अपनों से अपनी बातः मातृ शक्ति के सम्मान से समृद्धिः प्रशांत अग्रवाल

उन्होंने बताया कि जन्मजात विकलांगता अथवा हादसों में हाथ-पैर गंवाने के बाद वे लम्बे समय तक नैराश्य और अवसाद में रहे। लेकिन यहां उन्हें न केवल खड़े होने का सहारा बल्कि रोजगारोन्मुख प्रशिक्षणों के माध्यम से आत्म निर्भरता भी मिली। अग्रवाल ने कहा कि मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। अतएव हमें ऐसे काम करने चाहिए जिससे जन्म सार्थक हो जाए।
उन्होंने कहा कि अपने माता-पिता के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। हमारे सुख-दुःख में बाहरी सम्बन्ध ज्यादा काम नहीं आते। कठिनाई के समय परिवार ही हाथ थामता है। वही सर्वोपरि रहना चाहिए। भगवान श्रीराम ने अपने पिता के दिए वचनों का मान रखने के लिए चौदह वर्ष का वनवास सहज स्वीकार कर लिया था। जिन्हें हम आज मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में पूजते हैं। उन्होंने कहा कि हमें ऐसे लोगों की संगति नहीं करना चाहिए जो हमेशा कमियां और दोष ही ढूंढते हैं। लेकिन उनके पास उनके निवारण का कोई विकल्प नहीं होता।
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