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साप्ताहिक कॉलमः दीवारों के कान

गहलोत के खिलाफ आरोप ही आरोप
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से 6 महीने पहले सीएम अशोक गहलोत सरकार पर आरोपों का पुलिंदा लादा जा रहा है या थोपा जा रहा है। ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन, बाबा ने गहलोत सरकार और उनके पूरे खानदान पर आरोपों की झड़ी लगाकर मीडिया में लगातार सुर्खियां बंटोर ली हैं। ईडी में लगातार शिकायत भी दे रहे हैं। लेकिन, मुखिया जी ने कह दिया कि हम ईडी से डरने वाले नहीं है। वहीं, माहौल बनाने के लिए मुखिया जी के सलाहकार मंत्री भी अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कह रहे है कि हम डरने वाले नहीं हैं। लेकिन, डर है तभी तो इस तरह के बयान दे रहे हैं। नहीं तो मुखिया जी का डॉयलाग रहा है कि हर गलती कीमत मांगती है। लेकिन, जब बात अपनों पर आई तो अब मुखिया ने डायलॉग बदल लिया। बोले- कि कभी-कभी छोटी-मोटी गलती हो जाती है। तो क्या इसका मलतब यह है कि गलती करने वालों को माफ कर दिया जाए। अपनों को माफी, दूसरों को सजा। यह कैसे चलेगा?
इन कर्मचारियों की भी सुन लो सरकारः
मंत्रालयिक कर्मचारियों का धरना-प्रदर्शन पिछले 86 दिन से जारी है। वार्ता के कई दौर हो चुके हैं। लेकिन, मांगों पर सहमति नहीं बन पा रही है। वह भी तब जबकि मुखिया दिल खोलकर हर वर्ग को दोनों हाथों से खजाना बांटने में लगे हैं। कर्मचारी भी ढीट हैं। कह रहे हैं कि अपना हक लेकर ही रहेंगे। उन्हें मनाने में सलाहकार भी फेल हो चुके है। मुखिया जी निष्फिक्र होकर दौरे कर शिविरों में और लोगों को महंगाई से राहत दे रहे हैं। इसका फायदा यह है कि इससे जनसम्पर्क भी हो रहा है और ब्रांडिंग भी। लेकिन, मंत्रालयिक कर्मचारी अब सिविल लाइंस तक धावा बोल रहे हैं। इससे प्रशासन में हड़कंप मचा है। सलाहकारों को चिंता इसलिए है कि हड़ताल से दफ्तरों में कामकाज ठप है। लोगों के काम नहीं हो पा रहे हैं। अगर, यही हाल रहा तो चुनाव में वोट कैसे मिल पाएंगे।
आखिर मुखिया जी को गुस्सा क्यों आया?
सत्ता के खबरी पिछले कुछ दिन से इस पड़ताल में लगे हैं कि आखिर बाड़मेर में मुखिया जी को इतना गुस्सा क्यों आया कि माइक ही फेंक मारा। पता चला कि, मुखिया का मूड चाय ने खराब कर दिया। खारे पानी में चाय जो बना दी गई। इसके लिए मुखिया जी ने चाय बनाने वाले को यह कहकर टोका भी बताया कि इस चाय को तुम पी सकते हो क्या। फिर शिविर में लोगों से संवाद के दौरान माइक ही कई बार बंद हो गया। गुस्से में माइक फेंक दिया। इससे कलेक्टर और एसपी सकते में आ गए। इस घटना का असर पीडब्ल्यूडी विभाग पर पड़ा। सो कई इंजीनियर चपेट में आ गए। किसी को नोटिस जारी हो गया तो किसी से जवाब-तलब हो गया। इंजीनियर तर्क दे रहे हैं कि ठेकेदारों के जरिए कराए जाने वाले काम ऐसे ही होते हैं। बहरहाल, आयोजकों ने इस घटना से सबक लेते हुए हर कार्यक्रम में 4-5 माइकों का इंतजाम करना शुरू कर दिया है। ताकि मुखिया एक माइक फेंक भी दें तो दूसरा काम आ जाए। माइक की टेस्टिंग के मामले में सीएमओ के अधिकारी भी कोई रिस्क नहीं ले रहे हैं। ताकि फिर सरकार की किरकिरी ना हो।
कई अफसरों तक पहुंचेगी ईडी जांच की आंचः
ईडी जांच की आंच कई अफसरों तक पहुंच रही है। हालांकि ईडी अभी पेपर लीक मामले को लेकर आधिकारिक तौर पर सक्रिय है। राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य रहे बाबूलाल कटारा से पूछताछ भी कर चुकी है। अगर मुखिया जी की मानें तो ईडी जांच की स्क्रिप्ट तो बहुत पहले ही लिखी जा चुकी है। इसीलिए मंत्रियों के साथ-साथ कई अफसरों की भी नींद उड़ी हुई है। क्योंकि सांसद किरोड़ीलाल का दावा है कि उनके शिकायती पत्र के बाद ही ईडी यहां जांच करने आई है। अब वे मंत्री शांति धारीवाल से लेकर महेश जोशी तक के विभागों के भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के सबूत और दस्तावेज भी ईडी को जा-जाकर दे रहे हैं। जाहिर है, इन विभागों में पहले जो-जो भी अफसर रहे हैं, उनसे भी पूछताछ हो सकती है। संपत्तियों के दस्तावेज खंगाले जा सकते हैं। कुछ अफसरों को तो ईडी में बुलाए जाने के संकेत भी मिल गए हैं। जबकि कुछ अफसर अभी भी आशंकित हैं कि कहीं उनका बुलावा ना आ जाए।
