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न्यूनतम समर्थन मूल्य के आंदोलन के लिए किसानों ने की जयपुर एवं दिल्ली कूच की तैयारी
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में किसान महापंचायत के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष घासीलाल फगोड़िया, प्रदेश संयोजक सत्यनारायण सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष मुसद्दीलाल यादव, महामंत्री जगदीश खुडियाला, प्रदेश मंत्री बत्ती लाल बैरवा, एवं रतन खोखर, युवा प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर चौधरी, अजमेर जिले के अध्यक्ष प्रहलाद जाट एवं महामंत्री रामेश्वर घासल, रामचंद्र, रंगलाल जाखड़, गोपाल पटेल जिला बूंदी के अध्यक्ष तुलसीराम सैनी एवं महामंत्री भरत लाल मीणा, साबूलाल मीना एवं कजोड़ धाकड़ टोंक से पीपलू अध्यक्ष गोपी लाल जाट, डोडवाडी, दुलाराम प्रजापत, मालवीय राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान जयपुर के आचार्य प्रोफेसर गोपाल मोदानी मौजूद रहे।
इस बैठक में बूंदी जिले के करवर से राजेंद्र नागर केशोरायपाटन विधानसभा प्रभारी, सत्यनारायण नागर, सियाराम गुर्जर, धनराज गुर्जर, ब्रजमोहन मीना, अशोक नागर एवं उनकी टीम ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सुनिश्चितता के कानून के लिए वर्ष 2010 में राजस्थान के दूदू से आरंभ हुआ यह आंदोलन इस समय देशव्यापी ज्वलंत मुद्दा है।
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने बताया कि भारत सरकार के 17 वर्ष के चिंतन मंथन के उपरांत आदर्श कृषि एवं पशुपालन मंडी (सुधार एवं सरलीकरण) अधिनियम-2017 अस्तित्व आया। जिसे भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में सभी राज्यों को प्रेषित कर दिया गया। उसके आधार पर राज्यों में भी विधेयक के प्रारूप तैयार किए। राजस्थान में भी इस प्रकार का तैयार विधेयक सरकार की आलमारी की शोभा बढ़ा रहा है।
इस विधेयक के आधार पर कानून बन जाता तो किसानों को अपनी उपज घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम में नहीं बेचनी पड़ती। यह स्थिति तो तब है जब सरकारें स्वयं को किसान हितैषी बताने में अपनी समय शक्ति खर्च करती रहती है। दुष्परिणाम है कि किसानों को पौष्टिक श्रीअन्न के प्रोत्साहन हेतु वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित करने के उपरांत भी किसानों को उनके समर्थन मूल्य से वंचित रहना पड़ता है।
इसी प्रकार खाद्य तेल एवं दालों के आयात पर प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपए विदेश में लुटवाने पर भी चना, मूंग, सरसों, मूंगफली जैसी दलहन एवं तिलहन की उपज को एक क्विंटल पर 1000 से अधिक का घाटा उठाकर बाजार में बेचने को बेहोश होना पड़ता है। तो भी सरकार अपनी प्रशंसा के पुल बांधने से अघाती नहीं है।
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