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अंतराष्ट्रीय थियेटर फेस्टिवल : ‘बालीगंज 1990’ का मंचन, खूब भाया...यहां देखें तस्वीरें

नाट्य विधाओं की सम सामयिक स्थिति और आवश्यकताओं पर हुआ मंथन
जोधपुर। तीन दिन तक नाट्य विधाओं की धूम मचाने के बाद राजस्थान का पहला अंतराष्ट्रीय थियेटर फेस्टिवल बुधवार शाम सम्पन्न हो गया। फेस्टिवल के समापन दिवस पर ‘नाट्य निर्देशन के बदलते स्वरूप’ विषय पर रंग मंथन हुआ तथा शाम को मुम्बई के अतुल सत्य कौशिक निर्देशित नाटक ‘बालीगंज 1990’ का मंचन हुआ। भारतीय फिल्म एवं रंगमंच जगत के मशहूर अभिनेता अनूप सोनी और निवेदिता भट्टाचार्य ने अपने प्रभावी अभिनय से रसिकों का मन मोह लिया।
मशहूर रंगकर्मियों की सार्थक चर्चा ने दी दिशा-दृष्टि
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर द्वारा आयोजित जोधपुर इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल के समापन दिवस पर रंग मथन टॉक शो में ‘नाट्य निर्देशन के बदलते स्वरूप’ विषय पर प्रभावी संवाद अयोजित हुआ, जिसमें राज्य मेला प्राधिकरण उपाध्यक्ष श्री रमेश बोराणा, देश के वरिष्ठ नाट्य निर्देशक श्री भानु भारती एवं श्री अतुल सत्य कौशिक से जोधपुर के सक्रिय रंगकर्मी अरु व्यास ने बातचीत की।
नाटक समाज की गहरी जरूरत
गहन चर्चा में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पायोनियर एवं लीजेंडरी लेखक निर्देशक श्री भानु भारती ने नाटक होने की संभावना को समाज की गहरी जरूरत बताया। घर गायब हो रहे हैं और बाजार उग रहे हैं और बाजारवाद में रंगमंच के लिए छत ढूंढना बहुत जरूरी है।
वर्तमान का दिग्दर्शन महत्त्वपूर्ण
उन्होंने कहा कि किसी भी नाटक में वर्तमान परिप्रेक्ष्य परिलक्षित होना आज की नाटक की आवश्यकता है। नाटक एक पात्र की मानिन्द है जिसमें कलाओं के सभी आयाम समाविष्ट होकर उसमें ढल जाते हैं, इन सभी आयाम का समावेश वर्तमान पीढ़ी को नाटक के प्रति अवश्य आकर्षित करेगा। मशीन और मनुष्य के इस संधि काल में मनुष्य को मनुष्य बने रहना जरूरी है।
निर्देशक से लेकर प्रेक्षक तक के लिए अहम् है मंचन का प्रभाव
‘स्कूल ऑफ थॉट’ पर बात करते हुए प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक श्री अतुल सत्य कौशिक ने कहा कि निर्देशक या तो मेक बिलीव वातावरण तैयार करता है या सेट वैसा ही दिखाना चाहता है जैसा प्रेक्षक उसे देखना चाहता है यह दोनों ही सिद्धान्त भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर दृश्य निर्माण करने की पहुंच तय करता है। उन्होंने यह भी कहा कि अज्ञानी के पास आत्मविश्वास भरपूर होता है जबकि ज्ञानी हमेशा संशय में रहता है, जाने बिना ज्ञान की बात करना पीढ़ियों को नष्ट करना है कलाकार में नैसर्गिक गुण स्वयं उद्घाटित होते हैं।
अभ्यास लाता है रंगमंचीय निखार
