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साप्ताहिक कॉलम- दीवारों के कान

कांग्रेस और कलह - गहलोत-पायलट के अलावा भी बिगड़े कई नेताओं के रिश्ते
राजस्थान में कांग्रेस और कलह अब एक-दूसरे के पूरक बन रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने जैसे-तैसे साढ़े चार साल का कार्यकाल निकाल लिया है, लेकिन आखिरी छह महीने कांग्रेस आलाकमान और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भारी पड़ रहे है। क्योंकि गहलोत-पायलट के अलावा गुटबाजी के कारण और भी कई नेताओं के आपसी रिश्ते बिगड़ चुके हैं। यह लड़ाई अब सार्वजनिक मंचों पर भी नजर आने लगी है। कोई पीसीसी चीफ से भिड़ रहा है, तो कोई मंत्री से। आपसी कलह के इस तरह की वीडियो देखकर, आम जनता भी समझ नहीं पा रही है कि इनके पास आपसी लड़ाई से ही फुर्सत नहीं है तो उनके लिए आखिर काम कब करेंगे। ये सरकार चल कैसे रही है? भाषणों में राज्यमंत्री खुलेआम पर कैबिनेट मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहा है। विधायक मंत्रियों पर आरोप लगा रहे हैं। इन सबके सामने मुखिया जी बेबस हैं। वे सिर्फ अपनी ब्रांडिंग करवाने में व्यस्त हैं। महंगाई राहत शिविर कांग्रेस कार्यकर्ता शिविर दिख रहे हैं। मुखिया जी वहां घूम-घूम पर फीडबैक लेने में लगे हैं। करोड़ों रुपए खर्च करके लगाई गई चुनाव प्रबंधन कंपनी के भी सर्वे ऊपर-नीचे हो रहे हैं। उन्हें भी समझ नहीं आ रहा है कि कांग्रेसी की इस आपसी लड़ाई को आगे कैसे मैनेज किया जाएगा। ऐसी लड़ाई यह कंपनी पंजाब में भी देख चुकी है और उसका चुनाव में असर भी दिख चुका है।
पीएम मोदी की जनसभा, और फोटो खिंचवाने की होड़
पीएम नरेंद्र मोदी अजमेर से महा जनसम्पर्क अभियान का शुभारंभ करके चुनावी बिगुल राजस्थान में बजा चुके हैं। मंच पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी पीएम के अलग-बगल रहे। लेकिन फोटो सेशन के दौरान नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर आए। माला पहनानी हो या फोटो सेशन। नेता प्रतिपक्ष राठौड़ आगे ही रहे। इसलिए पूर्व सीएम राजे को बार-बार फ्रेम से बाहर होना पड़ा। हालांकि नेता प्रतिपक्ष अपनी तारीफ से काफी खुश हैं, पीएम मोदी जनसभाओं का प्रबंधन देखकर उनकी पीठ थपथपा चुके हैं। लेकिन कई ब्लॉगर अपने ब्लॉग में बार-बार लिख रहे हैं कि आखिर पीएम मोदी ने एक भी नेता का नाम अपने भाषण में क्यों नहीं लिया। वे चाहते तो पूर्व सीएम राजे के नाम लेकर उनकी सरकार के कार्यों का जिक्र कर सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि संभवतः मोदी सार्वजनिक रूप से किसी नेता विशेष का नाम लेकर राजस्थान में चुनाव से पहले कांग्रेस जैसी गुटबाजी नहीं कराना चाहते थे। क्योंकि चुनाव तो उनके चेहरे पर ही लड़ा जाएगा।
पायलट को लेकर पत्रकार और राजनीतिक पंडित परेशान
