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गांधी जयंती विशेष : वैश्विक सत्य-अहिंसा के पर्याय महात्मा गांधी, यूं ही गांधी महात्मा नहीं हुए
यह भारत का सौभाग्य ही है कि 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर गुजरात में एक महान व्यक्तित्व ने जन्म लिया था। जिनका पूरा नाम मोहन दास करमचंद गांधी था। भावनगर के श्यामल दास कॉलेज में उनकी शिक्षा हुई तत्पश्चात उनके भाई लक्ष्मी दास ने उन्हें बैरिस्टर की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड भेज दिया था। इंग्लैंड जाने से पहले मात्र 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह कस्तूरबा गांधी से हो गया था। 1891 में गांधीजी इंग्लैंड से वकालत पास कर मुंबई में वकालत प्रारंभ कर दी थी।
गांधी जी के समाज क्रांतिकारी जीवन का शुभारंभ 1893 में तब हुआ जब एक मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहां उन्होंने अंग्रेजों को भारतीयों एवं वहां के मूल निवासियों के साथ बुरा व्यवहार करते देखा था। वहां अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को भी कई बार अपमानित किया था। गांधी जी ने अंग्रेजों के अपमान के विरुद्ध मोर्चा संभालते हुए उनके विरोध के लिए सत्याग्रह और अहिंसा का मार्ग चुना था।
दक्षिण अफ्रीका के दौरान उन्होंने अध्यापक, चिकित्सक और कानूनी अधिकार की लड़ाई के लिए अधिवक्ता के रूप में जनता को जागरूक करने के लिए अपनी सेवाएं प्रदान की और महत्वपूर्ण काम किए। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन कर समाज की सेवा की। उनकी एक महत्वपूर्ण पुस्तक "माय एक्सपेरिमेंट विथ ट्रुथ" विश्व प्रसिद्ध आत्मकथा बनी। दक्षिण अफ्रीका में गांधी जी के कार्यों तथा सतत प्रयत्नों की ख्याति भारत में फैल चुकी थी। और जब वे भारत लौटे तो उनका गोपाल कृष्ण गोखले, लोकमान्य गंगाधर तिलक जैसे नेताओं ने भव्य स्वागत किया।
भारत में आते ही गांधी जी ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य बिहार के चंपारण जिले के नीलहे किसानों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलानें का किया, 1917 में गांधी जी के सत्याग्रह के फलस्वरूप ही चंपारण के किसानों का शोषण समाप्त हो पाया था। अहमदाबाद में आश्रम की स्थापना के साथ साथ अंग्रेज सरकार के विरुद्ध उनका संघर्ष प्रारंभ हुआ और भारतीय राजनीति की बागडोर अब महात्मा गांधी के हाथों में आ चुकी थी। गांधीजी इस बात को अच्छे से समझ चुके थे कि सामरिक तौर पर अंग्रेजों से लड़ाई नहीं की जा सकती है, भारत को अंग्रेजों से मुक्ति लाठी बंदूक के बल पर नहीं प्राप्त हो सकती थी, इसीलिए उन्होंने सत्य और अहिंसा की शक्ति का सहारा लिया।
स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 1920 में उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन प्रारंभ कर दिया था। अंग्रेजों ने जब नमक पर कर लगाया तो गांधीजी ने 24 दिन की दांडी यात्रा आयोजित की 24 दिनों की यात्रा के पश्चात उन्होंने अपने हाथों से दांडी नामक स्थान पर नमक बनाया और सविनय अवज्ञा आंदोलन भी संचालित किया। इसी बीच गांधी इरविन समझौता के लिए गांधीजी इंग्लैंड भी गए पर अंग्रेजों की बदनियति के कारण यह समझौता मूर्त रूप नहीं ले सका, फल स्वरुप यह आंदोलन 1934 तक चलता रहा। 1942 में गांधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन चलाया गया जिसमें करो या मरो का नारा देकर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को एकजुट कर अंग्रेजो के खिलाफ मोर्चा खोला गया।
गांधीजी तथा अन्य नेताओं, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अथक प्रयास से 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। 1920 से 1947 तक भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में गांधीजी की भूमिका के कारण इस युग को गांधी युग भी कहा जाता है। स्वतंत्रता के बाद भी गांधीजी का विरोध हिंदू और मुसलमान कट्टरपंथी लोग लगातार करते रहे। और 30 जनवरी 1948 को जब वे प्रार्थना सभा जा रहे थे तब उनकी निर्मम हत्या कर दी गई।
सत्य तथा अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी का दुखद देहांत हो गया। गांधी जी हमारे बीच नहीं है, पर उन्हें युगों तक याद किया जाता रहेगा। उनके द्वारा प्रतिपादित चार आधारभूत सिद्धांत सत्य, अहिंसा, प्रेम और सद्भाव को आज भी पूरे विश्व में करोड़ों लोगों द्वारा अंगीकार किया जा रहा है।
सत्यमेव जयते जैसे राष्ट्रीय वाक्य के प्रेरणा स्रोत गांधी जी ही थे। गांधी जी द्वारा अपनाई अहिंसा का सही मतलब मन,वाणी तथा कर्म से किसी को आहत ना करना, उनके यह महान विचार थे कि अहिंसा के बिना सत्य का अन्वेषण असंभव है। महात्मा गांधी एक वैचारिक क्रांति के युग थे। गांधी जी सर्वधर्म समभाव के एक बड़े प्रेरणा स्रोत भी रहे। वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा भी उनके द्वारा प्रतिपादित की गई थी। उनके मन में सभी धर्मों के प्रति प्रेम तथा आदर भाव समाहित था, और यही वजह है कि गांधी जी को महात्मा गांधी और राष्ट्रपिता कहा जाता है।
गांधीजी की सरलता एवं सत्य अहिंसा के प्रति अनुराग के सामने अंग्रेज नतमस्तक होकर भारत को स्वतंत्र कर भारत छोड़ गए। अंग्रेज गांधी जी की सत्याग्रह तथा सहयोग से घबराकर भारत से दुम दबाकर भागे। गांधीजी की सादगी,सरलता एवं सादा जीवन, सत्य और अहिंसा हम सबके लिए आज सबसे ज्यादा अनुकरणीय है। महात्मा गांधी को हम सब भारत वासियों तथा सत्य और अहिंसा के पुजारियों की ओर से नमन श्रद्धांजलि एवं प्रणाम।
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