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घटते जलस्तर से गंगा संकट में

khaskhabar.com : बुधवार, 12 जून 2019 12:32 PM (IST)
घटते जलस्तर से गंगा संकट में
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में कई स्थानों पर गंगा का जल दोहन होने से पानी का संकट गहराता जा रहा है। बनारस, इलाहाबाद, कानपुर व अन्य स्थानों में लगातार घटते जलस्तर को ‘न्यूनतम चेतावनी बिंदु’ की ओर जाते देख जलकल विभाग ने अलर्ट जारी किया है।

गंगा का जलस्तर दो सौ फीट रहने तक ही जल की आपूर्ति सामान्य रहती है। अभी तक गंगा का जलस्तर 192 फीट दर्ज किया गया। हालांकि यह पिछले साल जून में गंगा के जलस्तर 187 फीट से अधिक है, लेकिन इसका असर पेयजल आपूर्ति पर पडऩे लगा है। यहां लगाए गए पंप पानी कम देने लगे हैं। इसे लेकर लोग चिंतिंत दिखाई दे रहे हैं।

वहीं, कानपुर में पीने के पानी के लिए लोगों को गंगा पर ही निर्भर रहना पड़ता है। भीषण गर्मी के चलते यहां पर गंगा की धारा के बीच में रेत के बड़े-बड़े टीले दिखाई देने लगे हैं। यहां तक कि पेयजल की आपूर्ति के लिए भैरोंघाट पपिंग स्टेशन पर बालू की बोरियों का बांध बनाकर पानी की दिशा को परिवर्तित करना पड़ा, ताकि लोगों को सहूलियत हो सके।

नरौरा बैराज के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल हर दिन 7822 क्यूसेक पानी प्रतिदिन गंगा में छोड़ा जा रहा है। नहरों, सिंचाई और अन्य कुदरती कारणों से कानपुर पहुंचते-पहुंचते पानी मात्र 5000 क्यूसेक ही बच रहा है। आगे पहुंचने वाले पानी की मात्रा और कम होती जाती है। इसी कारण जल स्तर में कुछ घटाव हो रहा है।

गंगा पर 30 वर्षों से कार्य कर रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर दीनानाथ शुक्ल ने बताया कि प्रयागराज में हुए कुंभ के दौरान पर्याप्त जल मौजूद था। लेकिन गर्मी शुरू होते ही यहां जलस्तर लगातार कम होता जा रहा है। यहां पानी इतना कम हो गया है कि लोग डुबकी भी नहीं लगा पा रहे हैं। बरसाती पाने न आने के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है। बांधों के पानी को रोका गया है, जिससे यह संकट बढ़ रहा है।

उन्होंने कहा कि नरौरा, टिहरी का पानी भी गंगा तक नहीं पहुंच पा रहा है। सहायक नदियां सूख गई हैं। बचा-खुचा पानी वाष्पीकरण के कारण नहीं बच पा रहा है। जब तक बांधों का पानी नहीं छोड़ा जाएगा, तब यह समस्या बनी रहेगी। प्रवाह कम होने के साथ ही शहर का सीवेज नालों के जरिए सीधे नदी में जाने से गंगा का प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है।

गंगा पर कार्य करने वाले स्वामी हरि चैतन्य ब्राम्हचारी महराज का मानना है कि बताया कि पश्चिमी उप्र से पानी का दोहन जरूरत से ज्यादा हो रहा है। गर्मी में ज्यादा पानी वाली कृषि करने से सारा पानी वहीं पर प्रयोग हो जाता है। यहां पर पानी पहुंच नहीं पाता है। यहां पर सीवर लाइन और टेनरी के पानी ही गंगा में पहुंचता है। कोई यह नहीं सोच रहा कि गंगा को कैसे बचाया जाए?

उन्होंने कहा कि पहले प्रदूषण पर रोक लगाना भी बहुत जरूरी है। अगर कोई दोहन कर रहा है, तो सरकार को चाहिए कि पानी ज्यादा बढ़ाकर छोड़ दे, जिससे जीव-जंतु और पक्षीयों की जान बच सकती है।

स्वामी ने कहा कि सहायक नदियों और नालों के बल पर अपने वजूद के लिए लड़ रही हैं। इस कारण रेत के टीले उभरते जा रहे हैं। ऐसे में गंगा में पानी छोडऩे को प्रमुखता पर लिया जाना चाहिए। वर्तमान स्थिति चिंताजनक है और तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो आगे और भयावह तस्वीर सामने आ सकती है।

विषेषज्ञों की मानें तो गंगा का जलस्तर एक सप्ताह में करीब दो फीट कम हुआ है। तीन दिनों में रोजाना दो इंच पानी घटा है। बीते तीन जून को गंगा का जलस्तर 193 फीट था जो नौ जून को 191 फीट चार इंच रह गया। सात जून को जलस्तर 191 फीट 8 इंच था।

सिंचाई विभाग के मुख्य अभियंता आर.पी. तिवारी के अनुसार, ‘‘कानपुर बैराज से साढ़े तीन हजार क्यूसेक पानी छोड़ दिया गया है। इलाहाबाद होते हुए यह पानी जब बनारस पहुंचेगा तो इसकी मात्रा साढ़े चार हजार क्यूसेक से ज्यादा हो जाएगी। यमुना का पानी भी इसमें मिलने के कारण बनारस में ज्यादा मात्रा में पानी पहुंचेगा। इससे हालत में सुधार होगा। लोगों के लिए पानी का संकट भी कम हो जाएगा।’’
(आईएएनएस)

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