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जेजेपी के चलते फिर से राजस्थान में फोकस में आई आरएलडी, आरएलपी और बीटीपी
ऐसे में वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि दो दलीय राज्य होने के बावजूद इस बार कई छोटे-छोटे प्लेयर्स के मैदान में उतरने से राज्य में नए समीकरण देखने को मिलेंगे।
ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी ने पहले ही राज्य में प्रवेश करने की योजना की घोषणा कर दी है। यह टोंक जैसे कई जिलों की संभावनाओं को बदल देगा, जो कि सचिन पायलट का निर्वाचन क्षेत्र है।
राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि अधिकांश मुस्लिम वोट उनके साथ जाएंगे, जो कांग्रेस की संभावनाओं में सेंध लगाएंगे।
इसी तरह, रालोद पहले से ही सत्तारूढ़ कांग्रेस के साथ गठबंधन में है और इसके विधायक सुभाष गर्ग को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दाहिना हाथ माना जाता है और राज्य मंत्री हैं। अभी के लिए, ऐसा लगता है कि गठबंधन बने रहने के लिए है।
हरियाणा की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने भी राज्य की चुनावी राजनीति में उतरने का ऐलान कर दिया है। इसने उन सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला किया है जहां बीजेपी कमजोर है, इसलिए इससे भगवा पार्टी को राज्य के जाट क्षेत्र में समर्थन हासिल करने में मदद मिलेगी।
जेजेपी अध्यक्ष अजय सिंह चौटाला ने कहा कि पार्टी फतेहपुर, सूरतगढ़, कोटपूतली, नोहर, भादरा और लूणकरणसर समेत कई सीटों पर चुनाव लड़ेगी। पार्टी हरियाणा में भाजपा की सहयोगी है।
यहां यह बताना जरूरी है कि जाट कांग्रेस का वोट बैंक रहे हैं और इसलिए जेजेपी के आने से भगवा पार्टी को इस समुदाय में पैठ बनाने में मदद मिलेगी जो सतीश पूनिया को अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से ही भाजपा से नाराज है।
अगले क्षेत्रीय खिलाड़ी राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के संयोजक हनुमान बेनीवाल हैं, जिन्होंने कृषि कानून के मुद्दों पर पार्टी के साथ मतभेदों के कारण भाजपा से नाता तोड़ लिया था। जाट नेता ने सचिन पायलट को अपनी पार्टी बनाने के लिए आमंत्रित किया है और कहा है कि अगर वह नई पार्टी बनाते हैं तो वह उनका समर्थन करेंगे।
हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी बीजेपी और कांग्रेस के विरोध वाली किसी भी पार्टी से गठबंधन करने के लिए तैयार है।
उन्होंने यह भी ऐलान किया कि अगर तीसरा मोर्चा बनता है तो वह आगामी चुनावों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को हरा सकते है।
एक अन्य क्षेत्रीय प्लेयर भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) है जिसके तीन विधायक हैं। जबकि पार्टी ने राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस को समर्थन दिया था, यह विभाजित हो गया क्योंकि इसके एक विधायक ने पार्टी के निर्देशों का पालन नहीं किया और वोट नहीं दिया।
संभावना है कि गुजरात स्थित इस पार्टी में दरार आ जाएगी और राज्य में आदिवासियों के मुद्दों को संबोधित करने के लिए एक नई पार्टी आ सकती है।
ऐसे में लाख टके का सवाल है कि क्या दो दलों वाले राज्य में तीसरा मोर्चा उभरेगा। जहां वरिष्ठ नेताओं ने इन अटकलों को खारिज कर दिया है, वहीं बेनीवाल जैसे पार्टी नेता इस विश्वास के साथ बोल रहे हैं कि तीसरा मोर्चा अगले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और भाजपा को सरकार बनाने से रोक देगा।
--आईएएनएस
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