लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में...यहां पे सिर्फ हमारा मकान थोड़े ही है..

इस घटना की पृष्ठभूमि यह है कि किसान आंदोलन के दौरान कंगना रानौत ने पंजाब के आंदोलनकारी किसानों को आतंकवादी तथा ख़ालिस्तानी कहा था और यह भी कहा था कि किसान आंदोलन में शामिल प्रदर्शनकारी महिलाओं को सौ-सौ रुपए देकर प्रदर्शन के लिए लाया गया था। ख़बरों के अनुसार किसानों के साथ शामिल महिला प्रदर्शनकारियों में महिला सिपाही कुलविंदर कौर की मां भी शामिल थी जो कंगना रानौत की महिलाओं को सौ-सौ रुपए लेकर प्रदर्शन करने वाले बयान से बेहद आहत हुई थी। परिणाम स्वरूप उसी अपमानजनक बयान के बदले के रूप में यह अप्रत्याशित घटना सामने आई।
किसान आंदोलन के दौरान ही कंगना ने ट्वीटर पर यह विवादित टिप्पणी भी की थी कि- कोई भी इसके बारे में बात नहीं कर रहा है। क्योंकि वे किसान नहीं हैं, वे आतंकवादी हैं जो भारत को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि चीन हमारे कमज़ोर टूटे हुए राष्ट्र पर क़ब्ज़ा कर सके और इसे यूएसए की तरह एक चीनी उपनिवेश बना सके…बैठ जाओ मूर्ख, हम अपने देश को तुम बेवक़ूफ़ों की तरह नहीं बेच रहे हैं। हालांकि इस पोस्ट पर हुई आलोचना के बाद कंगना ने इसे हटा लिया था। निश्चित रूप से यदि सिपाही कुलविंदर कौर का कृत्य ग़लत है तो कंगना रानौत के ऐसे बयानों को भी सही नहीं ठहराया जा सकता।
इस घटना के बाद कंगना रानौत द्वारा दिए गए एक और विवादित बयान ने इस मुद्दे पर चर्चा को और अधिक तूल दे दिया है जिसमे उन्होंने चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर अपने साथ हुई घटना का विवरण देने के अंत में कहा कि हमें इस बात की चिंता है कि पंजाब में जो आतंकवाद व उग्रवाद बढ़ रहा है हम उससे कैसे निपटते हैं। उनके इस बयान के बाद किसान और भी कड़ी आपत्ति जता रहे हैं और कुलविंदर के समर्थन में एकजुट हो गए हैं। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान व शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी सहित अनेक नेताओं ने कहा है कि इस घटना को पंजाब में आतंकवाद व उग्रवाद फैलने से जोड़ना बिल्कुल ग़लत है और एक सांसद के नाते तो कंगना को ऐसी बात हरगिज़ नहीं करनी चाहिए। परन्तु कंगना के इस आतंकवाद वाले बयान ने देश में पिछले कुछ दिनों के भीतर हुई ऐसी घटनाओं की याद दिलाते हुए आतंकवाद व उग्रवाद पर एक बहस ज़रूर छेड़ दी है।
याद कीजिये अभी गत 18 मई को जब उत्तर-पूर्वी दिल्ली से लोकसभा के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार कन्हैया कुमार अपने निर्वाचन क्षेत्र के उस्मानपुर इलाक़े में चुनाव प्रचार कर रहे थे उस समय उन पर पहले कुछ लोगों ने स्याही फेंकी और फिर उनके गाल पर थप्पड़ जड़ दिया। मारने वाला व्यक्ति कन्हैया कुमार को टुकड़े टुकड़े गैंग का सदस्य बता रहा था। कन्हैया कुमार के इन दो हमलावरों में दक्ष चौधरी नाम का वह व्यक्ति भी था जिसने पिछले दिनों फ़ैज़ाबाद के चुनाव परिणामों से खिन्न होकर अयोध्या के लोगों को अपमानित किया था। यह लोग हिंदू रक्षा दल नमक किसी संगठन से जुड़े थे। इन्होंने इनके अनुसार राम को घर वापसी कराने वाली पार्टी (भाजपा) को वोट ना देने पर अयोध्यावासियों को गालियां दीं थी। क्या इस तरह की सोच व ऐसे कृत्य को उग्रवाद व आतंकवाद से प्रेरित सोच कहना चाहिये?
