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UP: सौहार्द और सहिष्णुता की एक मिसाल हैं वजीरगंज के मंदिर-मस्जिद
सिद्दीकी कहते हैं कि हम लोग नवदुर्गा और कृष्ण अष्टमी का पर्व बहुत धूम-धाम से मिलकर मनाते हैं। यहां आज तक माहौल नहीं खराब हुआ। मंदिर
के पुजारी जोगिन्दर गिरी ने कहा कि वजीरगंज कस्बे में गौरेश्वरनाथ शंकर जी
मंदिर है। यहां से चंद कदमों की दूरी पर मस्जिद स्थित है।
जोगिन्दर कहते हैं कि हम लोग आपसी तालमेल से आरती और अजान का समय घटा-बढ़ा लेते हैं। सुबह जब आरती होती है तो अजान 15 मिनट आगे कर लेते हैं। यही क्रम परस्पर दोनों ओर से चलता है। चंद कदम की दूरी पर दोनों जगहों पर सौहार्द और सहयोग के साथ अपने-अपने ईष्ट की इबादत होती है।
पुजारी ने बताया कि यह प्रक्रिया कई दशकों से चल रही है। पूजा और इबादत बहुत सालों से हो रही है। पहले मंदिर और मस्जिद छोटे-छोटे थे। इसके बाद दोनों जगहों का विकास हो गया। गोंडा फैजाबाद मार्ग पर स्थित हमारा मंदिर आपसी भाईचारे की अनोखी मिसाल पेश करता है। यहां पर रामजन्मभूमि के आंदोलन के समय भी आपसी भाईचारा कायम रहा। यहां के लोग आंदोलन में शामिल हुए हैं। लेकिन माहौल कभी खराब नहीं हुआ।
पुजारी ने कहा कि यहां मस्जिद की अजान मंदिर की आरती और भजन को खुद बुलाती है कि अब तुम्हारी बारी है। अधिकतर धर्म की दीवारें तक एक-दूसरे से सटी हुई हैं लेकिन दोनों धर्मो के लोगों को एक-दूसरे से कोई दिक्कत नहीं है। अजान होगी तो दूसरे संप्रदाय के लोग नमाज का एहतराम करते हैं। भजन-कीर्तन के समय भी ऐसा ही होता है। सभी धर्मो के लोग एक-दूसरे के धार्मिक कार्यकर्मो में शिद्दत के साथ शिरकत करते हैं।
(IANS)
जोगिन्दर कहते हैं कि हम लोग आपसी तालमेल से आरती और अजान का समय घटा-बढ़ा लेते हैं। सुबह जब आरती होती है तो अजान 15 मिनट आगे कर लेते हैं। यही क्रम परस्पर दोनों ओर से चलता है। चंद कदम की दूरी पर दोनों जगहों पर सौहार्द और सहयोग के साथ अपने-अपने ईष्ट की इबादत होती है।
पुजारी ने बताया कि यह प्रक्रिया कई दशकों से चल रही है। पूजा और इबादत बहुत सालों से हो रही है। पहले मंदिर और मस्जिद छोटे-छोटे थे। इसके बाद दोनों जगहों का विकास हो गया। गोंडा फैजाबाद मार्ग पर स्थित हमारा मंदिर आपसी भाईचारे की अनोखी मिसाल पेश करता है। यहां पर रामजन्मभूमि के आंदोलन के समय भी आपसी भाईचारा कायम रहा। यहां के लोग आंदोलन में शामिल हुए हैं। लेकिन माहौल कभी खराब नहीं हुआ।
पुजारी ने कहा कि यहां मस्जिद की अजान मंदिर की आरती और भजन को खुद बुलाती है कि अब तुम्हारी बारी है। अधिकतर धर्म की दीवारें तक एक-दूसरे से सटी हुई हैं लेकिन दोनों धर्मो के लोगों को एक-दूसरे से कोई दिक्कत नहीं है। अजान होगी तो दूसरे संप्रदाय के लोग नमाज का एहतराम करते हैं। भजन-कीर्तन के समय भी ऐसा ही होता है। सभी धर्मो के लोग एक-दूसरे के धार्मिक कार्यकर्मो में शिद्दत के साथ शिरकत करते हैं।
(IANS)
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