परिचर्चा में वरिष्ठ नाट्यधर्मी व राज्यमंत्री, राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री रमेश बोराणा ने कहा कि दुस्साहस करने वाले निर्देशकों की वजह से मंच पर दुर्घटनाएं होती हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इतिहास पढ़ने से वर्तमान मजबूत होता है। दृष्टि हमें खुद ही पैदा करनी पड़ती है, नाटक कभी कोई क्रान्ति नहीं करता कला के प्राकृतिक गुणों के साथ अभ्यास से रंगमंच पर निखार आता है।
नाटकीय परिस्थितियां जरूरी हैं नाटक के लिए
निर्देशक एवं राष्ट्रीय स्तर के लेखक श्री बृजमोहन व्यास ने नाटक के ‘क्या, क्यूं और किसके लिये’ पर अपने वक्तव्य में कहा कि जैविक कारणों से उपजे व्यक्ति के पास तार्किक उत्तर नहीं होता है, नाटक के लिये नाटकीय परिस्थितियों का होना भी एक स्वर्णिम अवसर होता है, इस बात का यदि ख्याल रखा जाए तो नाटक अपने मूल मंत्र तक जरूर पहुंचता है और नाट्य निष्पत्ति अवश्य होती है।
निर्देशक और लेखक अहम् किरदार
सशक्त अभिनेता एवं टीवी सितारा श्री अनूप सोनी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि रंगमंच और सिनेमा दोनों ही डायरेक्टर के माध्यम हैं। अभिनेता का पूरा भरोसा निर्देशक पर होना चाहिए, क्योंकि निर्देशक और लेखक कहानी के साथ ज़्यादा वक्त गुज़ारते हैं। वह किसी भी कहानी को पूरी सम्पूर्णता में देखते हैं।
शाम को खेला गया नाटक -बालीगंज 1990 खूब पसंद किया गया
भव्य ऐतिहासिक प्रस्तुतियों, संगीत, हास्य और सामाजिक सांचों में एक ब्रांड मूल्य बनाने के बाद, लेखक और निर्देशक अतुल सत्य कौशिक अपने दर्शकों के लिए एक और मूल नाटक के साथ आए , इस बार हिंदी में एक शानदार सस्पेंस थ्रिलर प्ले “1990 - प्यार एक अंतहीन रहस्य है“ लेकर आए। यह द फिल्म्स एंड थिएटर सोसायटी और लैंड ऑफ कल्चर का सह-प्रोडक्शन है।
जोधपुर। तीन दिन तक नाट्य विधाओं की धूम मचाने के बाद राजस्थान का पहला अंतराष्ट्रीय थियेटर फेस्टिवल बुधवार शाम सम्पन्न हो गया। फेस्टिवल के समापन दिवस पर ‘नाट्य निर्देशन के बदलते स्वरूप’ विषय पर रंग मंथन हुआ तथा शाम को मुम्बई के अतुल सत्य कौशिक निर्देशित नाटक ‘बालीगंज 1990’ का मंचन हुआ। भारतीय फिल्म एवं रंगमंच जगत के मशहूर अभिनेता अनूप सोनी और निवेदिता भट्टाचार्य ने अपने प्रभावी अभिनय से रसिकों का मन मोह लिया।
मशहूर रंगकर्मियों की सार्थक चर्चा ने दी दिशा-दृष्टि
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर द्वारा आयोजित जोधपुर इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल के समापन दिवस पर रंग मथन टॉक शो में ‘नाट्य निर्देशन के बदलते स्वरूप’ विषय पर प्रभावी संवाद अयोजित हुआ, जिसमें राज्य मेला प्राधिकरण उपाध्यक्ष श्री रमेश बोराणा, देश के वरिष्ठ नाट्य निर्देशक श्री भानु भारती एवं श्री अतुल सत्य कौशिक से जोधपुर के सक्रिय रंगकर्मी अरु व्यास ने बातचीत की।
नाटक समाज की गहरी जरूरत
गहन चर्चा में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पायोनियर एवं लीजेंडरी लेखक निर्देशक श्री भानु भारती ने नाटक होने की संभावना को समाज की गहरी जरूरत बताया। घर गायब हो रहे हैं और बाजार उग रहे हैं और बाजारवाद में रंगमंच के लिए छत ढूंढना बहुत जरूरी है।
वर्तमान का दिग्दर्शन महत्त्वपूर्ण
