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जल संरक्षण जैसे विषयों के प्रति लोग गंभीर नहीं है
बीकानेर । भाकृ अनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में जल संरक्षण पर राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया। केन्द्र में गत 1 अक्टूबर से चल रहे च्स्वच्छ भारत अभियान के तहत आयोजित इस कार्यशाला में अतिथि वक्ता के हेम शर्मा को आमंत्रित किया गया, जिसमें केन्द्र के वैज्ञानिकों, अधिकारियों, कर्मचारियों के अलावा आईसीएआर के कार्मिकों ने भी शिरकत की।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.एन.वी.पाटिल ने राजभाषा कार्यशाला के विषय को प्रासंगिक बताते हुए कहा कि पश्चिमी राजस्थान में जल का विशेष महत्व है तथा आमजन प्राकृतिक संसाधनों का कारगर तरीके से संरक्षण करते हैं। उन्होंने देश में जल संरक्षण हेतु परम्परागत पद्धतियों के प्रति पुन: चेतना लाने की आवश्यकता जताई। डॉ.पाटिल ने कहा कि जल संरक्षण जैसे विषयों के प्रति लोग गंभीर नहीं है, परंतु जल के दोहन, दुरूप्रयोग व प्रदूषण को देखते हुए इसके प्रति समय रहते जागरूक होना होगा।
अतिथि वक्ता हेम शर्मा ने जल संरक्षण विषयक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए बताया कि जल को कर्म चेतना का अंश माना गया है। यह सजीव जगत में ठीक वैसे ही है, जैसे पेड़ आदि को हम मानते हैं। परंतु जल जीवन का अंश होने के बावजूद इसके प्रति आमजन में चेतना का अभाव है। उन्होंने जल के अपव्यय, दुरूप्रयोग, अपर्याप्त प्रबंधन के कारण उत्पन्न जल संकट के प्रति चेताते हुए कहा कि राजस्थान में 339 ब्लॉक में से 198 ब्लॉक सूख गए हैं और डार्क जोन में आने के कारण अगर देश में जल संकट आया तो पहले नंबर पर राजस्थान होगा। इसलिए जल के प्रति जीवन दृष्टि ठीक करनी होगी मसलन इसके पुन:उपयोग करने, मितव्ययता बरतते हुए आधुनिक पद्धति से दक्षता से उपयोग लेना सीखना होगा।
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अतिथि वक्ता हेम शर्मा ने जल संरक्षण विषयक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए बताया कि जल को कर्म चेतना का अंश माना गया है। यह सजीव जगत में ठीक वैसे ही है, जैसे पेड़ आदि को हम मानते हैं। परंतु जल जीवन का अंश होने के बावजूद इसके प्रति आमजन में चेतना का अभाव है। उन्होंने जल के अपव्यय, दुरूप्रयोग, अपर्याप्त प्रबंधन के कारण उत्पन्न जल संकट के प्रति चेताते हुए कहा कि राजस्थान में 339 ब्लॉक में से 198 ब्लॉक सूख गए हैं और डार्क जोन में आने के कारण अगर देश में जल संकट आया तो पहले नंबर पर राजस्थान होगा। इसलिए जल के प्रति जीवन दृष्टि ठीक करनी होगी मसलन इसके पुन:उपयोग करने, मितव्ययता बरतते हुए आधुनिक पद्धति से दक्षता से उपयोग लेना सीखना होगा।
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