यूं तो पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट दिल्ली के कुछ चुनिंदा पत्रकारों की सलाह से ही अपनी रणनीति तय कर रहे हैं। आमरण अनशन में पायलट के सलाहकार पत्रकारों ने दिल्ली से जयपुर आकर यह भी बता दिया कि वे पायलट के खेमे से हैं। हर खबर पायलट के इशारे पर चला रहे हैं। मुखिया जी को भी इनके बारे में पता है। हाल ही दिल्ली में उन्होंने इसका इशारा भी कर दिया था। एक-दो राष्ट्रीय चैनल तो पायलट साहब की खबरों को लेकर इतने भावुक हो चुके हैं कि वे दिन-रात इसलिए परेशान रहते हैं कि आखिर जादूगर जी का तख्तापलट कैसे किया जाए। वहीं पायलट के राजनीतिक पंडित यह खबर छपवा चुके हैं कि वे अपनी नई पार्टी बना रहे हैं। यह खबर वायरल भी हो रही है, लेकिन पुख्ता तरीके से पायलट बोल रहे हैं। उधर, कांग्रेस आलाकमान के सामने पायलट की चुप्पी से वो छुटभैये नेता परेशान हैं जो नई पार्टी में अहम जिम्मेदारी अथवा टिकट मिलने की गारंटी के चक्कर में जादूगर गहलोत से दुश्मनी मोल ले बैठे हैं। सलाहकार पत्रकार और नेता इसलिए परेशान हैं कि कहीं पायलट कांग्रेस में ही रुक गए तो उनका क्या होगा।
ई-फाइलिंग के बाद अब मठाधीशों पर नजर
मुख्य सचिव की ई-फाइलिंग योजना से सरकारी दफ्तर में फैले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो गया। हालांकि यह मामला रफा-दफा ही समझा जाना चाहिए क्योंकि अभी तक योजना भवन के भ्रष्टाचार का खुलासा नहीं हो सका है। बड़े अफसर पकड़ से बाहर हैं। अब मुख्य सचिव ने नया फरमान जारी किया है कि अब सरकारी दफ्तरों में तीन साल से अधिक समय तक एक ही सीट बैठे मठाधीश अब वहां नहीं टिक सकेंगे। इनका तबादला होना तय है। वैसे, यह प्रावधान पहले से ही है। लेकिन, सैटिंग और डीलिंग के चक्कर में मंत्री-अफसर इसे लागू नहीं होने देते। अगर बहुत जरूरी भी हो तो 15-20 दिन दूसरी सीट पर ट्रांसफर करके अपने चहेतों को फिर ले आते हैं। उदाहरण के तौर पर नगरीय विकास मंत्री धारीवाल जी के स्टाफ की ही डिटेल चैक करें तो पता चल जाएगा कि कौन कबसे वहां लगा है। कमोबेश ऐसी स्थिति सीएमओ से लेकर प्रिंसिपल सेक्रेटरी और विभागाध्यक्षों तक बनी हुई है। इस बार, भी ताजा आदेश में मठाधीशों के लिए गली भी निकाली गई है। यानि अत्यावश्यक होने पर अधिकारी एक सीट पर 5 साल तक बैठ सकता है। बिना रसूख वाले अफसर-कर्मचारी पहले भी परेशान थे और अब भी परेशान हैं कि आखिर जाती हुई सरकार में कैसे मलाई खाई जाए। चार महीने ही बचे हैं, फिर आचार संहिता लग जाएगी।
शासन सचिवालय में कर्मचारियों का शोर ही शोर
शासन सचिवालय में आज कल लंच टाइम में सरकारी कर्मचारियों की नारेबाजी और नुक्कड़ सभाओं वाला माहौल नजर आता है। पूरे दो-ढाई घंटे चुनाव लड़ने वाले कर्मचारी नेता अपने-अपने समर्थकों के साथ सचिवालय की विभिन्न बिल्डिगों और सेक्शनों में जाकर नारेबाजी के साथ चुनाव प्रचार करते हैं। कई आईएएस पूछते नजर आते हैं कि आखिर क्या माजरा है। तब उन्हें समझ आता है कि चुनाव का मामला है, कोई आंदोलन नहीं है। यह नारेबाजी कई आईएएस अफसरों को परेशान करती है। लेकिन, करें भी तो क्या। इस पर रोक लगाने के लिए कोई आदेश तो