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हरियाणा के गाँव बड़वा का प्राचीन झांग-आश्रम जहाँ मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने डाला था डेरा

इसी दौरान 1620 -21ईसवी के आस-पास मुग़ल बादशाह जहाँगीर उत्तरी-पूर्वी पंजाब की पहाड़ियों पर स्थित कांगड़ा के दुर्ग जाने के लिए इसी रास्ते से गुज़रे थे। इस दौरान उनकी सेना ने आराम करने के लिए इस क्षेत्र में पड़ाव डाला था। तभी उनकी मुलाक़ात संत पुरुष लोहलंगर जी महाराज से हुई। पीने के पानी की समस्या से त्रस्त बादशाह जहाँगीर की सेना ने यहाँ तालाब की ख़ुदाई कर डाली जो आज जहाँगीर तालाब के नाम से मशहूर है।
लोहलंगर गिरी जी की मृत्यु के सालों बाद सवाई गिरी, चन्दन गिरी, चरण पूरी (अंतत जीवंत समाधी धारण की) के बाद महंत बिशंबर गिरी जी ने इस आश्रम का ज़िम्मा सँभाला और जब तक जीवित रहे, यहीं रहकर तपस्या की। इन्होनें अपने सगे भाई प्रेम गिरी जी महाराज के साथ आश्रम की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए यहाँ धार्मिक अनुष्ठान जारी रखे और एक दिन प्रेम गिरी जी जीवंत समाधी को प्राप्त हुए। उनके बाद संत पुरुष हनुमान गिरी जी और महंत सेवागिरी जी महाराज आश्रम की गद्दी पर रहे।
वर्तमान में महंत सेवागिरी जी महाराज पिछले चलीस सालों से हमारी पुरातन संत- परंपरा को बनाये हुए है और क्षेत्र की मंगल कामना में लगे रहते हैं। बड़वा के झांग आश्रम के बारे गाँव और आस-पास के लोगों की मान्यता है कि झांग-आश्रम क्षेत्र के लिए एक आध्यात्मिक चमत्कार है। लोगों की मान्यता है कि आश्रम के संत पुरुषों के प्रताप और दैवीय शक्ति का ही परिणाम है कि बड़वा के आस-पास के क्षेत्र में ओला- वृष्टि और टिड्डी-दल से नुकसान झेलना पड़ता है। मगर आश्रम के आदि- प्रभाव की वज़ह से गाँव बड़वा के क्षेत्र में ऐसा पिछले सालों में कभी नहीं हुआ। यही नहीं यहाँ के बुज़ुर्ग लोगों में एक किंवदंती भी है कि आश्रम के महाराज चरण पूरी जी मायावी शक्तियों के धनी थे।
उनका दावा था कि गाँव बड़वा में कभी भी ओला वृष्टि और टिड्डी दल से एक पैसे का भी नुकसान नहीं होगा। वह एक मायावी संत थे और अपना चोला बदलने में माहिर थे। रात को वह शेर का रूप धारणकर विचरण करते थे। यही कारण है कि उनके रहते रात के दस बजे के बाद आश्रम में प्रवेश वर्जित था। हो सकता है आधुनिक विज्ञान इन तथ्यों से सहमत न हो फिर भी ये आश्रम गाँव और आस-पास के लोगों के लिए अटूट श्रद्धा और विश्वास का प्रतीक है। लोगों को यहाँ आने पर अपार शान्ति और एक दिव्य शक्ति की अनुभूति ज़रूर होती है। वैसे तो बड़वा के झांग आश्रम में हर दिन भजन- कीर्तन और यज्ञ होते है।
मगर आश्रम के सबसे प्रतिष्ठित संस्थापक संत महंत विशमबर गिरी जी की पुण्यतिथि (माघ कृष्ण पक्ष दसवीं) पर एक राष्ट्रीय संत-समागम और भंडारा, आश्रम की मंडली के द्वारा आयोजित किया जाता है। जिसमें हज़ारों की संख्या में संत और श्रद्धालु आश्रम के दर्शन हेतु पहुँचते है। इस दौरान क्षेत्र में शान्ति हेतु महायज्ञ किये जाते हैं और शान्ति के लिए मनोकामना की जाती है। आश्रम में होने वाले प्रतिदिन ख़र्चे का बोझ दान स्वरूप आई राशि से वहन होता है। जिसका वार्षिक हिसाब रखा जाता है।
यही नहीं आश्रम के पास ख़ुद की सैंकड़ों एकड़ ज़मीन है जिसका आय का उपयोग यहाँ होने वाले धार्मिक कार्यकमों के ख़र्चे में किया जाता है। इसके साथ झांग मंडली आश्रम के कार्यों में हर तरह सेसहयोग करती है। झांग आश्रम बड़वा, हिसार शहर से लगभग 27 किलोमीटर दूर स्थित है। इसमें महंत- पुरियों की समाध के साथ-साथ हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर है। गाँव के प्रबुद्ध नागरिकों नाहर सिंह तंवर, मास्टर अजय शर्मा, संजय स्वामी, लालसिंह लालू ने बताया कि देश भर के कई शहरों से लोग इस ऐतिहासिक जगह पर आते हैं और वे आश्रम को जानना चाहते हैं और वे अपने जीवन में अनुसरण करना चाहते है।
यहाँ पहुँचने के लिए कई मार्ग है। दिल्ली से निकटतम हवाई अड्डा हिसार है। दिल्ली, चंडीगढ़ तक नियमित उड़ानें हैं। आगे सड़क मार्ग से आया-जाया जा सकता है। ट्रेन द्वारा-हिसार से निकटतम रेलवे स्टेशन नलोई बड़वा और सिवानी है। आश्रम से लगभग 4 किमी दूर दो रेलवे स्टेशन है। सड़क के द्वारा-बड़वा झांग सड़क मार्ग द्वारा हिसार-राजगढ़ नेशनल हाईवे के साथ जुड़ा हुआ है। आश्रम, बड़वा गाँव के बस स्टैंड से लगभग 2 किलोमीटर दूर नलोई सड़क मार्ग पर स्थित है।
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