Fifth edition of Cultural Diaries: Albert Hall drenched in the colours of Talbandi and Braj Rasiya-m.khaskhabar.com
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Mar 27, 2025 5:45 am
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कल्चरल डायरीज का पांचवां संस्करण: तालबंदी और ब्रज रसिया के रंग में सराबोर हुआ अल्बर्ट हॉल

khaskhabar.com : शुक्रवार, 07 फ़रवरी 2025 10:12 PM (IST)
कल्चरल डायरीज का पांचवां संस्करण: तालबंदी और ब्रज रसिया के रंग में सराबोर हुआ अल्बर्ट हॉल
जयपुर। कल्चरल डायरीज के पांचवें एडिशन के तहत शुक्रवार की शाम अल्बर्ट हॉल पर फाल्गुन की सुगंध बिखरी, जब डीग जिले के नगर कस्बे से आए कलाकारों ने अपनी पारंपरिक प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गुरु-शिष्य परंपरा की 400 वर्षों की विरासत को तालबंदी के रूप में पुनः जीवंत करते हुए, डॉ. बाबूलाल पलवार तालबंदी संगीत संस्थान के 15 कलाकारों ने तालबंदी गायन और ब्रज रसिया लोकगीतों व नृत्य की मोहक प्रस्तुतियां दीं।


कार्यक्रम की शुरुआत अमित पलवार के नेतृत्व में भगवान शिव के लिए नगमा वादन से हुई, जिसे पूरे दल ने अपने गुरु डॉ. बाबूलाल पलवार को समर्पित किया। यह नगमा वादन पूरी तरह से ताल यंत्रों पर आधारित था, भारतीय लोक वाद्य यंत्रों की इस जुगलबंदी से अल्बर्ट हॉल पर मौजूद प्रत्येक दर्शक मोहित हो गया। भागवान शिव के डमरू के वृहद स्वरूप नाद/बम्ब जिसे नगाड़ा भी कहते हैं की ताल पर सुर और ताल के अलौकिक समागम ने दर्शकों को भक्ति रस के साथ वीर रस की भी अनुभूति करवाई। नगाडे पर उस्ताद सिद्धमल राजस्थानी ने जिस तरह से ताल दी, उसने तालबंदी शैली को दर्शकों के बीच पूरी तरह से साकार कर दिया।

इसके बाद राधारानी और ठाकुर जी की आरती का मधुर गायन हुआ। इस प्रस्तुति में राग कौशिक ध्वनि में सोलह मात्रा तीन ताल पर आधारित ठुमरी "ऐसी मेरी चुनर रंग में रंगी" ने श्रोताओं को भक्ति रस में सराबोर कर दिया।

राग देस कहरवा ताल पर आधारित लोक गीत "होरी में मेरी कैसी कुवत भई" ने माहौल को और भी जीवंत बना दिया। दल के मुख्य गायक यादराम कहरवाल वालों ने अपने भावपूर्ण गायन से दर्शकों की आत्मा को छुआ।

अल्बर्ट हॉल पर जब ब्रज का सुविख्यात मयूर नृत्य शुरू हुआ तो सारे दर्शक मंत्रमुग्ध हो झूम उठे साथ ही "जब से धोखा देके गयो, श्याम संग नाय खेली होरी" की प्रस्तुति ने फाल्गुन में होरी के रंग गोल दिए।

गौरतलब है कि उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की पहल पर पर्यटन विभाग के नवाचार के तहत आयोजित कल्चरल डायरीज के अवसर विभाग के उपनिदेशक नवल किशोर बसवाल, उपनिदेशक सुमिता मीणा, पर्यटक अधिकारी अनिता प्रभाकर सहित अधिकारी व कर्मचारी भी मौजूद थे।

कल्चरल डायरीज के इस संस्करण ने गुरु-शिष्य परंपरा और तालबंदी की जीवंतता को फिर से साकार किया और यह सिद्ध किया कि भारतीय लोक संगीत और नृत्य आज भी अपनी प्राचीनता और पवित्रता को संजोए हुए हैं। अल्बर्ट हॉल पर सजी इस सांस्कृतिक संध्या ने जयपुरवासियों सहित विदेशी पर्यटकों को भी गायन, वादन व नृत्य की संगीत त्रिवेणी में भक्तिमय गोता लगाने का अवसर दिया। शनिवार 8 फरवरी को गौतम परमार व उनका दल लोक गीत, भवाई नृत्य, घूमर, चरी नृत्य, कालबेलिया नृत्य, कच्ची घोड़ी, रिम नृत्य, अग्नि नृत्य आदि लोक नृत्यों की प्रस्तुतियां देंगे।



तालबंदी – भारतीय भक्ति संगीत की प्राचीन विधाः

तालबंदी, शास्त्रीय गायन परंपरा का वह स्वरूप है जिसमें खड़े होकर प्रस्तुतियां दी जाती हैं। यह शैली भारतीय धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए विकसित हुई, जिसमें भक्ति रस का प्रमुख स्थान है। इसकी प्रस्तुतियों में श्रीकृष्ण, राधा और भगवान शिव की स्तुतियां प्रमुख रूप से शामिल होती हैं।

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