निकाल नहीं सकते। सो, चुपचाप सहन करने में ही भलाई है। आखिर, कर्मचारियों से पंगा कौन ले। पिछले दिनों एक अफसर ने पंगा लेने की कोशिश की थी। कुछ कर्मचारी नेता पहुंच गए उनके पास। बोले- महिला चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी आरोप लगा रही है कि आप उसे घर बुलाने को बाध्य कर रहे हैं। इतना सुनते ही अफसर जी परेशान हो गए और तुरंत कर्मचारी नेताओं से माफी मांग ली। उन्होंने फिर कभी पंगा नहीं लिया।
महंगाई राहत शिविर बनाम भाजपा का लाभार्थी सम्मेलन
भाजपा ने सीएम अशोक गहलोत के महंगाई राहत शिविर के जवाब में अब हर लोकसभा में बड़ी जनसभा और लाभार्थी सम्मेलन का ऐलान कर दिया है। पंचायत स्तर तक केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थी सम्मेलन किए जाएंगे। वहीं, सीएम अशोक गहलोत दिल्ली में पायलट विवाद वाली बैठक के बाद काफी खुश नजर आ रहे हैं। जगह-जगह जनसभाओं में सीएम गहलोत का भाषण एक ही रहता है कि आपके आर्शीवाद से तीसरी बार सीएम बना हूं। अशोक गहलोत पीएम मोदी, अमित शाह और गजेंद्र सिंह शेखावत को भी घेरना नहीं चूकते हैं। यह तीन नेता और तीन बार मुख्यमंत्री बनने को लेकर बयान लगातार सुना जा सकता है। खुद की योजनाओं को लेकर आत्ममुग्धता ऐसी कि यह योजनाएं पूरे देश में लागू करने की बार-बार मांग करते रहते हैं। भाजपा भी सीएम को जवाब देने के लिए यह दांव खेलने जा रही है। अब केंद्र की योजनाएं बना गहलोत की योजनाओं को लेकर अलग-अलग सम्मेलन होंगे, वह भी सिर्फ वोटरों को लुभाने के लिए।
राजस्थान में कांग्रेस और कलह अब एक-दूसरे के पूरक बन रहे हैं। मुख्यमंत्री गहलोत ने जैसे-तैसे साढ़े चार साल का कार्यकाल निकाल लिया है, लेकिन आखिरी छह महीने कांग्रेस आलाकमान और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भारी पड़ रहे है। क्योंकि गहलोत-पायलट के अलावा गुटबाजी के कारण और भी कई नेताओं के आपसी रिश्ते बिगड़ चुके हैं। यह लड़ाई अब सार्वजनिक मंचों पर भी नजर आने लगी है। कोई पीसीसी चीफ से भिड़ रहा है, तो कोई मंत्री से। आपसी कलह के इस तरह की वीडियो देखकर, आम जनता भी समझ नहीं पा रही है कि इनके पास आपसी लड़ाई से ही फुर्सत नहीं है तो उनके लिए आखिर काम कब करेंगे। ये सरकार चल कैसे रही है? भाषणों में राज्यमंत्री खुलेआम पर कैबिनेट मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहा है। विधायक मंत्रियों पर आरोप लगा रहे हैं। इन सबके सामने मुखिया जी बेबस हैं। वे सिर्फ अपनी ब्रांडिंग करवाने में व्यस्त हैं। महंगाई राहत शिविर कांग्रेस कार्यकर्ता शिविर दिख रहे हैं। मुखिया जी वहां घूम-घूम पर फीडबैक लेने में लगे हैं। करोड़ों रुपए खर्च करके लगाई गई चुनाव प्रबंधन कंपनी के भी सर्वे ऊपर-नीचे हो रहे हैं। उन्हें भी समझ नहीं आ रहा है कि कांग्रेसी की इस आपसी लड़ाई को आगे कैसे मैनेज किया जाएगा। ऐसी लड़ाई यह कंपनी पंजाब में भी देख चुकी है और उसका चुनाव में असर भी दिख चुका है।
पीएम मोदी की जनसभा, और फोटो खिंचवाने की होड़