कौन सा मॉडल होगा लागू, महाराष्ट्र या कर्नाटकः
राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में कर्नाटक मॉडल की धूम मची है। कांग्रेस की कर्नाटक चुनाव जीत से सलाहकार भी खुश हैं। उस मॉडल पर राजस्थान में भी काम हो रहा है। मुखिया जी की ब्रांडिंग संभाल रही चुनाव प्रबंधन कंपनी के मुखिया पहले ही न्यूज चैनलों पर जाकर कर्नाटक जीत का सेहरा पहन चुके हैं। लेकिन, राजस्थान के कांग्रेसी और टिकट चाहने वाले अब चुनाव प्रबंधन कंपनी मुखिया से ही जीत की रणनीति का फार्मूला पूछ रहे हैं। जैसे वहां कैसे और कौन सर्वे के आधार पर टिकट बांटे गए। यही हाल सत्ता में आने को आतुर भाजपा का है। यहां पर महाराष्ट्र मॉडल की चर्चा हो रही है। भाजपा यहां पर महाराष्ट्र मॉडल पर सरकार बनाने के लिए किसी अच्छे साथी की तलाश में है। लेकिन, अभी किसी पार्टी ने पत्ते नहीं खोले हैं। सिर्फ राजनीतिक पंडितों की चर्चा और भाजपा-कांग्रेस दफ्तरों की कानाफूसी पर सियासत गरम है।
ये कांग्रेस का लाभार्थी और ये भाजपा का लाभार्थीः
राजनीति भी गजब खेल है। पहले विचारधारा, फिर कर्मचारी, उसके बाद छात्र संगठन और अब सरकारी योजनाओं के बहाने आम वोटर पर राजनीतिक दलों का ठप्पा लगा दिया है। यानि, ये भाजपा का लाभार्थी है और यह कांग्रेस का लाभार्थी। विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही लाभार्थी सम्मेलन करने में जुटे हैं। भाजपा जहां ऐसे लोगों को पकड़कर ला रही है जिन्हें केंद्र सरकार की योजनाओं का फायदा मिला है। वहीं कांग्रेस ने इसके लिए अलग ही फार्मूला निकाला है। गहलोत सरकार महंगाई राहत शिविर के नाम पर लाभार्थियों के रजिस्ट्रेशन करवा रही है, ताकि भाजपा यह क्लेम नहीं कर सके कि हमारे लाभार्थियों को भी कांग्रेस अपना बता रही है। प्रदेश भाजपा गहलोत सरकार की अन्य योजनाओं का तोड़ तो नहीं ढूंढ पा रही है। लेकिन, उसके नेता यह कहकर सरकार पर कटाक्ष करते हैं कि अगर राहत देनी ही है तो सरकार डीजल-पेट्रोल पर वैट घटाकर देवे। बिजली बिलों में फ्यूल सरचार्ज के नाम पर जो पैसा वसूला गया है, वह वापस लौटाया जाए। लेकिन, 13 जिलों और 80 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण पानी से जुडे ईआरसीपी के मुद्दे पर इन सभी नेताओं के मुंह बंद हैं।
-खास खबरी (नोटः इस कॉलम में हर सप्ताह खबरों के अंदर की खबर, शासन-प्रशासन की खास चर्चाएं प्रकाशित की जाती हैं)
राजस्थान में विधानसभा चुनाव से 6 महीने पहले सीएम अशोक गहलोत सरकार पर आरोपों का पुलिंदा लादा जा रहा है या थोपा जा रहा है। ये तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन, बाबा ने गहलोत सरकार और उनके पूरे खानदान पर आरोपों की झड़ी लगाकर मीडिया में लगातार सुर्खियां बंटोर ली हैं। ईडी में लगातार शिकायत भी दे रहे हैं। लेकिन, मुखिया जी ने कह दिया कि हम ईडी से डरने वाले नहीं है। वहीं, माहौल बनाने के लिए मुखिया जी के सलाहकार मंत्री भी अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कह रहे है कि हम डरने वाले नहीं हैं। लेकिन, डर है तभी तो इस तरह के बयान दे रहे हैं। नहीं तो मुखिया जी का डॉयलाग रहा है कि हर गलती कीमत मांगती है। लेकिन, जब बात अपनों पर आई तो अब मुखिया ने डायलॉग बदल लिया। बोले- कि कभी-कभी छोटी-मोटी गलती हो जाती है। तो क्या इसका मलतब यह है कि गलती करने वालों को माफ कर दिया जाए। अपनों को माफी, दूसरों को सजा। यह कैसे चलेगा?
