Will Jamura do anything for TRP?-m.khaskhabar.com
×
khaskhabar
Jun 22, 2025 10:40 am
Location
 
   राजस्थान, हरियाणा और पंजाब सरकार से विज्ञापनों के लिए मान्यता प्राप्त

टीआरपी की ख़ातिर “जमूरा” कुछ भी करेगा?

khaskhabar.com: बुधवार, 14 मई 2025 12:05 PM (IST)
टीआरपी की ख़ातिर “जमूरा” कुछ भी करेगा?
अभी गत 28 मार्च 2025 की ही बात है जबकि ज़ी न्यूज़ टीवी चैनल के स्वामी सुभाष चंद्रा को ज़ी न्यूज़ की ओर से अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत को लेकर रिया चक्रवर्ती को टारगेट करने से सम्बंधित ख़बरों को उनके चैनल ज़ी न्यूज़ द्वारा ग़लत तरीक़े से पेश करने के लिए मुआफ़ी मांगनी पड़ी थी। सुभाष चंद्रा ने कहा था कि "सुशांत राजपूत आत्महत्या मामले में सीबीआई ने क्लोज़र रिपोर्ट दायर कर दी है। मुझे लगता है ऐसा विश्वसनीय सबूतों के अभाव में हुआ है। अब अस्पष्टता की कोई जगह नहीं है। इसका मतलब ये है कि कोई मामला नहीं बनता है।

