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सोनी सब के कलाकारों ने साझा की दिवाली से जुड़ी अपनी यादें और परिवार की परंपराएँ

पुष्पा इम्पॉसिबल में दीप्ति की भूमिका निभा रहीं गरिमा परिहार ने कहा, “दिवाली मुझे तुरंत मेरे बचपन में ले जाती है। हम सभी कज़िन घंटों रंगोली बनाते, फुलझड़ियाँ जलाते और आसमान को पटाखों से जगमगाता देखते। मेरी दादी अपने हाथों से खास लड्डू बनाती थीं — उनकी खुशबू आज भी घर की याद दिला देती है। उम्र चाहे कितनी भी हो जाए, दिवाली का वो बचपन वाला उत्साह कभी कम नहीं होता।”
पुष्पा इम्पॉसिबल में अश्विन का किरदार निभा रहे समृद्ध बावा ने कहा, “मेरे लिए दिवाली रोशनी, भोजन और हँसी का त्योहार है। मुझे याद है माँ को गुझिया बनाने में मदद करना और त्योहार से पहले घर की सफाई करना। आज भी, चाहे शूट कितने भी व्यस्त हों, मैं परिवार और दोस्तों संग दिवाली मनाना सुनिश्चित करता हूँ। हम सब मिलकर आरती करते हैं और घर का बना खाना खाते हैं। दिवाली हमेशा मुझे गर्माहट और सकारात्मकता से भर देती है।”
इत्ती सी खुशी में हेतल की भूमिका निभा रहीं नेहा एस.के. मेहता ने कहा, “मेरे लिए दिवाली का अर्थ है ठहरना और उन परंपराओं का सम्मान करना जिन्होंने मुझे गढ़ा है। वडनगर से आने के कारण हमारी दिवाली कभी शानो-शौकत वाली नहीं रही, बल्कि साथ रहने वाली रही — सजावट में मदद करना, पूजा करना, मिठाइयाँ बाँटना और पड़ोसियों के संग हँसी-मज़ाक करना। थियेटर और स्क्रीन पर सालों बिताने के बाद भी मुझे वे छोटे-छोटे रिवाज़ सबसे ज्यादा ज़मीन से जोड़ते हैं। दिवाली सिर्फ रोशनी और मिठाइयों का नाम नहीं है — यह नवीनीकरण, कृतज्ञता और जीवन के असली मूल्यों को संजोने का त्योहार है।”
इत्ती सी खुशी में संजय की भूमिका निभा रहे ऋषि सक्सेना ने कहा, “मेरे लिए दिवाली हमेशा आत्मचिंतन और जुड़ाव का समय रही है। मुझे याद है कि परिवार के साथ लक्ष्मी पूजा करने के बाद छत पर जाकर थोड़े पटाखे छोड़ना कितना खास लगता था। ये छोटी-छोटी परंपराएँ जीवन भर आपके साथ रहती हैं। आज भी मैं दिवाली को सादगी से मनाना पसंद करता हूँ — दिये जलाकर, मिठाइयाँ बाँटकर और अपनों के साथ समय बिताकर।” देखिए गाथा शिव परिवार की गणेश कार्तिकेय, इत्ती सी खुशी और पुष्पा इम्पॉसिबल, सोमवार से शनिवार, सिर्फ सोनी सब पर।
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