Historic decision of Rajasthan Commercial Court: Sharp comment on corruption and irregularities in Ajmer Elevated Road Project-m.khaskhabar.com
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Feb 8, 2025 5:56 am
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राजस्थान वाणिज्यिक न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय : अजमेर एलीवेटेड रोड प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर तीखी टिप्पणी, चीफ सेक्रेटरी को दिए जाँच के आदेश

khaskhabar.com : बुधवार, 22 जनवरी 2025 4:12 PM (IST)
राजस्थान वाणिज्यिक न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय : अजमेर एलीवेटेड रोड 
प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं पर तीखी टिप्पणी, चीफ सेक्रेटरी 
को दिए जाँच के आदेश
ठेकेदार द्वारा मांग की गई राशि निरस्त की।


अजमेर। राजस्थान वाणिज्यिक न्यायालय जयपुर द्वारा अजमेर एलीवेटेड रोड प्रोजेक्ट की निर्माण कंपनी सिम्फोनिअ एंड ग्राफ़िक के लंबित वाद में निर्णय करते हुए सरकार और ठेकेदार के बीच हुए करार व भुगतान के संदर्भ में गंभीर वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं पर एक विस्तृत और कठोर आदेश जारी किया है। यह मामला न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश के लिए सरकारी परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक ज्वलंत उदाहरण बन चुका है।

मामले का पृष्ठभूमि :
एलीवेटेड रोड प्रोजेक्ट, जिसकी आधारशिला 8 मई 2018 को रखी गई थी, राज्य के बुनियादी ढांचे को सुधारने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। इस परियोजना की अनुमानित लागत ₹220 करोड़ थी। लेकिन परियोजना के चार साल बाद भी, यह अधूरी और विवादों में घिरी हुई है।

न्यायालय द्वारा 18 जनवरी 2025 को दिए गए आदेश में परियोजना की देरी, गुणवत्ता, और वित्तीय अनियमितताओं को लेकर कई गंभीर टिप्पणियां की गईं। ठेकेदार और प्रशासनिक अधिकारियों पर दोषारोपण करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला जनता के धन के दुरुपयोग और प्रशासनिक विफलता का एक उदाहरण है।

प्रमुख अनियमितताएं


परियोजना में देरी और अधूरी स्थिति : परियोजना की शुरुआत के चार साल बाद भी, स्लिपलेन, सर्विस रोड, और अतिक्रमण हटाने जैसे कार्य अधूरे हैं। इसके बावजूद, परियोजना का उद्घाटन 5 मई 2023 को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा किया गया। अदालत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि अधूरी परियोजना का उद्घाटन न केवल प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है, बल्कि जनता को गुमराह करने का भी प्रयास है।

फर्जी प्रमाणपत्र और मेजरमेंट शीट में गड़बड़ी : न्यायालय ने पाया कि ठेकेदार द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में गंभीर त्रुटियां थीं। *42वें रनिंग बिल* में स्लिपलेन और सर्विस रोड के अधूरे कार्य को पूरा दिखाया गया था। इसके अलावा, मेजरमेंट शीट में बार-बार बदलाव किए गए और अनुचित भुगतान का दावा किया गया।

मूल्य वृद्धि : परियोजना की प्रारंभिक लागत ₹220 करोड़ थी। लेकिन मूल्य वृद्धि के नाम पर करोडो रूपये अतिरिक्त स्वीकृत कर भुगतान किए गए, जबकि कार्य समय पर पूरा नहीं हुआ। अदालत ने इस प्रक्रिया को "अनावश्यक वित्तीय भार" करार दिया।

दोगुना भुगतान और वित्तीय अनियमितताएं : अदालत ने पाया कि ठेकेदार को "Defect Liability Period" के दौरान दो बार भुगतान किया गया। इस अतिरिक्त भुगतान ने परियोजना के वित्तीय प्रबंधन पर गंभीर सवाल खड़े किए। ठेकेदार को ₹36.41 करोड़ की अतिरिक्त राशि दी गई, जिसका कोई औचित्य प्रस्तुत नहीं किया गया।

अतिक्रमण और ट्रैफिक की समस्या : परियोजना के अंतर्गत अतिक्रमण हटाने और उपयोगिताओं को स्थानांतरित करने में देरी ने आम जनता को ट्रैफिक जाम और अन्य असुविधाओं का सामना करने पर मजबूर किया। अदालत ने इसे प्रशासन की अक्षमता का प्रतीक बताया।

न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियां : न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, सरकारी धन का दुरुपयोग और परियोजना में पारदर्शिता की कमी न केवल जनता के हितों को नुकसान पहुंचाती है, बल्कि यह देश की प्रशासनिक और वित्तीय प्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़ा करती है।

ब्लैकलिस्टिंग पर आदेश : अदालत ने ठेकेदार को फिलहाल ब्लैकलिस्ट न करने का निर्देश दिया, लेकिन स्पष्ट किया कि यदि 90 दिनों के भीतर मध्यस्थता प्रक्रिया शुरू नहीं की गई, तो आदेश स्वतः समाप्त हो जाएगा।

अतिक्रमण हटाने पर टिप्पणी :
अदालत ने कहा कि यदि अतिक्रमण तुरंत हटाया गया होता, तो परियोजना की लागत बढ़ने से बचाई जा सकती थी और जनता को लंबे समय तक असुविधा का सामना नहीं करना पड़ता।

भविष्य के लिए सिफारिशें :
न्यायालय ने राज्य सरकार और संबंधित विभागों को निर्देश दिया है कि सभी लंबित कार्यों को 90 दिनों के भीतर पूरा किया जाए।परियोजना से जुड़े अधिकारियों और ठेकेदारों के बीच सांठगांठ की गहन जांच की जाए। भविष्य की परियोजनाओं के लिए एक स्वतंत्र निरीक्षण समिति गठित की जाए।

न्यायालय का आदेश : मुख्य सचिव को तीन महीने के भीतर विस्तृत रिपोर्ट न्यायालय में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया। ठेकेदार द्वारा प्रस्तुत सभी दस्तावेजों की गहन जांच के आदेश दिए गए। परियोजना के लंबित कार्यों को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने का निर्देश दिया गया।

सामाजिक और कानूनी प्रभाव : यह मामला न केवल राजस्थान बल्कि पूरे भारत के लिए एक उदाहरण है कि सरकारी परियोजनाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की कितनी आवश्यकता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने अदालत के इस कदम की सराहना की है।

यह निर्णय सरकार और न्यायपालिका के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही के खिलाफ उठाए गए कदम भविष्य में सार्वजनिक परियोजनाओं की पारदर्शिता और गुणवत्ता सुनिश्चित करने में मदद करेंगे।

सरकारी परियोजनाओं में पारदर्शिता, गुणवत्ता, और जनता के धन के सदुपयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। यह समय है कि ऐसे मामलों में दोषियों को सख्त सजा दी जाए, ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके।

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