पीछे मुड़कर सोचता हूं तो मुझे लगता है कि रिया को मीडिया ने अभियुक्त बनाया और इसकी अगुवाई ज़ी न्यूज़ ने अपने तत्कालीन संवाददाताओं और संपादकों के ज़रिए की। दूसरों ने इसमें ज़ी न्यूज़ को फ़ॉलो किया। ज़ी न्यूज़ के मेंटर के रूप में मैं उनसे कहूंगा कि बहादुरी दिखाएं और मुआफ़ी मांगें। मैं रिया से मुआफ़ी मांगता हूं, भले ही इसमें मेरी कोई भूमिका नहीं थी।" गोया सुभाष चंद्रा ने यह स्वीकार किया था कि ज़ी न्यूज़ ने रिया चक्रवर्ती को ग़लत तरीक़े से आरोपी के रूप में पेश किया और अन्य मीडिया ने इसका अनुसरण किया।
सवाल यह है कि क्या ज़ी न्यूज़ के किसी संपादक या पत्रकार ने अपने मालिक की बात मानी और मुआफ़ी माँगी? और तो और क्या इस के बाद ज़ी न्यूज़ या उसके साथ झूठ परोसने का कारोबार करने वाले अन्य चैनल्स ने सुशांत राजपूत मामले से कोई सबक़ सीखा? शायद बिल्कुल नहीं। बल्कि सच्चाई तो यह है कि मीडिया की बेहयाई व बेशर्मी में और अधिक इज़ाफ़ा होता जा रहा है। गत दस वर्षों से गोदी मीडिया सत्ता की कठपुतली बन चुका है और सत्ता से सवाल पूछने के बजाय विपक्ष को ही कटघरे में खड़ा करता रहता है। देश में अमन शांति की बातें करने के बजाय विभाजनकारी एजेंडा चलाता है।
कोरोनाकाल जैसे संकटकाल से लेकर वर्तमान भारत पाक युद्ध जैसे अति गंभीर व संवेदनशील समय में भी सत्ता के इन्हीं 'जमूरों ' ने जिस तरह सांप्रदायिक एजेंडा चलाया उससे अधिक शर्मनाक और क्या हो सकता है? यही मीडिया भारत के विश्वगुरु बनने का ढोल पीटता है तो कभी विश्व की पांचवीं अर्थव्यवस्था बनाने की बात करता है। परन्तु शायद यह भूल जाता है इन सभी लक्ष्यों को हासिल करने के लिये समाज के हर वर्ग का एकजुट होना ज़रूरी है। देश का मज़बूत होना ज़रूरी है। परन्तु आप जब भी गोदी मीडिया के टीवी चैनल खोलकर देखें इसमें सिवाय चीख़ने चिल्लाने, बदतमीज़ी की भाषा बोलने, अपने पैनल के अतिथियों के साथ बदज़ुबानी से पेश आने, हिन्दू मुस्लिम जिहाद क्षेत्रवाद, भाषा विवाद, ख़ालिस्तान, झूठ, अफ़वाह, भ्रम फैलाने के सिवा कुछ नज़र नहीं आता।
पिछले दिनों पहलगाम आतंकी हमले व उसके बाद भारतीय सेना द्वारा किये गए ऑप्रेशन सिन्दूर के बाद अनेक भारतीय न्यूज़ चैनल्स विशेषकर ज़ी न्यूज़, आज तक, और रिपब्लिक भारत आदि ने राष्ट्रवाद के नाम पर जमकर सनसनीख़ेज़ सुर्खियाँ बनायीं व भ्रामक ब्रेकिंग न्यूज़ चलायी गयीं। मिसाल के तौर पर एक शीर्षक था "आज पाकिस्तान की आखिरी रात! तो दूसरा 'भारत का फ़ाइनल अटैक! 'आधा पाकिस्तान तबाह' आदि भ्रामक शीर्षक ने तनाव को बढ़ाने में कुछ अधिक योगदान दिया। निश्चित रूप से इससे जनता में भय और आक्रोश की भावना बढ़ी। साथ ही ऐसी ख़बरों के साथ जब गला फाड़ने और स्टूडियो में उछल कूद करने जैसी बेहूदा प्रवृति भी शामिल हो जाए तो न्यूज़ एंकर तो पूरी तरह 'जमूरे ' के किरदार में ही नज़र आता है। यही नहीं बल्कि इसी 'जमूरा गिरोह ' द्वारा ग़लत सूचना और फ़र्ज़ ख़बरों का भी जमकर प्रसार किया गया।
कुछ मीडिया चैनल्स ने असत्यापित जानकारी, संपादित वीडियो, यूक्रेन-रूस युद्ध और यहाँ तक कि वीडियो गेम फ़ुटेज तक को युद्ध से सम्बंधित वास्तविक घटनाओं के रूप में प्रस्तुत किया। उदाहरण के लिए, जम्मू एयरफ़ोर्स बेस पर धमाके या जालंधर में ड्रोन हमले की ख़बरें फ़र्ज़ी पाई गईं। इससे न केवल भारत में ग़लत सूचना फैली, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी शर्मिंदगी हुई। भारतीय मीडिया की भ्रामक व अफ़वाहपूर्ण कवरेज ने सोशल मीडिया पर भ्रामक सूचनाओं की गोया बाढ़ सी ला दी। अनेक वायरल वीडियो, सैन्य गतिविधियां या ड्रोन हमलों के दावे, अधिकांश संपादित या फ़र्ज़ी थे।