इन कर्मचारियों की भी सुन लो सरकारः
मंत्रालयिक कर्मचारियों का धरना-प्रदर्शन पिछले 86 दिन से जारी है। वार्ता के कई दौर हो चुके हैं। लेकिन, मांगों पर सहमति नहीं बन पा रही है। वह भी तब जबकि मुखिया दिल खोलकर हर वर्ग को दोनों हाथों से खजाना बांटने में लगे हैं। कर्मचारी भी ढीट हैं। कह रहे हैं कि अपना हक लेकर ही रहेंगे। उन्हें मनाने में सलाहकार भी फेल हो चुके है। मुखिया जी निष्फिक्र होकर दौरे कर शिविरों में और लोगों को महंगाई से राहत दे रहे हैं। इसका फायदा यह है कि इससे जनसम्पर्क भी हो रहा है और ब्रांडिंग भी। लेकिन, मंत्रालयिक कर्मचारी अब सिविल लाइंस तक धावा बोल रहे हैं। इससे प्रशासन में हड़कंप मचा है। सलाहकारों को चिंता इसलिए है कि हड़ताल से दफ्तरों में कामकाज ठप है। लोगों के काम नहीं हो पा रहे हैं। अगर, यही हाल रहा तो चुनाव में वोट कैसे मिल पाएंगे।
आखिर मुखिया जी को गुस्सा क्यों आया?
सत्ता के खबरी पिछले कुछ दिन से इस पड़ताल में लगे हैं कि आखिर बाड़मेर में मुखिया जी को इतना गुस्सा क्यों आया कि माइक ही फेंक मारा। पता चला कि, मुखिया का मूड चाय ने खराब कर दिया। खारे पानी में चाय जो बना दी गई। इसके लिए मुखिया जी ने चाय बनाने वाले को यह कहकर टोका भी बताया कि इस चाय को तुम पी सकते हो क्या। फिर शिविर में लोगों से संवाद के दौरान माइक ही कई बार बंद हो गया। गुस्से में माइक फेंक दिया। इससे कलेक्टर और एसपी सकते में आ गए। इस घटना का असर पीडब्ल्यूडी विभाग पर पड़ा। सो कई इंजीनियर चपेट में आ गए। किसी को नोटिस जारी हो गया तो किसी से जवाब-तलब हो गया। इंजीनियर तर्क दे रहे हैं कि ठेकेदारों के जरिए कराए जाने वाले काम ऐसे ही होते हैं। बहरहाल, आयोजकों ने इस घटना से सबक लेते हुए हर कार्यक्रम में 4-5 माइकों का इंतजाम करना शुरू कर दिया है। ताकि मुखिया एक माइक फेंक भी दें तो दूसरा काम आ जाए। माइक की टेस्टिंग के मामले में सीएमओ के अधिकारी भी कोई रिस्क नहीं ले रहे हैं। ताकि फिर सरकार की किरकिरी ना हो।
कई अफसरों तक पहुंचेगी ईडी जांच की आंचः
ईडी जांच की आंच कई अफसरों तक पहुंच रही है। हालांकि ईडी अभी पेपर लीक मामले को लेकर आधिकारिक तौर पर सक्रिय है। राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्य रहे बाबूलाल कटारा से पूछताछ भी कर चुकी है। अगर मुखिया जी की मानें तो ईडी जांच की स्क्रिप्ट तो बहुत पहले ही लिखी जा चुकी है। इसीलिए मंत्रियों के साथ-साथ कई अफसरों की भी नींद उड़ी हुई है। क्योंकि सांसद किरोड़ीलाल का दावा है कि उनके शिकायती पत्र के बाद ही ईडी यहां जांच करने आई है। अब वे मंत्री शांति धारीवाल से लेकर महेश जोशी तक के विभागों के भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के सबूत और दस्तावेज भी ईडी को जा-जाकर दे रहे हैं। जाहिर है, इन विभागों में पहले जो-जो भी अफसर रहे हैं, उनसे भी पूछताछ हो सकती है। संपत्तियों के दस्तावेज खंगाले जा सकते हैं। कुछ अफसरों को तो ईडी में बुलाए जाने के संकेत भी मिल गए हैं। जबकि कुछ अफसर अभी भी आशंकित हैं कि कहीं उनका बुलावा ना आ जाए।
