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WC 2019 : रोचक और चुनौतीपूर्ण होगा बदला हुआ फॉरमेट, ये है पूरी रिपोर्ट

आईसीसी रैंकिंग में शीर्ष-8 में रहने वाली टीमें स्वत: ही विश्व कप के लिए
क्वालीफाई कर गई थीं जबकि बाकी के दो स्थानों के लिए क्वालीफिकेशन
टूर्नामेंट आयोजित किया गया था, जिससे वेस्टइंडीज और अफगानिस्तान ने अपनी
जगह पक्की की थी। राउंड रोबिन प्रारूप से बेशक विश्व कप लंबा होगा लेकिन
प्रतिस्पर्धा की कमी कि गुंजाइश नहीं है साथ ही यह प्रारूप किसी भी टीम को
आरामदायक स्थिति में रहने या फिर सुकून हासिल करने की इजाजत नहीं देता।
1992 के बाद ग्रुप फॉरमेट ने दोबारा जगह ले ली थी।
1975 में खेले गए पहले विश्व कप से लेकर 1987 तक ग्रुप फॉरमेट में ही मैच खेले गए थे। 1996 से एक बार फिर ग्रुप फॉरमेट ने जगह ले ली थी। वहीं, 1999 में इंग्लैंड में ही खेले गए विश्व कप में ग्रुप-दौर के बाद सुपर-6 दौर को शामिल किया गया था जो दक्षिण अफ्रीका में 2003 में खेले गए विश्व कप में भी जारी रहा था। 2007 में हालांकि आईसीसी ने एक सुपर-6 को हटाकर सुपर-8 दौर को शामिल किया था और पहली बार विश्व कप में दो ग्रुप की जगह चार ग्रुप बनाए गए थे।
सुपर-8 के बाद क्वार्टर फाइनल दौर की शुरुआत हुई थी। भारत में 2011 में खेले गए विश्व कप में एक बार फिर दो ग्रुप वाला फॉरमेट लाया गया था और इसके बाद क्वार्टर फाइनल दौर की शुरुआत हुई थी। 2015 में भी इसी प्रारूप को जारी रखा था। 2019 में बदले हुए प्रारूप से किसी भी टीम को पहले से कमजोर या मजबूत नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी रूपरेखा इस तरह से होती है कि कई तरह के संयोजन काम करते हैं और फिर अगले दौर की चार टीमों का फैसला होता है। इसकी बानगी कई बार आईपीएल में देखने को मिली हैं जहां लीग दौर के आखिरी मैच पर कुछ टीमों का भविष्य निर्भर रहता है।
(IANS)
1975 में खेले गए पहले विश्व कप से लेकर 1987 तक ग्रुप फॉरमेट में ही मैच खेले गए थे। 1996 से एक बार फिर ग्रुप फॉरमेट ने जगह ले ली थी। वहीं, 1999 में इंग्लैंड में ही खेले गए विश्व कप में ग्रुप-दौर के बाद सुपर-6 दौर को शामिल किया गया था जो दक्षिण अफ्रीका में 2003 में खेले गए विश्व कप में भी जारी रहा था। 2007 में हालांकि आईसीसी ने एक सुपर-6 को हटाकर सुपर-8 दौर को शामिल किया था और पहली बार विश्व कप में दो ग्रुप की जगह चार ग्रुप बनाए गए थे।
सुपर-8 के बाद क्वार्टर फाइनल दौर की शुरुआत हुई थी। भारत में 2011 में खेले गए विश्व कप में एक बार फिर दो ग्रुप वाला फॉरमेट लाया गया था और इसके बाद क्वार्टर फाइनल दौर की शुरुआत हुई थी। 2015 में भी इसी प्रारूप को जारी रखा था। 2019 में बदले हुए प्रारूप से किसी भी टीम को पहले से कमजोर या मजबूत नहीं माना जा सकता क्योंकि इसकी रूपरेखा इस तरह से होती है कि कई तरह के संयोजन काम करते हैं और फिर अगले दौर की चार टीमों का फैसला होता है। इसकी बानगी कई बार आईपीएल में देखने को मिली हैं जहां लीग दौर के आखिरी मैच पर कुछ टीमों का भविष्य निर्भर रहता है।
(IANS)
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