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जनसांख्यिकीय आंकड़ों के बिना विकसित भारत का सपना अधूरा
कोविड जैसी महामारी के बाद तो जनगणना करवाना और अधिक आवश्यक हो जाता है। इस खतरनाक महामारी ने दुनिया को प्रभावित किया है। हर वर्ग के लोग कोविड से प्रभावित हुए हैं और बुरी तरह से जान-माल का नुकसान हुआ है। जनगणना के आंकड़ों से ही पता चल पाएगा कि गांव- देहात, शहरों और मेट्रोपोलिटन शहरों में खाद्य वितरण प्रणाली, आर्थिक, स्वास्थ्य, वैक्सीनेशन जैसी सुविधाओं को और बेहतर कैसे किया जा सकता है। वरिष्ठ नागरिकों, युवाओं और बच्चों के लिए जरूरी व मूलभूत सुविधाएं किस प्रकार और बेहतर की जा सकती हैं।
महामारी के बाद देश में जनसंख्या वृद्धि दर कितनी प्रभावित हुई है। इसलिए प्राकृतिक आपदा व महामारी जैसी आकस्मिक स्थिति के दौरान जनगणना के आंकड़े बहुत सहायक होते हैं। जनगणना से प्राप्त आंकड़ों से विभिन्न सामाजिक, आर्थिक , गरीब, कमजोर व अन्य जरूरतमंद वर्गों की समस्याओं को समझकर उन्हें सुधारने के प्रयास किए जाते रहे हैं। वैसे भी गरीब व कमजोर वर्गों के लिए ही सरकार का अधिक महत्व होता है। जहां तक देश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सार्वजनिक वितरण प्रणाली की बात है, आज 2011 की जनसंख्या के अनुसार ही 81 करोड़ लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत मुफ्त राशन दिया जा रहा है।
साल 2021 में या इसके बाद बाद जनगणना की जाती है तो लाभार्थियों का लगभग 10 प्रतिशत आंकड़ा बढ़ना तय है। इस बारे सरकार की क्या मंशा है, यह तो सरकार ही बेहतर बता सकती है। वर्तमान में प्रभावी योजनाओं की सख्त जरूरत भी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगामी 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का वादा भी है। इसके लिए जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर ही योजनाएं बनाई जा सकती हैं। इसके साथ-साथ देश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 तैयार की गई है, जो आगामी 2035 तक देश में पूरी तरह लागू होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP)-2020 ने उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) को 2035 तक 50% तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है यानी 2035 तक 18-23 आयु वर्ग के 50% युवाओं का उच्च शिक्षा में नामांकित किया जाना है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत प्री से माध्यमिक स्तर तक शत- प्रतिशत जनसंख्या को शिक्षा उपलब्ध करवाना है। जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही परिवार नियोजन जैसे जनसंख्या नियंत्रण के कार्यक्रम तैयार किए जाते हैं और क्रियान्वित किए जाते हैं। देश में लिंगानुपात के आंकड़े भी जनगणना से ही प्राप्त होंगे। हालांकि सरकार द्वारा बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम शुरू किया गया है फिर भी कई राज्यों में लिंगानुपात बेहद चिंताजनक स्थिति में है। इन सभी कार्यक्रमों व योजनाओं को बेहतर ढंग से लागू करने के लिए जनसांख्यिकीय आंकड़े निहायत जरूरी हैं।
जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही चुनाव क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि हर क्षेत्र को उचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिले और जनसंख्या के आधार पर संसदीय सीटें बांटी जाएँ। आगामी 2026 के बाद देश में जनगणना के आधार पर संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन भी किया जाना है। यह परिसीमन जनसंख्या के आधार पर होगा क्योंकि परिसीमन के दौरान आरक्षित सीटों को बढ़ाया जाएगा। इससे यह पता चल पाएगा कि किस क्षेत्र में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या ज्यादा है।
इसी आधार पर सीटें आरक्षित होगीं। इतना ही नहीं परिसीमन के बाद महिला आरक्षण एक्ट-2023 के तहत महिलाओं के लिए भी एक तिहाई लोकसभा और विधानसभा की सीट आरक्षित की जानी हैं। यह तभी हो सकता है, जब जनसंख्या के आंकड़े सरकार के पास होंगे। देश में जनगणना का पुराना इतिहास है। 143 वर्ष पहले 1881 में जनगणना शुरू की गई थी। उसके बाद हर 10 साल में जनगणना करवाई जा रही है। दुनिया में कोविड के चलते भारत सहित अधिकतर देशों में जनगणना का कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया था, लेकिन कोविड के बाद 100 से भी अधिक देश जनगणना करवा चुके हैं। अब भारत में भी जनगणना का इंतजार है।
जनगणना आंकड़ों के आधार पर सरकार द्वारा वित्त आयोग व विभिन्न विभागों के माध्यम से योजनाएं बनाई जाती रही हैं और उनका क्रियान्वयन होता रहा है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के पास सटीक आंकड़े होंगे तो बेहतरीन योजनाएं तैयार होगी, जिनका लाभ हर जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंच पाएगा। दूसरी ओर मंत्रालय के पास जनसांख्यिकी के आंकड़े नहीं होंगे तो देश के गरीब व जरूरतमंद लोग सरकार की योजनाओं से वंचित हो जाएंगे। ऐसे में फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय का अंत्योदय का सपना कैसे पूरा होगा।
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