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ऋषि चिंतन: भोजन शरीर को पोषण देने के लिए है, इंद्रियों को तृप्त करने के लिए नहीं है
आज के मनुष्य का अनेक प्रकार के मेवे-मिष्ठान्नों, मिर्च-मसालों, अचार-चटनियों, मांस एवं तरकारियों
से युक्त चटपटा भोजन आयु की क्षीणता का एक विशेष कारण है । पूड़ी, कचोरी, डबल रोटी बिस्किट
न जाने क्या क्या बताएं हम ठूँस-ठूँसकर गले
तक भर लेते हैं फिर चूरन चाटते और गोलियां खाते फिरते हैं । अति भोजन रोगों की वृद्धि
करने वाला, आयु को क्षीण करने वाला, नरक में पहुंचाने वाला, पाप कराने वाला और निंदा
कराने वाला है, इससे काम, क्रोध, रोग आदि और
भी प्रबल होते हैं । स्वप्नदोष अधिकांश रूप से अधिक भोजन के कारण हुआ करता है
और अकाल मृत्यु का कारण बनता है ।
एक बार ईरान के किसी सम्राट ने एक अनुभवी
वैद्यशास्त्री से प्रश्न किया-दिन रात में मनुष्य को कितना खाना चाहिए ? उत्तर मिला
१०० ड्राम (अर्थात 39 तोला) । फिर पूछा-इतने से क्या होगा? वैद्य ने उत्तर दिया -शरीर
पोषण के निमित्त यह यथेष्ट है, इसके पश्चात जो कुछ भक्षण किया जाता है, वह केवल अनावश्यक
बोझ उठाए फिरना, पेट को फुलाकर औषधालय बना लेना N आयु खोना है। अधिक खाना मानो अपनी आयु का एक-एक दिन कम करना है
तथा अकाल मृत्यु के मुख में कूदना है । मिताहारी
पुरुष ही दीर्घ जीवी हो सकते हैं ।
उपरोक्त
प्रवचन पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य लिखित पुस्तक दीर्घ जीवन के रहस्य पृष्ठ-14 से
लिया गया है।
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