलों/निर्देशों को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने का आदेश दिया है।
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