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Delhi Assembly Election : केजरीवाल खेल रहे इमोशनल कार्ड! ‘आम आदमी’ से बने ‘दिल्ली का बड़ा बेटा’
नई दिल्ली। अरविंद केजरीवाल ने वर्ष 2013 में जब अपने पहले विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार शुरू किया था तो वे एक आम आदमी थे। मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद आईआईटीयन केजरीवाल अब वापस चुनावी मैदान में हैं। लेकिन इस बार वे खुद को राष्ट्रीय राजधानी के बड़े बेटे के रूप में पेश कर रहे हैं। वर्ष 2013 में पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेते हुए, केजरीवाल ने कहा था कि मुख्यमंत्री वे नहीं बने हैं, बल्कि आम आदमी ने पद की शपथ ली है।
उन्होंने कहा था कि यह एक आम आदमी की जीत है। वर्ष 2013 और 2015 में प्रचार अभियानों के दौरान भी, उन्हें यह दावा करते हुए देखा गया कि वे सभी की तरह शहर के आम आदमी हैं। जब वे वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने सडक़ पर उतरे, तो यहां एक संकेत के तौर पर एक आकस्मिक पारिवारिक टिप्पणी उन्हें शहर के बड़े बेटे के रूप में पेश करने के लिए की गई, जिन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को भी अपना परिवार कहा। एक आम आदमी से अधिक वे शहर का बड़ा बेटा बन गए।
शहर के साथ एक भावनात्मक लगाव दर्शाने के रणनीतिक कदम के तौर पर शायद अक्टूबर 2019 से उनके भाषणों में यह बात देखी गई है। उन्होंने दिल्ली एक परिवार है और मैं इसका बड़ा बेटा हूं के साथ शुरुआत की। जबकि शुरू में आम आदमी जुमले को उन्होंने अपने भाषण में तव्वजो दी थी, जो धीरे-धीरे अब ओझल हो गया है। चुनाव नजदीक आते ही बेटा होने की कहानी और अधिक प्रबल हो गई। केजरीवाल ने दिसंबर में कहा था, मेरा सात लोगों का एक परिवार था, जो आप के गठन के साथ बड़ा हो गया।
जब मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री बना, तो मुझे दो करोड़ लोगों का एक बड़ा परिवार मिला। पूरी दिल्ली अब मेरा परिवार है। मैं एक आदमी की तकलीफ को समझता हूं, क्योंकि मैं कुछ साल पहले आप जैसा ही था। मुझे पता है कि एक आम आदमी को उन समस्याओं का सामना करना पड़ता है जब उसे महीने के अंत में बिजली और पानी के बिलों का भुगतान करना पड़ता है। मैं जानता हूं कि उसके सामने क्या समस्याएं हैं, जब उसे अपने बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करना होता है। मैं उसका दर्द जानता हूं जब उसे परिवार के एक बीमार व्यक्ति का इलाज कराने के लिए पैसों का बंदोबस्त करना पड़ता है।
उन्होंने कहा था कि यह एक आम आदमी की जीत है। वर्ष 2013 और 2015 में प्रचार अभियानों के दौरान भी, उन्हें यह दावा करते हुए देखा गया कि वे सभी की तरह शहर के आम आदमी हैं। जब वे वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार करने सडक़ पर उतरे, तो यहां एक संकेत के तौर पर एक आकस्मिक पारिवारिक टिप्पणी उन्हें शहर के बड़े बेटे के रूप में पेश करने के लिए की गई, जिन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को भी अपना परिवार कहा। एक आम आदमी से अधिक वे शहर का बड़ा बेटा बन गए।
शहर के साथ एक भावनात्मक लगाव दर्शाने के रणनीतिक कदम के तौर पर शायद अक्टूबर 2019 से उनके भाषणों में यह बात देखी गई है। उन्होंने दिल्ली एक परिवार है और मैं इसका बड़ा बेटा हूं के साथ शुरुआत की। जबकि शुरू में आम आदमी जुमले को उन्होंने अपने भाषण में तव्वजो दी थी, जो धीरे-धीरे अब ओझल हो गया है। चुनाव नजदीक आते ही बेटा होने की कहानी और अधिक प्रबल हो गई। केजरीवाल ने दिसंबर में कहा था, मेरा सात लोगों का एक परिवार था, जो आप के गठन के साथ बड़ा हो गया।
जब मैं दिल्ली का मुख्यमंत्री बना, तो मुझे दो करोड़ लोगों का एक बड़ा परिवार मिला। पूरी दिल्ली अब मेरा परिवार है। मैं एक आदमी की तकलीफ को समझता हूं, क्योंकि मैं कुछ साल पहले आप जैसा ही था। मुझे पता है कि एक आम आदमी को उन समस्याओं का सामना करना पड़ता है जब उसे महीने के अंत में बिजली और पानी के बिलों का भुगतान करना पड़ता है। मैं जानता हूं कि उसके सामने क्या समस्याएं हैं, जब उसे अपने बच्चों की स्कूल फीस का भुगतान करना होता है। मैं उसका दर्द जानता हूं जब उसे परिवार के एक बीमार व्यक्ति का इलाज कराने के लिए पैसों का बंदोबस्त करना पड़ता है।
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