Prime Minister Narendra Modi own self-made standards of influence and visibility-m.khaskhabar.com
×
khaskhabar
Oct 12, 2024 2:46 pm
khaskhabar
Location
Advertisement

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छपास और दिखास के अपने स्वगढ़ित मापदंड

khaskhabar.com : रविवार, 31 मार्च 2024 10:03 AM (IST)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के छपास और दिखास के अपने स्वगढ़ित मापदंड
गामी लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने कई पूर्व सांसदों को पुनः पार्टी प्रत्याशी नहीं बनाया। यदि आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो बीजेपी ने अभी तक लगभग 34 प्रतिशत वर्तमान सांसदों के टिकट काटे हैं। कहा जा रहा है बीजेपी ने यह क़दम सत्ता विरोधी लहर से बचने के लिए उठाया है।

जिन चर्चित परन्तु विवादित सांसदों को इस बार पार्टी ने प्रयाशी नहीं बनाया है उनमें भोपाल की सांसद प्रज्ञा ठाकुर, उत्तरा कन्नड़ा के सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े, दक्षिणी दिल्ली के सांसद रमेश बिधूड़ी तथा पश्चिमी दिल्ली के सांसद परवेश सिंह वर्मा जैसे नाम शामिल हैं। जबकि ग़ाज़ियाबाद से सांसद केन्द्रीय मंत्री जनरल वी के सिंह, बाराबंकी के सांसद उपेन्द्र रावत, बदायूं से स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य, कानपुर नगर सीट से सत्यदेव पचौरी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण, गुजरात के वडोदरा से बीजेपी सांसद रंजनबेन भट्ट, साबरकांठा से भीखाजी दुधाजी ठाकोर, हज़ारी बाग़ के सांसद जयंत सिन्हा जैसे और भी कई नेता हैं जो किसी न किसी कारणवश स्वयं चुनाव लड़ना ही नहीं चाहते।
जिन सांसदों के टिकट काटे गए हैं उनमें कई विवादित चेहरों पर यह चर्चा छिड़ी है कि खांटी हिंदुत्ववाद की राजनीति पर विश्वास करने वाली तथा इसी एजेंडे पर चलते हुए सफलता की मंज़िलें तय करने वाली भाजपा ने आख़िर उन सांसदों का टिकट क्यों काट दिया जो पार्टी के ही एजेंडे को समय समय पर आगे बढ़ाते हुये मुखरित होकर अपनी बात कहते रहे हैं?
उदाहरण के तौर पर प्रज्ञा ठाकुर को साल 2019 में जिस समय भाजपा ने मध्यप्रदेश के भोपाल की सीहोर लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया था उससे पूर्व वे मालेगांव आतंकी घटनाओं के लिए जेल जा चुकी थीं तथा चुनाव के समय ज़मानत पर थीं। उनकी यही उपलब्धि उनकी 'लोकप्रियता' का कारन बनी। चुनाव जीतने के बाद एक के बाद एक कर उन्होंने कई ऐसे बयान दिए जिससे पार्टी की किरकिरी होने लगी। कभी गांधी के विरुद्ध बोलना तो कभी गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताना, कभी शहीद हेमंत करकरे को श्राप देने जैसी शर्मनाक बात कहना तो कभी हिन्दू समाज के लोगों को चाक़ू तेज़ करवाकर घरों में रखने की सलाह देना, ऐसी कई बातें थीं जो विवादित व आपत्तिजनक तो ज़रूर होती थीं परन्तु देश में बढ़ते वर्तमान साम्प्रदायिक वैमनस्यपूर्ण वातावरण में प्रज्ञा ठाकुर जैसे कट्टरवादी लोगों को 'लोकप्रियता' व प्रसिद्धि भी दिलाती थीं।
ऐसा ही एक नाम अनंत कुमार हेगड़े का भी है। जन्म से ही यह संघ संस्कारी हैं लिहाज़ा यह माना जा सकता है कि इनके मुंह से निकले हर बोल संघ की विचारधारा का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। यह मनुस्मृति लागू करने की बात खुलकर करते रहे हैं। संविधान से धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने के लिए "संविधान में संशोधन" की बात करते हैं। हेगड़े ताजमहल को मूल रूप से एक शिव मंदिर और ताज महल को तेजो महालय बताते फिरते हैं। हेगड़े न केवल राहुल गांधी को कांग्रेस प्रयोगशाला में पाया जाने वाला हाइब्रिड उत्पाद बता चुके हैं बल्कि राहुल को यह भी कह चुके हैं कि राहुल गांधी मुस्लिम पिता और ईसाई मां से पैदा होने के बावजूद ब्राह्मण होने का दावा करते हैं।