ख़बरों के अनुसार कई भारतीय चैनल्स ने पाकिस्तान में भी कई ऐसे मोहरे तलाश लिये थे जिन्हें वे पैसे देकर अपने चैनल्स पर बुलाते थे और उन्हें गलियां देकर, अपमानित कर जानबूझ कर माहौल में गर्मी पैदा करते थे। यानी ख़ुद नूरा कुश्ती कर जनता को तनाव में डालते थे। आख़िरकार मीडिया की इस ग़ैर ज़िम्मेदाराना हरकत की वजह से ही सरकार के सूचना व रक्षा मंत्रालय और सैन्य व विदेश विभाग के अधिकारियों को ऐसे भ्रामक प्रसारण को लेकर सावधानी बरतने की अपील करनी पड़ी। परन्तु जिस बेशर्म मीडिया को अदालतों की झिड़की की परवाह नहीं, जिस बेहया गोदी मीडिया को अपने मान सम्मान व प्रतिष्ठा की फ़िक्र नहीं वह भला भारत सरकार के निर्देशों की क्या परवाह करने वाला?
जिसे इस बात की फ़िक्र नहीं कि उसे तिहाड़ी, गोदी, दलाल, चरण चुम्बक, भक्त मीडिया जैसे 'अलंकरण ' से 'नवाज़ा' जाने लगा है वह कहाँ सुधरने वाला। पूरी दुनिया के सोशल मीडिया और टीवी चैनल्स में इस बात का मज़ाक़ उड़ाया जा रहा है कि इसी दलाल मीडिया ने कराची बंदरगाह पर हमला करा दिया था, आख़िर किस आधार पर? इसी मीडिया ने लाहौर पर क़ब्ज़ा करा दिया, इस्लामाबाद पर भारतीय सेना का क़ब्ज़ा करा दिया और तो और पाकिस्तान का प्रधानमंत्री निवास तक उड़ा दिया ?
बेशक पाकिस्तानी मीडिया द्वारा भी इसी तरह की कई बेसिर पैर की बातें की गयीं। जैसे 'पटना व बेंगलुरु के बंदरगाहों पर पाकिस्तान का हमला' जबकि इन दोनों जगह न तो समुद्र है न ही बंदरगाह। परन्तु हमें पाकिस्तान के मीडिया से तुलना करने की ज़रुरत ही क्या ? हम तो 'विश्वगुरु भारत ' के मीडिया की विश्वसनीयता की बात ही कर सकते हैं। गत दस वर्षों से इसी मीडिया पर हिंसा और नफ़रत फैलाने के आरोप लगते रहे हैं। आज देश में सामाजिक विभाजन की जो रेखायें गहरी हुई हैं उसमें इसी मीडिया की अहम भूमिका है। उस दौरान मीडिया के बेलगाम होने पर सरकार की ख़ामोशी पर भी बार बार सवाल उठे।
परन्तु सत्ता ने स्वयं को लाभान्वित होते देख उस समय इनपर कोई लगाम नहीं कसी न ही नियंत्रित रहने के निर्देश जारी किये। जबकि देश की अदालतों ने एक नहीं अनेक बार मीडिया को उसकी इन्हीं ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रसारणों के चलते आइना भी दिखाया, निर्देश भी दिये परन्तु इनकी बेशर्मी जस की तस क़ायम रही। और इसी विभाजनकारी एजेंडे के बल पर अपनी टीआरपी बढ़ती देख मीडिया उसी ढर्रे पर चलता रहा। और इसी बेलगामी का परिणाम यह रहा कि भारतीय मीडिया भारत-पाक तनाव के दौरान भ्रामक समाचार, सनसनीख़ेज़ कवरेज, ग़लत सूचना आदि प्रसारित करता रहा। और मीडिया के इसी ग़ैर ज़िम्मेदाराना रवैय्ये ने इसकी विश्वसनीयता पर विश्व स्तर पर सवाल उठाए।
कुछ आउटलेट्स ने संतुलन बनाए रखने की कोशिश की, लेकिन समग्र रूप से मीडिया की भूमिका विवादास्पद रही। इतनी बदनामी व अपमान सहने के बाद आज भी मीडिया अपने ढर्रे पर क़ायम है। गोया इनकी नज़रों में यही पत्रकारिता है और यही पत्रकारिता के मापदंड। अगर यही मीडिया सत्ता की गोदी में बैठने के बजाये निष्पक्ष रूप से अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहा होता तो आज देश की यह हालत न होती। समाज धर्म जाति के आधार पर इतना बंटा न होता। मंहगाई बेरोज़गारी का यह आलम न होता। परन्तु अपने झूठ,बकवास,पक्षपातपूर्ण व ग़ैर ज़िम्मेदाराना प्रसारण से मीडिया ने यह साबित कर दिया है कि टी आर पी की ख़ातिर 'जमूरा ' कुछ भी करेगा?

ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

Advertisement
Khaskhabar.com Facebook Page:
Advertisement
Advertisement