पीएम नरेंद्र मोदी अजमेर से महा जनसम्पर्क अभियान का शुभारंभ करके चुनावी बिगुल राजस्थान में बजा चुके हैं। मंच पर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे और प्रदेशाध्यक्ष सीपी जोशी पीएम के अलग-बगल रहे। लेकिन फोटो सेशन के दौरान नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ कुछ ज्यादा ही सक्रिय नजर आए। माला पहनानी हो या फोटो सेशन। नेता प्रतिपक्ष राठौड़ आगे ही रहे। इसलिए पूर्व सीएम राजे को बार-बार फ्रेम से बाहर होना पड़ा। हालांकि नेता प्रतिपक्ष अपनी तारीफ से काफी खुश हैं, पीएम मोदी जनसभाओं का प्रबंधन देखकर उनकी पीठ थपथपा चुके हैं। लेकिन कई ब्लॉगर अपने ब्लॉग में बार-बार लिख रहे हैं कि आखिर पीएम मोदी ने एक भी नेता का नाम अपने भाषण में क्यों नहीं लिया। वे चाहते तो पूर्व सीएम राजे के नाम लेकर उनकी सरकार के कार्यों का जिक्र कर सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि संभवतः मोदी सार्वजनिक रूप से किसी नेता विशेष का नाम लेकर राजस्थान में चुनाव से पहले कांग्रेस जैसी गुटबाजी नहीं कराना चाहते थे। क्योंकि चुनाव तो उनके चेहरे पर ही लड़ा जाएगा।
पायलट को लेकर पत्रकार और राजनीतिक पंडित परेशान
यूं तो पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट दिल्ली के कुछ चुनिंदा पत्रकारों की सलाह से ही अपनी रणनीति तय कर रहे हैं। आमरण अनशन में पायलट के सलाहकार पत्रकारों ने दिल्ली से जयपुर आकर यह भी बता दिया कि वे पायलट के खेमे से हैं। हर खबर पायलट के इशारे पर चला रहे हैं। मुखिया जी को भी इनके बारे में पता है। हाल ही दिल्ली में उन्होंने इसका इशारा भी कर दिया था। एक-दो राष्ट्रीय चैनल तो पायलट साहब की खबरों को लेकर इतने भावुक हो चुके हैं कि वे दिन-रात इसलिए परेशान रहते हैं कि आखिर जादूगर जी का तख्तापलट कैसे किया जाए। वहीं पायलट के राजनीतिक पंडित यह खबर छपवा चुके हैं कि वे अपनी नई पार्टी बना रहे हैं। यह खबर वायरल भी हो रही है, लेकिन पुख्ता तरीके से पायलट बोल रहे हैं। उधर, कांग्रेस आलाकमान के सामने पायलट की चुप्पी से वो छुटभैये नेता परेशान हैं जो नई पार्टी में अहम जिम्मेदारी अथवा टिकट मिलने की गारंटी के चक्कर में जादूगर गहलोत से दुश्मनी मोल ले बैठे हैं। सलाहकार पत्रकार और नेता इसलिए परेशान हैं कि कहीं पायलट कांग्रेस में ही रुक गए तो उनका क्या होगा।
ई-फाइलिंग के बाद अब मठाधीशों पर नजर
मुख्य सचिव की ई-फाइलिंग योजना से सरकारी दफ्तर में फैले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश हो गया। हालांकि यह मामला रफा-दफा ही समझा जाना चाहिए क्योंकि अभी तक योजना भवन के भ्रष्टाचार का खुलासा नहीं हो सका है। बड़े अफसर पकड़ से बाहर हैं। अब मुख्य सचिव ने नया फरमान जारी किया है कि अब सरकारी दफ्तरों में तीन साल से अधिक समय तक एक ही सीट बैठे मठाधीश अब वहां नहीं टिक सकेंगे। इनका तबादला होना तय है। वैसे, यह प्रावधान पहले से ही है। लेकिन, सैटिंग और डीलिंग के