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पंडित राजेंद्र राव - गायन वादन और नृत्य का संगम

जयपुर । पंडित राजेंद्र राव गायन वादन और नृत्य का संगम हैं । गुरु शिष्य परंपरा के संवाहक राजेंद्र ने पिछले 38 वर्षों से शिक्षक की भूमिका में रहकर गुरु के रूप में पहचान कायम की है । पंडित राजेंद्र राव आज भी विद्यार्थी बनकर अपनी नृत्य कला शैली का प्रदर्शन करते हैं । कथक की बारीकियों के साथ-साथ राजेंद्र लोकनृत्य के भी जानकार व प्रशिक्षक हैं। राव कथक गुरु शिरोमणि पंडित गिरधारी महाराज और नृत्य गुरु डॉ. शशि सांखला के पश्चात संभवतः तीसरे ऐसे व्यक्ति हैं जो कथक के साथ लोक नृत्य और लोकगीतों के सभी अंगों पर अधिकार पूर्वक दखल रखते हैं ।
गुरु के साथ ही गीतकार व संगीत संयोजक के रूप में भी राव अपनी अलग पहचान रखते हैं। वादन, ताल, नृत्य, गायन गीतकार संगीत परिकल्पना व संगीत संयोजन जैसे क्षेत्रों में काम करते हुए राव ने कई प्रसिद्ध नाटककारों के साथ नाटकों के लिए नृत्य निर्देशन किया है। राव संगीत और नृत्य की एक ऐसी संस्था हैं जो अपने आप में सब रंग समेटे हुए हैं. उन्होंने संगीत में भातखंडे महाविद्यालय लखनऊ से विशारद डिग्री प्राप्त की ।
पंडित भंवरलाल राव जी से तबला की शिक्षा गुरु शिष्य परंपरा में रहकर सीखी । ये नृत्य गुरु पंडित गिरधारी महाराज से गंडाबंद शागिर्द रहते हुए गत 38 वर्षों से गुरु शिष्य परंपरा में नृत्य की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. कथक, भवाई, लावणी, चिरमी, नागा और भंगड़ा इनकी परंपरागत नृत्य शैलियां है। इन्होंने भवाई नृत्य का विभिन्न संस्थाओं में 45, 40, 35, 30, 27 और 20 घंटों में प्रशिक्षण प्रदान कर में कलाकार को मंचीय प्रस्तुति करवाने का रिकॉर्ड स्थापित किया है।
गुरु के साथ ही गीतकार व संगीत संयोजक के रूप में भी राव अपनी अलग पहचान रखते हैं। वादन, ताल, नृत्य, गायन गीतकार संगीत परिकल्पना व संगीत संयोजन जैसे क्षेत्रों में काम करते हुए राव ने कई प्रसिद्ध नाटककारों के साथ नाटकों के लिए नृत्य निर्देशन किया है। राव संगीत और नृत्य की एक ऐसी संस्था हैं जो अपने आप में सब रंग समेटे हुए हैं. उन्होंने संगीत में भातखंडे महाविद्यालय लखनऊ से विशारद डिग्री प्राप्त की ।
पंडित भंवरलाल राव जी से तबला की शिक्षा गुरु शिष्य परंपरा में रहकर सीखी । ये नृत्य गुरु पंडित गिरधारी महाराज से गंडाबंद शागिर्द रहते हुए गत 38 वर्षों से गुरु शिष्य परंपरा में नृत्य की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. कथक, भवाई, लावणी, चिरमी, नागा और भंगड़ा इनकी परंपरागत नृत्य शैलियां है। इन्होंने भवाई नृत्य का विभिन्न संस्थाओं में 45, 40, 35, 30, 27 और 20 घंटों में प्रशिक्षण प्रदान कर में कलाकार को मंचीय प्रस्तुति करवाने का रिकॉर्ड स्थापित किया है।
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