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शराबबंदी वाले बिहार में शराब पीकर मरने वालों के परिजनों को मिलने वाले मुआवजा की शर्तों पर उठे सवाल

पटना। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जहरीली शराब पीकर मरने वालो के परिजनों को चार-चार लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा सोमवार को कर दी। लेकिन उसके लिए लगाए गए शर्तों को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं।
बताया जा रहा है कि मुआवजा उन्हीं मृतकों के परिजनों को मिलेगा जो यह बताएंगे कि वे शराब कहां से खरीदी और पी है। अब कहा जा रहा है कि जब शराब पीने वाला ही मर चुका होगा तो वह कैसे बताएगा या उसके परिजन कहां से जान पाएंगे कि शराब कहा से खरीदा गया था।
सरकार भी मानती है कि मरने वालों में अधिकांश गरीब परिवार के होते है और मृत्यु के बाद पूरे परिवार पर असर पड़ता है।
मुआवजे के लिए कहा गया है कि 17 अप्रैल 2023 के बाद के मृतकों का पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेना अनिवार्य है। अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अगर ऐसी घटना होती है, तो कितने लोग पोस्टमार्टम करवाने अस्पताल पहुंचेंगे और कितने लोग पोस्टमार्टम रिपोर्ट रखते हैं।
उल्लेखनीय है कि मद्य निषेध और निबंधन विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक ने सोमवार को सभी जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जारी पत्र में कहा है कि अनुग्रह अनुदान के लिए मृतक के परिजन को लिखित आवेदन जिलाधिकारी को देना होगा, जिसमें यह लिखना होगा कि वे शराबबंदी के समर्थन में हैं और इसके लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करेंगे।
साथ ही जहरीली शराब से हुई मृत्यु से संबंधित अनुसंधान में उन्हें पूरा सहयोग करना होगा। पत्र में कहा गया कि अनुग्रह अनुदान एक अप्रैल, 2016 के बाद से जहरीली शराब से मरने वाले सभी मृतकों के आश्रितों को दिया जायेगा।
इधर, भाजपा के प्रवक्ता और पूर्व विधायक मनोज शर्मा कहते है कि सरकार मुआवजा के नाम पर बिहार के लोगों को मूर्ख बना रही है।
उन्होंने कहा कि एक तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हठधर्मिता के कारण बिहार के मासूम लोगों की जान जा रही है। पहले तो जहरीली शराब की वजह से हजारों परिवार बर्बाद हो गए और अब मुआवजा देने का एलान भी किया गया तो कई तरह के पेंच लगा दिए गए, ताकि पीड़ित परिवार तक मुआवजा की राशि पहुंचे ही नहीं।
बहरहाल, सरकार ने मुआवजे की घोषणा कर विपक्ष का एक बड़ा मुद्दा समाप्त भले कर दिया है। लेकिन यह तय है कि मुआवजे को लेकर एक बार फिर बिहार की सियासत गर्म होगी।
(आईएएनएस)
बताया जा रहा है कि मुआवजा उन्हीं मृतकों के परिजनों को मिलेगा जो यह बताएंगे कि वे शराब कहां से खरीदी और पी है। अब कहा जा रहा है कि जब शराब पीने वाला ही मर चुका होगा तो वह कैसे बताएगा या उसके परिजन कहां से जान पाएंगे कि शराब कहा से खरीदा गया था।
सरकार भी मानती है कि मरने वालों में अधिकांश गरीब परिवार के होते है और मृत्यु के बाद पूरे परिवार पर असर पड़ता है।
मुआवजे के लिए कहा गया है कि 17 अप्रैल 2023 के बाद के मृतकों का पोस्टमार्टम रिपोर्ट लेना अनिवार्य है। अब सवाल यह उठाया जा रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अगर ऐसी घटना होती है, तो कितने लोग पोस्टमार्टम करवाने अस्पताल पहुंचेंगे और कितने लोग पोस्टमार्टम रिपोर्ट रखते हैं।
उल्लेखनीय है कि मद्य निषेध और निबंधन विभाग के अपर मुख्य सचिव के के पाठक ने सोमवार को सभी जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को जारी पत्र में कहा है कि अनुग्रह अनुदान के लिए मृतक के परिजन को लिखित आवेदन जिलाधिकारी को देना होगा, जिसमें यह लिखना होगा कि वे शराबबंदी के समर्थन में हैं और इसके लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करेंगे।
साथ ही जहरीली शराब से हुई मृत्यु से संबंधित अनुसंधान में उन्हें पूरा सहयोग करना होगा। पत्र में कहा गया कि अनुग्रह अनुदान एक अप्रैल, 2016 के बाद से जहरीली शराब से मरने वाले सभी मृतकों के आश्रितों को दिया जायेगा।
इधर, भाजपा के प्रवक्ता और पूर्व विधायक मनोज शर्मा कहते है कि सरकार मुआवजा के नाम पर बिहार के लोगों को मूर्ख बना रही है।
उन्होंने कहा कि एक तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हठधर्मिता के कारण बिहार के मासूम लोगों की जान जा रही है। पहले तो जहरीली शराब की वजह से हजारों परिवार बर्बाद हो गए और अब मुआवजा देने का एलान भी किया गया तो कई तरह के पेंच लगा दिए गए, ताकि पीड़ित परिवार तक मुआवजा की राशि पहुंचे ही नहीं।
बहरहाल, सरकार ने मुआवजे की घोषणा कर विपक्ष का एक बड़ा मुद्दा समाप्त भले कर दिया है। लेकिन यह तय है कि मुआवजे को लेकर एक बार फिर बिहार की सियासत गर्म होगी।
(आईएएनएस)
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