चक्कर में मंत्री-अफसर इसे लागू नहीं होने देते। अगर बहुत जरूरी भी हो तो 15-20 दिन दूसरी सीट पर ट्रांसफर करके अपने चहेतों को फिर ले आते हैं। उदाहरण के तौर पर नगरीय विकास मंत्री धारीवाल जी के स्टाफ की ही डिटेल चैक करें तो पता चल जाएगा कि कौन कबसे वहां लगा है। कमोबेश ऐसी स्थिति सीएमओ से लेकर प्रिंसिपल सेक्रेटरी और विभागाध्यक्षों तक बनी हुई है। इस बार, भी ताजा आदेश में मठाधीशों के लिए गली भी निकाली गई है। यानि अत्यावश्यक होने पर अधिकारी एक सीट पर 5 साल तक बैठ सकता है। बिना रसूख वाले अफसर-कर्मचारी पहले भी परेशान थे और अब भी परेशान हैं कि आखिर जाती हुई सरकार में कैसे मलाई खाई जाए। चार महीने ही बचे हैं, फिर आचार संहिता लग जाएगी।
शासन सचिवालय में कर्मचारियों का शोर ही शोर
शासन सचिवालय में आज कल लंच टाइम में सरकारी कर्मचारियों की नारेबाजी और नुक्कड़ सभाओं वाला माहौल नजर आता है। पूरे दो-ढाई घंटे चुनाव लड़ने वाले कर्मचारी नेता अपने-अपने समर्थकों के साथ सचिवालय की विभिन्न बिल्डिगों और सेक्शनों में जाकर नारेबाजी के साथ चुनाव प्रचार करते हैं। कई आईएएस पूछते नजर आते हैं कि आखिर क्या माजरा है। तब उन्हें समझ आता है कि चुनाव का मामला है, कोई आंदोलन नहीं है। यह नारेबाजी कई आईएएस अफसरों को परेशान करती है। लेकिन, करें भी तो क्या। इस पर रोक लगाने के लिए कोई आदेश तो निकाल नहीं सकते। सो, चुपचाप सहन करने में ही भलाई है। आखिर, कर्मचारियों से पंगा कौन ले। पिछले दिनों एक अफसर ने पंगा लेने की कोशिश की थी। कुछ कर्मचारी नेता पहुंच गए उनके पास। बोले- महिला चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी आरोप लगा रही है कि आप उसे घर बुलाने को बाध्य कर रहे हैं। इतना सुनते ही अफसर जी परेशान हो गए और तुरंत कर्मचारी नेताओं से माफी मांग ली। उन्होंने फिर कभी पंगा नहीं लिया।
महंगाई राहत शिविर बनाम भाजपा का लाभार्थी सम्मेलन
भाजपा ने सीएम अशोक गहलोत के महंगाई राहत शिविर के जवाब में अब हर लोकसभा में बड़ी जनसभा और लाभार्थी सम्मेलन का ऐलान कर दिया है। पंचायत स्तर तक केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थी सम्मेलन किए जाएंगे। वहीं, सीएम अशोक गहलोत दिल्ली में पायलट विवाद वाली बैठक के बाद काफी खुश नजर आ रहे हैं। जगह-जगह जनसभाओं में सीएम गहलोत का भाषण एक ही रहता है कि आपके आर्शीवाद से तीसरी बार सीएम बना हूं। अशोक गहलोत पीएम मोदी, अमित शाह और गजेंद्र सिंह शेखावत को भी घेरना नहीं चूकते हैं। यह तीन नेता और तीन बार मुख्यमंत्री बनने को लेकर बयान लगातार सुना जा सकता है। खुद की योजनाओं को लेकर आत्ममुग्धता ऐसी कि यह योजनाएं पूरे देश में लागू करने की बार-बार मांग करते रहते हैं। भाजपा भी सीएम को जवाब देने के लिए यह दांव खेलने जा रही है। अब केंद्र की योजनाएं बना गहलोत की योजनाओं को लेकर अलग-अलग सम्मेलन होंगे, वह भी सिर्फ वोटरों को लुभाने के लिए।
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