उन्होंने कहा कि किसी भी नाटक में वर्तमान परिप्रेक्ष्य परिलक्षित होना आज की नाटक की आवश्यकता है। नाटक एक पात्र की मानिन्द है जिसमें कलाओं के सभी आयाम समाविष्ट होकर उसमें ढल जाते हैं, इन सभी आयाम का समावेश वर्तमान पीढ़ी को नाटक के प्रति अवश्य आकर्षित करेगा। मशीन और मनुष्य के इस संधि काल में मनुष्य को मनुष्य बने रहना जरूरी है।
निर्देशक से लेकर प्रेक्षक तक के लिए अहम् है मंचन का प्रभाव
‘स्कूल ऑफ थॉट’ पर बात करते हुए प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक श्री अतुल सत्य कौशिक ने कहा कि निर्देशक या तो मेक बिलीव वातावरण तैयार करता है या सेट वैसा ही दिखाना चाहता है जैसा प्रेक्षक उसे देखना चाहता है यह दोनों ही सिद्धान्त भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर दृश्य निर्माण करने की पहुंच तय करता है। उन्होंने यह भी कहा कि अज्ञानी के पास आत्मविश्वास भरपूर होता है जबकि ज्ञानी हमेशा संशय में रहता है, जाने बिना ज्ञान की बात करना पीढ़ियों को नष्ट करना है कलाकार में नैसर्गिक गुण स्वयं उद्घाटित होते हैं।
अभ्यास लाता है रंगमंचीय निखार
परिचर्चा में वरिष्ठ नाट्यधर्मी व राज्यमंत्री, राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष श्री रमेश बोराणा ने कहा कि दुस्साहस करने वाले निर्देशकों की वजह से मंच पर दुर्घटनाएं होती हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि इतिहास पढ़ने से वर्तमान मजबूत होता है। दृष्टि हमें खुद ही पैदा करनी पड़ती है, नाटक कभी कोई क्रान्ति नहीं करता कला के प्राकृतिक गुणों के साथ अभ्यास से रंगमंच पर निखार आता है।
नाटकीय परिस्थितियां जरूरी हैं नाटक के लिए
निर्देशक एवं राष्ट्रीय स्तर के लेखक श्री बृजमोहन व्यास ने नाटक के ‘क्या, क्यूं और किसके लिये’ पर अपने वक्तव्य में कहा कि जैविक कारणों से उपजे व्यक्ति के पास तार्किक उत्तर नहीं होता है, नाटक के लिये नाटकीय परिस्थितियों का होना भी एक स्वर्णिम अवसर होता है, इस बात का यदि ख्याल रखा जाए तो नाटक अपने मूल मंत्र तक जरूर पहुंचता है और नाट्य निष्पत्ति अवश्य होती है।
निर्देशक और लेखक अहम् किरदार
सशक्त अभिनेता एवं टीवी सितारा श्री अनूप सोनी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि रंगमंच और सिनेमा दोनों ही डायरेक्टर के माध्यम हैं। अभिनेता का पूरा भरोसा निर्देशक पर होना चाहिए, क्योंकि निर्देशक और लेखक कहानी के साथ ज़्यादा वक्त गुज़ारते हैं। वह किसी भी कहानी को पूरी सम्पूर्णता में देखते हैं।
शाम को खेला गया नाटक -बालीगंज 1990 खूब पसंद किया गया
भव्य ऐतिहासिक प्रस्तुतियों, संगीत, हास्य और सामाजिक सांचों में एक ब्रांड मूल्य बनाने के बाद, लेखक और निर्देशक अतुल सत्य कौशिक अपने दर्शकों के लिए एक और मूल नाटक के साथ आए , इस बार हिंदी में एक शानदार सस्पेंस थ्रिलर प्ले “1990 - प्यार एक अंतहीन रहस्य है“ लेकर आए। यह द फिल्म्स एंड थिएटर सोसायटी और लैंड ऑफ कल्चर का सह-प्रोडक्शन है।
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