सत्ता के अहंकार के नशे में चूर हेगड़े ने एक पूर्व आईएएस अधिकारी एस. शशिकांत सेंथिल को केवल ग़द्दार ही नहीं कहा था बल्कि उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह भी दे डाली थी। हेगड़े की बदज़ुबानी व उनके संघी संस्कार का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वे महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली आज़ादी की लड़ाई को महज़ एक नाटक मानते हैं। वे गांधी को महात्मा भी नहीं मानते साथ ही यह संगीन आरोप भी लगाते हैं कि भारत में स्वतंत्रता आंदोलन अंग्रेज़ों की सहमति और समर्थन से चलाया गया था। कुछ समय पूर्व ही हेगड़े भाजपा द्वारा 400 सीटें जितने के दावे की वजह संविधान संशोधन कर मनुस्मृति लागू करना बता चुके हैं।
इसी तरह दक्षिणी दिल्ली के जिस सांसद रमेश बिधूड़ी का टिकट कटा है ये वही हैं जिन्होंने लोकसभा में अमरोहा के संसद दानिश अली के विरुद्ध धर्म आधारित अपमानजनक टिप्पणी भी की थी और उन्हें धमकाया भी था। अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में देश को बदनाम करने वाली इस घटना ने सुर्ख़ियां बटोरी थीं। जबकि पश्चिमी दिल्ली के सांसद परवेश सिंह वर्मा भी वह नेता हैं जिन्होंने शाहीन बाग़ आंदोलन के समय बेहद घटिया व अपमानजनक बातें की थीं। परन्तु मौजूदा बढ़ते साम्प्रदायिक राजनैतिक रुझान के अनुसार इन सभी नेताओं का क़द इनकी विवादित टिप्पणियों से ज़रूर ऊंचा हुआ भले ही इनकी पार्टी को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिन्दिगी का सामना क्यों न करना पड़ा हो।
उपरोक्त नेताओं के विवादित बोल और इसके चलते इन्हें मिलने वाली शोहरत के सन्दर्भ में अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 25 मई 2019 को दूसरी बार चुनकर आने के बाद अपने नवनिर्वाचित सांसदों को दिया गया 'सफलता का मोदी मंत्र' ज़रूर याद करिए जब उन्होंने कहा था कि 'यदि कुछ करना है तो छपास और दिखास से बचें। अखबार में छपने और टीवी पर दिखने से बचें। नेता कम, शिक्षक अधिक नजर आएं।
केवल सांसदों को ही नहीं बल्कि 2020 में सिविल सर्विसेज़ प्रोबेशनर्स को भी प्रधानमंत्री मोदी ''दिखास' और 'छपास' रोगों से दूर रहने की सलाह दे चुके हैं। सवाल यह है कि क्या प्रज्ञा ठाकुर, अनंत कुमार हेगड़े, रमेश बिधूड़ी व परवेश सिंह वर्मा जैसे लोगों का टिकट उनके अनर्गल बयानों की वजह से काटा गया? यदि इसे मापदंड माना जाये तो अनुराग ठाकुर का टिकट क्यों नहीं काटा गया जिसने 'गोली मारो सालों को' जैसा नारा दिया था? फिर बेंगलुरु दक्षिणी से तेजस्वी सूर्या का टिकट क्यों नहीं काटा गया जिनके विवादित बयानों से मध्य एशिया के कई अरब देश भारत को अपना विरोध दर्ज करा चुके हैं?
दरअसल किसी को पार्टी प्रत्याशी बनाने या न बनाने का यह कोई निर्धारित फ़ार्मूला है ही नहीं। स्वयं नरेंद्र मोदी भी कई अवसरों पर अत्यंत अमर्यादित व स्तरहीन टिप्पणियां करते सुने जा चुके हैं। कभी मोदी 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड कहते सुने गये तो कभी कांग्रेस की विधवा कभी 'शमशान क़ब्रिस्तान' तो कभी 'दीदी ओ दीदी' तो कभी 'इनकी पहचान कपड़ों से होती है', और न जाने क्या क्या। प्रधानमंत्री के स्तर की कोई भाषा नहीं है फिर भी उनके इन विवादित बयानों से उन्हें ''दिखास' और 'छपास' दोनों ख़ूब मिली।
तो क्या प्रधानमंत्री मोदी ने ''दिखास' और 'छपास' को केवल अपने लिए 'सर्वाधिकार सुरक्षित' कर लिया है या विवादित बयान देने वाले अपने कई नेताओं के टिकट काट कर शेष नेताओं को यह सन्देश देने की कोशिश है कि 'दिखास और छपास' की रेस में वे आगे न रहें बल्कि इसपर पहला अधिकार केवल उन्हीं का है और यह भी कि विवादित बयान देने वाले किस नेता को मुआफ़ करना है और किसे नहीं यह निर्धारित करना भी उन्हीं का काम है? 'छपास और दिखास' के इस तरह के स्वगढ़ित मापदंड देखकर तो यही कहा जा सकता है।

ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे

Advertisement
Khaskhabar.com Facebook Page:
Advertisement
Advertisement