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हजारों की तादाद में श्रद्धालु दुर्गाष्टमी पर ज्वालामुखी में नतमस्तक

पंडित प्रबल शास्त्री ने बताया कि नवरात्र के आठवें दिन
माँ दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होती है। दुर्गा की आठवीं
शक्ति का नाम महागौरी है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है। इस गौरता की उपमा शंख,
चन्द्र और कून्द के फूल की गयी है। इनकी आयु आठ वर्ष बतायी गयी है। इनका
दाहिना ऊपरी हाथ में अभय मुद्रा में और निचले दाहिने हाथ में त्रिशूल है।
बांये ऊपर वाले हाथ में डमरू और बांया नीचे वाला हाथ वर की शान्त मुद्रा
में है। पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की
थी। इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि व्रियेअहं वरदं शम्भुं नान्यं देवं
महेश्वरात्। गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार इन्होंने शिव के वरण के लिए कठोर
तपस्या का संकल्प लिया था जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। इनकी तपस्या से
प्रसन्न होकर जब शिव जी ने इनके शरीर को पवित्र गंगाजल से मलकर धोया तब वह
विद्युत के समान अत्यन्त कांतिमान गौर हो गया, तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।
देवी महागौरी का ध्यान, स्रोत पाठ और कवच का पाठ करने से ’सोमचक्र’ जाग्रत
होता है जिससे संकट से मुक्ति मिलती है और धन, सम्पत्ति और श्री की वृद्धि
होती है। इनका वाहन वृषभ है।
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