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धर्माचार्य बोले, स्वामी प्रसाद हैं नादान, पुराणों का शब्द है 'हिंदू'
सपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य इन दिनों किसी न किसी बहाने हिंदू धर्म को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। हालांकि, उनकी बयानबाजी से आहत धर्माचार्य और समाजिक संगठन के लोगों ने एक सुर में उनकी आलोचना की है।
दरअसल, मौर्य ने हरदोई की एक जनसभा में हिंदू धर्म को लेकर विवादित टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि हिंदू फारसी शब्द है। फारसी में इसका मतलब चोर, नीच, अधम है। हम इसे धर्म कैसे मान सकते हैं।
अयोध्या के हनुमत निवास के पीठाधीश्वर आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण ने स्वामी प्रसाद के बयान को सिरे से नकारते हुए कहा, स्वामी प्रसाद का बयान सिर्फ सुर्खियां बटोरने के लिए किया गया कृत्य मात्र है। वह नादान हैं उन्हें सनातन का ज्ञान नहीं है।
उन्होंने कहा कि हिंदू शब्द बहुत प्राचीन है और इसकी व्याख्या करना स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे लोगों के बस की बात नहीं है। मेरुतंत्र और कालिका पुराण जैसे ग्रंथों में हिंदू शब्द का उल्लेख है। उसको वह नहीं समझ सकते। उनके जन्म के बहुत पहले से इस देश को हिंदुस्थान कहा जा रहा है। अब वह हिंदू सरोवर के कारण कहा जा रहा है या सिंध का फारसी रूपांतरण हो जाने कारण हिंद बन गया और हिन्दू कहा जाने लगा यह विद्वान के विवचेना का विषय है।
उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान के अस्तवित्व को लेकर किसी कोई भ्रम नहीं है। सनातन-वैदिक धर्म को ही हिंदू धर्म कहा जाता है। इसका आधुनिक नामकरण है। जैसे आप किसी को मारवाड़ी और मराठी कहते हैं तो यह कोई धर्म तो नहीं बल्कि एक कल्चर आपके सामने आता है। ऐसे ही विदेश से आए लोगों ने सनातन-वैदिक धर्म के लोगों को हिन्दुस्तानी और सनातन-वैदिक धर्म को हिंदू कहा। हिंदू कहने से जो कल्चर और जीवन विचार पद्धति सामने आती है, वह सनातन-वैदिक धर्म ही है। इस धर्म का आधुनिक नामकरण हिंदू है। अब इसकी आलोचना की जा रही है। यहाँ तक कि कुछ लोग अपना डीएनए बदलने की तैयारी में है। इसमें केवल स्वामी प्रसाद ही नहीं बल्कि स्टालिन भी शामिल हैं। इनसे कुछ सवाल पूछना है। ये हिंदू-सनातन धर्म से असहमत हो सकते हैं, लेकिन क्या ये अपने पिता को पिता नहीं मानते? यह प्रश्न है। क्या वे करुणानिधि के वंशज नहीं हैं? यदि नहीं हैं तो स्टालिन का टाइटिल कहां से मिला है?
स्वामी प्रसाद यदि हिंदू धर्म को नहीं मानते तो इनके नाम में मौर्य शब्द कैसे लगा? मौर्य वंश तो हिन्दुस्थान की धरती पर फला-फूला। इसके राजा हिन्दुस्थान की धरती पर ही राज्य किया।
उन्होंने कहा कि मौर्य शब्द, भारत की वैदिक परंपरा से आया है। स्वामी शब्द भी सनातन की देन है। प्रसाद की संस्कृति ब्राह्मण संस्कृति है। इस पर ओशो ने बहुत बृहद रूप में बताया है। चाहे स्वामी प्रसाद हो या उदयनिधि। इन्हें नाम, जन्म और यहाँ तक कि पहचान भी सनातन परंपरा से मिली है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण में पितृ परंपरा चलती है। हम यहां पूर्वजों, कुल-गोत्र और उनकी विचार परंपरा से आगे बढ़ते हैं। जब इस परंपरा से बाहर की सोचते हैं तो वर्ण शंकर कहलाते हैं। गीता में इसकी चर्चा है। महाभारत काल में जो वर्ण शंकर हो गए थे, यह लोग उनके ही प्रतिनिधि हैं। इसीलिए इन्हें कुंठा है। हालांकि, यह भी सच है कि इन लोगों का अकादमिक लेवल ऐसा नहीं की इस पर कुछ पक्ष रखा जाय। इन लोगो की बातें नितांत निराधार और मूर्खतापूर्ण हैं। यह केवल चुनाव के समय मुद्दा गरमाने का एक प्रयास है। जनता बहुत कुछ समझती है। पद होने पर यह लोग घोर सामंतवादी होते हैं। पद से हटने के बाद यह लोग जनवादी हो जाते हैं।
विश्व हिंदू परिषद ने पलटवार करते हुए कहा कि ऐसे बयान देने वाले लोग सनातन के शत्रु हैं।
वीएचपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता विनोद बंसल ने कहा कि ऐसे लोग हिंदी संस्कृत या अन्य भारतीय भाषाओं के अलावा फारसी के प्रति इनका जो समर्पण हैं इनकी मानसिकता को दर्शाता है। यह राजनीति के सनातनी शत्रु है। इसमें सिर्फ स्वामी प्रसाद ही नहीं बल्कि 19 लोग हैं, जो कि भारतीय राजनीति के सनातन शत्रु कहे जा सकते हैं, जो लगातार हिंदू, हिंदुत्व, सनातन मंदिरों और संतो पर टिप्पणी कर रहे है। आने वाले समय में जनता इन्हें जवाब देगी और इनकी बुद्धि भी ठिकाने लगाएगी।(आईएएनएस)
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