कौन सा मॉडल होगा लागू, महाराष्ट्र या कर्नाटकः
राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस में कर्नाटक मॉडल की धूम मची है। कांग्रेस की कर्नाटक चुनाव जीत से सलाहकार भी खुश हैं। उस मॉडल पर राजस्थान में भी काम हो रहा है। मुखिया जी की ब्रांडिंग संभाल रही चुनाव प्रबंधन कंपनी के मुखिया पहले ही न्यूज चैनलों पर जाकर कर्नाटक जीत का सेहरा पहन चुके हैं। लेकिन, राजस्थान के कांग्रेसी और टिकट चाहने वाले अब चुनाव प्रबंधन कंपनी मुखिया से ही जीत की रणनीति का फार्मूला पूछ रहे हैं। जैसे वहां कैसे और कौन सर्वे के आधार पर टिकट बांटे गए। यही हाल सत्ता में आने को आतुर भाजपा का है। यहां पर महाराष्ट्र मॉडल की चर्चा हो रही है। भाजपा यहां पर महाराष्ट्र मॉडल पर सरकार बनाने के लिए किसी अच्छे साथी की तलाश में है। लेकिन, अभी किसी पार्टी ने पत्ते नहीं खोले हैं। सिर्फ राजनीतिक पंडितों की चर्चा और भाजपा-कांग्रेस दफ्तरों की कानाफूसी पर सियासत गरम है।
ये कांग्रेस का लाभार्थी और ये भाजपा का लाभार्थीः
राजनीति भी गजब खेल है। पहले विचारधारा, फिर कर्मचारी, उसके बाद छात्र संगठन और अब सरकारी योजनाओं के बहाने आम वोटर पर राजनीतिक दलों का ठप्पा लगा दिया है। यानि, ये भाजपा का लाभार्थी है और यह कांग्रेस का लाभार्थी। विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही लाभार्थी सम्मेलन करने में जुटे हैं। भाजपा जहां ऐसे लोगों को पकड़कर ला रही है जिन्हें केंद्र सरकार की योजनाओं का फायदा मिला है। वहीं कांग्रेस ने इसके लिए अलग ही फार्मूला निकाला है। गहलोत सरकार महंगाई राहत शिविर के नाम पर लाभार्थियों के रजिस्ट्रेशन करवा रही है, ताकि भाजपा यह क्लेम नहीं कर सके कि हमारे लाभार्थियों को भी कांग्रेस अपना बता रही है। प्रदेश भाजपा गहलोत सरकार की अन्य योजनाओं का तोड़ तो नहीं ढूंढ पा रही है। लेकिन, उसके नेता यह कहकर सरकार पर कटाक्ष करते हैं कि अगर राहत देनी ही है तो सरकार डीजल-पेट्रोल पर वैट घटाकर देवे। बिजली बिलों में फ्यूल सरचार्ज के नाम पर जो पैसा वसूला गया है, वह वापस लौटाया जाए। लेकिन, 13 जिलों और 80 से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण पानी से जुडे ईआरसीपी के मुद्दे पर इन सभी नेताओं के मुंह बंद हैं।
-खास खबरी (नोटः इस कॉलम में हर सप्ताह खबरों के अंदर की खबर, शासन-प्रशासन की खास चर्चाएं प्रकाशित की जाती हैं)
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