2019 के नतीजे तय करेंगे कई दलों का राजनैतिक भविष्य, मिलेंगे शुभ संकेत?
नई दिल्ली। 2019 का आम चुनाव टी-20 क्रिकेट मैच से कम रोमांचक नहीं है! अच्छे-अच्छे अनुभवी तक ये तय नहीं कर पा रहे आखिर जीत का ताज किसके सर सजेगा? एक तबका यह अनुमान लगाए बैठा है कि भाजपा पूर्ण बहुमत से जीतकर 280 तक का आंकडा पार करने में सफल होगी तो वहीं दूसरी ओर कुछ का अनुमान है कि बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और गठबंधन से सरकार बननी तय है।
इस बार का चुनाव इसलिए भी दिलचस्प है क्योंकि यह चुनाव हर मोड,हर फेज़ में अलग-अलग मुद्दों पर लड़ा जा रहा है। कहीं धर्म, जाति और किसान तो कहीं राष्ट्रवाद पर लड़ा जा रहा है।
इन नतीजों का असर सीधे तौर पर कई क्षेत्रीय दलों के भविष्य और
कई नेताओं के करियर पर पड़ेगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में कई राउंड की
वोटिंग हो चुकी है। अब महज़ कुछ ही दिनों में 23 मई को नतीजे भी आ जाएंगे।
पीएम मोदी एक बार फिर से सरकार बनाने को बेताब दिखाई दे रहे
हैं तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी सियासी क़िस्मत को मज़बूत करने
और पार्टी की साख बचाने में जुटे हुए हैं। पीएम मोदी के लिए यह चुनाव
प्रतिष्ठा का है तो वहीं राहुल गांधी के लिए ये लोकसभा चुनाव करो या मरो की
स्थिति वाला है। अब जहां तक महागठबंधन का सवाल है सपा-बसपा-आरजेडी-टीएमसी
जैसे क्षेत्रीय दलों के लिए ये अपना अस्तित्व बचाने का चुनाव है।
पीएम मोदी की सरकार कई उम्मीदों और भावनाओं के साथ आई थी। 2014 में प्रचंड बहुमत से सत्ता में आए और उसके बाद एक एक कर कई राज्यों में सरकार बनाई। ब्रैंड मोदी के ज़रिए बीजेपी ने यूपी जैसे बड़े राज्य में बहुमत हासिल किया। बीजेपी ने देश में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का माहौल पैदा किया। बीजेपी इस बात को बख़ूबी जानती है कि अगर इस बार बीजेपी सत्ता में नहीं आई तो फिर भविष्य में स्थितियाँ बीजेपी के अनुकूल नहीं रहेंगी, क्योंकि मोदी के क़द का कोई और दूसरा नेता बीजेपी में फ़िलहाल दूर दूर तक नहीं है। मोदी मतलब बीजेपी और बीजेपी मतलब मोदी। संघ परिवार को भी लगता है कि अगर मोदी के नेतृत्व में दोबारा सरकार नहीं बनी तो फिर संघ की विचारधारा को विपक्ष आगे नहीं बढ़ने देगा। इसीलिए पूरी बीजेपी मोदी के पीछे कंधे से कंधा मिलाकर चुनाव जीतने की तैयारी में जुटी है। अब तक 130 से ज़्यादा रैलियां पीएम मोदी कर चुके हैं।
अब रही बात कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी कि तो उनके सामने
सबसे बड़ा चैलेंज मोदी को रोकना है। राहुल गांधी को यह पता है कि अगर फिर
से मोदी की सरकार आई तो ना सिर्फ़ गांधी परिवार की ही मुश्किलें बढ़ जाएंगी
बल्कि कांग्रेस का कार्यकर्ता भी निराश हो जाएगा। वैसे भी आज की तारीख़
में राहुल गांधी के पास वो संसाधन नहीं बचे हैं जिससे वो हाईटेक बीजेपी का
मुक़ाबला कर सकें। कांग्रेस को ये लगता है कि यह चुनाव राहुल गांधी के
भविष्य का सवाल है, अगर राहुल इस चुनाव में कामयाब नहीं हुए तो फिर आने
वाले 5 साल राहुल के लिए बेहद चिंताजनक होंगे। वैसे भी कांग्रेस के कई
दिग्गज पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी या फिर क्षेत्रीय दलों में जा चुके
हैं।
प्रियंका गांधी के सियासी करियर पर भी ये चुनाव असर डालेगा, अगर कांग्रेस जीतती है तो राहुल और प्रियंका की जोड़ी सियासत में सुपरहिट हो जाएगी और अगर कांग्रेस हारती है तो प्रियंका मैजिक यहीं पर ख़त्म हो जाएगा। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा चैलेंज अपने कोर वोट बैंक को अपने पास वापिस लाने का है। जो कि यूपी में सपा बसपा, दिल्ली में आप जैसी क्षेत्रीय दलों के पास चला गया है और ये तब ही संभव हो पाएगा जब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बने। लेकिन इसके लिए इस चुनाव में कांग्रेस को कम से कम 130 सीटों का आंकड़ा पार करना ही होगा। कांग्रेस यूपी जैसे राज्य में सिर्फ़ 3-4 सीटों पर सिमटती दिखाई दे रही है। हालाँकि कांग्रेस को दक्षिण भारत, ओडिशा, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से उम्मीदें है। इन राज्यों में कांग्रेस की सीधी लड़ाई बीजेपी से है।
इस पूरी सत्ता की लड़ाई में मजे़दार बात तो यह है कि भाजपा कभी नहीं चाहती कि कांग्रेस पूरे तरीके से साफ हो और क्षेत्रीय पार्टियां राष्ट्रीय पार्टी बन कर उभरें। क्योंकि जहाँ बीजेपी की सीधी लड़ाई कांग्रेस से होती है वहां भाजपा का प्रदर्शन शानदार होता है और जहां क्षेत्रीय दल होते हैं वहाँ बीजेपी के लिए राहें मुश्किल होती हैं।
चलिए अब थोड़ी बात करते हैं सपा, बसपा, आरजेडी और टीएमसी जैसे क्षेत्रीय दलों की जिन्होंने गांधी परिवार की नींद उड़ा रखी है। 2019 का लोकसभा चुनाव यह तय कर देगा कि क्या क्षेत्रीय दल मज़बूत होंगे या फिर अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा ? यूपी में सपा और बसपा साथ साथ हैं.
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