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आखिर क्यों कहा जाता है अटल बिहारी वाजपेयी को अजातशत्रु
नई दिल्ली। अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति में अजातशत्रु माने जाते हैं, क्योंकि एक ऐसा नेता जिसका कोई शत्रु नहीं, कोई दुश्मन नहीं। इतिहास में वह अपनी छाप एक प्रखर राजनेता, कवि, एक उदार जननायक, कूटनीतिज्ञ, पत्रकार के रूप में जाने जाएंगे। भारत की राजनीति में अटल बिहारी वाजपेयी को एक अजातशत्रु माने जाते हैं। वे 90 दशक में भाजपा की नींव से लेकर एक ऊंचाई तक पहुंचाने में उनकी भागीदारी का नकारा नहीं जा सकता हैं।
वाजपेयी हिंदुत्व की जमीन पर खड़े होकर आरएसएस प्रचारक रहकर भारतीय राजनीति में उदारवादी चेहरा बनाए रखा। इस पार्टी की भारतीयों के बीच स्वीकार्यता बढ़ाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। उनके शासन के दौरान भाजपा हिंदूवादी पार्टी थी, लेकिन वह समावेशी रही। देश के एक बड़े वर्ग और अलग-अलग विचारों वाली पार्टियों को अपने साथ लेकर चलने का यह करिश्मा वाजपेयी ने ही किया था। वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि भाजपा के साथ उस समय नए सहयोगी दल जुड़ते गए। उनके प्रभाव से विपक्षी पार्टियां उस समय उनके सहयोग में आकर निश्चित प्रोग्राम के तहत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाया गया । इसमें जनता दल से अलग होकर जार्ज फर्नांडिस, नीतिश कुमार, रामबिलास पासवान, शरद यादव आदि नेताओं ने अटल जी के व्यक्तित्व के प्रभाव से अछुते नहीं रहे। वे बोलने में काफी उस्ताद और भारतीय राजनीति में स्पष्ट राय रखते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में दिया। इसका प्रभाव यह रहा है कि यह भाषण काफी लोकप्रिय हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की गूंज सुनने को मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी का यह भाषण यूएन में आए सारे प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने खड़े होकर अटल जी के लिए तालियां भी बजाई थी।
वाजपेयी हिंदुत्व की जमीन पर खड़े होकर आरएसएस प्रचारक रहकर भारतीय राजनीति में उदारवादी चेहरा बनाए रखा। इस पार्टी की भारतीयों के बीच स्वीकार्यता बढ़ाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। उनके शासन के दौरान भाजपा हिंदूवादी पार्टी थी, लेकिन वह समावेशी रही। देश के एक बड़े वर्ग और अलग-अलग विचारों वाली पार्टियों को अपने साथ लेकर चलने का यह करिश्मा वाजपेयी ने ही किया था। वाजपेयी के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि भाजपा के साथ उस समय नए सहयोगी दल जुड़ते गए। उनके प्रभाव से विपक्षी पार्टियां उस समय उनके सहयोग में आकर निश्चित प्रोग्राम के तहत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन बनाया गया । इसमें जनता दल से अलग होकर जार्ज फर्नांडिस, नीतिश कुमार, रामबिलास पासवान, शरद यादव आदि नेताओं ने अटल जी के व्यक्तित्व के प्रभाव से अछुते नहीं रहे। वे बोलने में काफी उस्ताद और भारतीय राजनीति में स्पष्ट राय रखते थे।
अटल बिहारी वाजपेयी 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री रहते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में दिया। इसका प्रभाव यह रहा है कि यह भाषण काफी लोकप्रिय हुआ। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की गूंज सुनने को मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी का यह भाषण यूएन में आए सारे प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने खड़े होकर अटल जी के लिए तालियां भी बजाई थी।
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