फ़ैशन : फटी जीन्स का मक़सद और संदेश?

हालांकि ऐसा फ़ैशन करने वालों को इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि दूसरे उसके इस फ़ैशन के बारे में क्या सोच रहे हैं। न ही उसे इस बात की चिंता रहती है कि उसके शरीर पर वह फ़ैशन कैसा लग रहा है। उसका मक़सद तो बस फ़िल्मी हीरो हीरोइन की ड्रेसेज़ की नक़ल कर व ट्रेंड कर रहे फ़ैशन की मुख्य धारा में शामिल होकर स्वयं को 'फ़ैशनेबल ' साबित करना मात्र है। ऐसा ही एक अजीबो ग़रीब फ़ैशन गत लगभग दो दशक से भारत ही नहीं बल्कि लगभग पूरी दुनिया में 'वायरल फ़ैशन ' की तरह पैर पसार चुका है। और वह है 'फटी जीन ' अथवा रिप्ड जीन का फ़ैशन। चूँकि 1970 से पहले जींस मंहगी हुआ करती थी और ग़रीब लोग नई जीन न ख़रीद पाने के चलते मजबूरीवश फटी जीन पहना करते थे।
उस ज़माने में फटी जींस पहनना ग़रीब होने की निशानी होती थी। और 1970 के दशक में ही फटी जींस का चलन हॉलीवुड सिनेमा से प्रारंभ हो गया था जो भारत में वालीवुड के माध्यम से बाद में आया। परन्तु गत दो दशक से तो इस फ़ैशन ने युवाओं व युवतियों के बीच कुछ ज़्यादा ही ज़ोर पकड़ लिया है। नई जीन की पैंट को हाथों या लेजर के मदद से इसे फेंट फेंट कर फाड़ा जाता है। इस क्रिया के बाद फटी हुई जीन और भी महंगी हो जाती है।
फटी या रिप्ड जीन स्किन फ़िट , स्लिम फ़िट , टेपर्ड, रेगुलर फ़िट , और रिलैक्स्ड फ़िट आदि मॉडल की पैंट्स में उपलब्ध होती है। इन्हीं डेनिम में एक एक्सट्रीम कट हाई रेज़ जींस भी होती है जिसका आगे व पीछे दोनों ओर का 80-90 प्रतिशत भाग ग़ायब होता है। यह सबसे मंहगी अर्थात ब्रांड के अनुसार 30-40 व 50 हज़ार रूपये तक भी मिलती है। कुछ लोग ऐसी जीन पहन कर अपने आप को एक अनोखा लुक देना चाहते हैं।
इस फ़ैशन का क़द्रदानों के अनुसार यह उन्हें एक अनूठा और स्टाइलिश लुक देती है। जबकि समाज का एक बड़ा वर्ग ऐसा भी है जो ऐसे फ़ैशन को अनुचित व बेहूदा समझता है। बड़े आश्चर्य की बात है कि इस यह अजीबो ग़रीब पहनावा फ़ैशन कैसे बन गया और बना भी तो यह फ़ैशन ट्रेंड कैसे कर गया? सच पूछिये तो फटी जीन धारण करने वाला इसे पहनने के सिवा स्वयं ही इस अनर्गल फ़ैशन की तार्किकता इसके मक़सद और संदेश के बारे में नहीं जानता?
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