इसी तरह 13 अक्टूबर, 2011 को प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण पर सुप्रीम कोर्ट में उनके चैंबर में हमला किया गया था। उस दिन तीन लोग प्रशांत भूषण के चैंबर में घुस आए थे और उन्हें पीटना शुरू कर दिया। भूषण उस समय किसी टीवी चैनल को साक्षात्कार दे रहे थे। अतिवादियों ने प्रशांत भूषण को थप्पड़ और लात मारी। वे फ़र्श पर गिर गए, उनका चश्मा गिर गया और उनकी शर्ट फट गई थी। भूषण के एक हमलावर तेजिंदर पाल सिंह बग्गा को बाद में भाजपा ने अपनी पार्टी में शामिल कर महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी भी दी थी। हमलावरों ने स्वयं को श्री राम सेना से बताया था। यह वही दक्षिणपंथी हिंदू चरमपंथी समूह था जिसके कार्यकर्ताओं ने 2009 में मैंगलोर के एक पब में बैठी युवतियों पर हमला किया था। यह उग्रवाद व अतिवाद नहीं तो और क्या है?
गत वर्ष 31 जुलाई को सुबह 5 बजे जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन में घटी उस हिंसक घटना को क्या नाम दिया जाए जब वापी और बोरी वली रेलवे स्टेशन के बीच दौड़ रही इस ट्रेन में ड्यूटी पर तैनात आरपीएफ़ के एक 30 वर्षीय कॉन्स्टेबल चेतन सिंह ने गोलीबारी कर अपने सीनियर एक इंस्पेक्टर टीकाराम मीणा सहित अब्दुल क़ादिर, असग़र अब्बास शेख़ व सैयद सैफ़ुल्लाह नामक चार व्यक्तियों की हत्या कर दी थी। देश में मॉब लिंचिंग के सैकड़ों मामले हो चुके हैं। धर्म व जाति विशेष के लोगों को निशाना बनाया जाता रहता है।
गौ रक्षा के नाम पर स्वयंभू गौरक्षक तमाम लोगों को मार चुके हैं। मंत्री, सांसद, विधायक व स्वयंभू धर्मगुरु धर्म विशेष के लोगों को आतंकी बताते हैं तो कभी उन्हें सार्वजनिक रूप से धमकियाँ देते हैं। यह आतंकवाद व अतिवाद नहीं तो और क्या है। हिन्दू जागरण के नाम पर आजकल बेख़ौफ़ होकर नफ़रत फैलाई जा रही है। जिससे समाज का सीधा सादा बेरोज़गार युवा उनके झूठे नफ़रत भरे दुष्प्रचार से प्रभावित होकर धर्म विशेष के प्रति उग्र हो रहा है। ऐसे लोगों पर नकेल कसने वाला कोई नहीं। बल्कि ऐसे असामाजिक व अवांछित तत्वों की किसी न किसी तरह हौसला अफ़ज़ाई की जाती है।
पंजाब इस समय पूर्णतयः शांत प्रिय राज्य है। यहाँ शांति क़ायम करने में अनेक लोगों को अपनी जान की क़ुर्बानियां देनी पड़ी हैं। लिहाज़ा अपनी बदज़ुबानी के लिए मुआफ़ी मांगने या उस पर पश्चात्ताप करने के बजाए किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा आतंकवाद की चिंता व्यक्त करने पर जिसे यह भी नहीं पता कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू थे, सुभाषचंद्र बोस नहीं। जिसे यह भी नहीं पता कि देश 1947 में आज़ाद हुआ था 2014 में नहीं, अफ़सोस ही व्यक्त किया जा सकता है। यदि कहीं अतिवाद का धुआं उठता भी हो तो उसे हवा देने के बजाए उस पर पानी डाल कर धुआं ख़त्म करने की ज़रुरत है। इस सन्दर्भ में राहत इंदौरी का यह शेर ज़रूर याद रखना चाहिए कि -लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में। यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़े ही है।।
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