जयपुर साहित्य उत्सव में मेवाड़ के औदिच्य और सालवी ने किया प्रतिनिधित्व

साहित्य उत्सव में भाषा के विभिन्न पक्षों को को लेकर रानी लक्ष्मी कुमारी चुंडावत, सीताराम लालस, किशोर कल्पना कांत, चतर सिंह बावजी, नृसिंह राजपुरोहित, ओम पुरोहित कागद, कन्हैया लाल सेठिया आदि की स्मृति में सत्रों का आयोजन किया गया। 'भाषा री रमझोल कुण सी राजस्थानी' विषय पर बोलते हुए चेतन औदिच्य ने कहा कि राजस्थानी भाषा का स्वरूप अन्य भाषाओं से अधिक विस्तृत है क्योंकि इसमें मेवाड़ी, मारवाड़ी, ढूंढाड़ी, हाड़ोती, वागड़ी, बागड़ी, अहीरवाटी, रांगड़ी, ब्रज जैसी अन्य बोलियों के शब्दों का भंडार मिश्रित है। बोलियां तो अपने स्वभाव में अलग-अलग स्थान पर अलग-अलग तरह से ही बोली जाएंगी लेकिन उसके दूसरे पक्ष में भाषा का मानक रूप बनाने हेतु राज्य सरकार तथा अन्य संगठनों के प्रयासों से एकरूपता लाई जा सकती है। इस अवसर पर डॉ सुरेश सालवी ने राजस्थानी भाषा के वैज्ञानिक स्वरूप तथा व्याकरण सम्मत पक्षों पर अपनी बात रखी।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि आईएएस डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने कहा कि राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हम सभी को अपना योगदान निभाना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भाषा में अधिक बोलियों का होना उसकी समृद्धता है। राजस्थानी में व्याकरण बोध भी है, देवनागरी लिपि में लिखी जाती है ऐसे में राजस्थानी का उपयोग करने में झिझकना नहीं चाहिए। ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि राज्य सरकार राजस्थानी को बढ़ावा देने और कला व संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन के लिए कटिबद्ध है। जेकेके की अतिरिक्त महानिदेशक अलका मीणा ने राज्य सरकार, सभी साहित्यकारों और प्रतिभागियों का आभार व्यक्त किया।
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