Udaipur: Protests against the removal of martyr Abhinav Nagauri name: Congress worker beaten up in front of Minister Jhabar Singh Kharra, BJP workers enraged after black flags were shown-m.khaskhabar.com
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Nov 17, 2025 6:37 am
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उदयपुर में शहीद अभिनव नागौरी का नाम हटाने का विरोध : मंत्री झाबर सिंह खर्रा के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता की पिटाई, काले झंडे दिखाने पर भड़के भाजपाई

khaskhabar.com: सोमवार, 06 अक्टूबर 2025 10:20 PM (IST)
उदयपुर में शहीद अभिनव नागौरी का नाम हटाने का विरोध : मंत्री झाबर सिंह खर्रा के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता की पिटाई, काले झंडे दिखाने पर भड़के भाजपाई
उदयपुर | उदयपुर में नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन मंत्री झाबर सिंह खर्रा के एक कार्यक्रम के दौरान उस समय हंगामा हो गया जब यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता काले झंडे लेकर वहां पहुंच गए। दरअसल यह विरोध संबंधित चौराहे से शहीद अभिनव नागौरी का नाम हटाने के विरोध में यह प्रदर्शन किया गया। विरोध के इस प्रतीकात्मक प्रदर्शन को भाजपा कार्यकर्ताओं ने सीधी मारपीट में बदल दिया। बीजेपी शहर जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह ने भी हाथ चलाए, जिसका वीडियो वायरल हो रहा है। घटना मंत्री के सामने ही हुई, और पुलिस को मौके पर हस्तक्षेप कर विरोधी कार्यकर्ताओं को हिरासत में लेना पड़ा। मंत्री खर्रा सोमवार रात करीब आठ बजे भुवाणा चौराहा से प्रतापनगर चौराहा तक डेकोरेटिव पोल और स्ट्रीट लाइट का लोकार्पण करने पहुंचे थे। जैसे ही लोकार्पण समाप्त हुआ और वे अपनी गाड़ी की ओर लौटने लगे, उसी वक्त यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अरमान जैन काले झंडे लेकर आगे बढ़े। अरमान ने मंत्री से कहा, “मंत्री जी, मुझे आपसे बात करनी है, ये ठीक नहीं कर रहे हैं।”लेकिन उनके हाथ में झंडा देखकर भाजपा कार्यकर्ता भड़क गए। मौके पर मौजूद भाजपा शहर जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़ सहित कई कार्यकर्ताओं ने अरमान से झंडा छीना और धक्का-मुक्की शुरू कर दी।
पुलिस के सामने हुई मारपीट
घटना पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में हुई। जैसे ही धक्का-मुक्की बढ़ी, पुलिस ने बीच-बचाव कर अरमान जैन को भीड़ से छुड़ाया।मगर माहौल पहले ही गरम हो चुका था। यूथ कांग्रेस के अन्य दो कार्यकर्ताओं ने “मंत्री खर्रा मुर्दाबाद” के नारे लगाए, जिसके बाद पुलिस ने तीनों युवाओं को हिरासत में लेकर गाड़ी में बैठा लिया।
मंत्री खर्रा का बयान: “काले झंडे से हमें फर्क नहीं पड़ता”
मामले पर प्रतिक्रिया देते हुए मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने कहा—
“हम तो गांव में पैदा हुए हैं, कालिख बहुत देखी है। काले झंडों से हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर कोई शालीनता से बात करता है, तो हम समाधान के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। लेकिन कोई अनावश्यक हुल्लड़ मचाए या दबाव बनाने की कोशिश करे, तो हम न पहले बर्दाश्त करते थे, न अब करेंगे।”
खर्रा ने आगे कहा कि लोकतंत्र में विरोध का हक सबको है, पर मर्यादा का पालन होना चाहिए।मौके पर राज्यसभा सांसद चुन्नीलाल गरासिया, उदयपुर ग्रामीण विधायक फूलसिंह मीणा, और यूडीए (UDA) के कई अधिकारी मौजूद थे।
यूथ कांग्रेस की प्रतिक्रिया: “हम शहीदों के सम्मान की बात कर रहे थे”
हिरासत में लिए गए यूथ कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव अरमान जैन ने कहा—
“हम सिर्फ यह मांग कर रहे थे कि लोकार्पण का नामकरण शहीद अभिनव नागौरी के नाम पर किया जाए। हमने अधिकारियों की गलती पर कार्रवाई की मांग रखी थी, लेकिन सुनने के बजाय हमारे साथ हाथापाई की गई। यह शहीदों का अपमान है।”
भाजपा जिलाध्यक्ष का जवाब: “शालीनता से बात की जा सकती थी”
घटना पर भाजपा शहर जिलाध्यक्ष गजपाल सिंह राठौड़ ने कहा—
“कार्यक्रम बहुत अच्छा चल रहा था। कई लोगों ने अपनी बात रखी, ज्ञापन भी दिए। लेकिन इस तरह अचानक काले झंडे लेकर आकर माहौल खराब करना अनुचित है। शालीनता से बात की जा सकती थी।”
राठौड़ ने पुलिस की ओर भी सवाल उठाए, कहा कि—
“लोग काले झंडे लेकर अंदर पहुंच गए और पुलिस को भनक तक नहीं लगी।”
पुलिस ने लिया नियंत्रण
हंगामे के बाद पुलिस ने तेजी से स्थिति को संभाला। तीनों कांग्रेस कार्यकर्ताओं को कस्टडी में लेकर थाने भेजा गया। अधिकारियों ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है और कार्यक्रम की सुरक्षा व्यवस्था पर भी पुनर्मूल्यांकन होगा।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य शहर में स्मार्ट लाइटिंग और डेकोरेटिव पोल लगाकर नगरीय सौंदर्यीकरण को बढ़ावा देना था। मगर राजनीतिक विरोध ने इस पहल को विवाद में बदल दिया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि हाल के महीनों में राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच स्थानीय स्तर पर टकराव की घटनाएं बढ़ी हैं।काले झंडे दिखाना यूथ कांग्रेस का सामान्य विरोध तरीका रहा है, लेकिन इस बार उस प्रदर्शन का जवाब हिंसा में दिया गया।
उदयपुर की यह घटना न केवल राजनीतिक असहिष्णुता की मिसाल बन गई है, बल्कि यह सवाल भी छोड़ती है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में विरोध की सीमाएं क्या हैं?क्या मंत्री के सामने काला झंडा दिखाना इतना बड़ा अपराध है कि जवाब में पिटाई हो?या फिर, क्या विरोध जताने का तरीका इतना उग्र था कि सुरक्षा बलों को तत्काल हस्तक्षेप करना पड़ा?
इन सवालों के बीच सच यही है कि सत्ताधारी और विपक्ष—दोनों ही अपने आचरण की मर्यादा को खो रहे हैं, और लोकतंत्र का असली चेहरा अब नारे और झंडों के बीच कहीं गुम-सा होता जा रहा है।

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