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जोधपुर में पर्यवेक्षक की मौजूदगी में भिड़े कांग्रेस नेता : जिलाध्यक्ष चयन बैठक में हंगामा, एक-दूसरे पर लगाए आरोप

हंगामे के बाद जब बैठक पुनः शुरू हुई, तो सूरसागर से कांग्रेस प्रत्याशी रह चुके शहजाद खान ने कहा, “हमारे यहां एक लाइन का प्रस्ताव रखने की परंपरा रही है। उसी परंपरा को जारी रखते हुए जिलाध्यक्ष के चयन का अधिकार आलाकमान को सौंप देना चाहिए।”
उनके इस सुझाव पर कुछ नेताओं ने सहमति जताई, लेकिन पायलट समर्थक खेमे ने इस प्रस्ताव का विरोध किया।
सचिन पायलट समर्थक राजेश सारस्वत और राजेश मेहता ने कहा कि जिलाध्यक्ष का चयन “एकतरफा” तरीके से नहीं होना चाहिए। उन्होंने पारदर्शी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुनाव कराने की मांग रखी। इससे माहौल फिर से गरमा गया और बैठक में मौजूद नेताओं के बीच तीखी बहस छिड़ गई।
कार्यक्रम का उद्देश्य संगठन को मजबूत करने और निचले स्तर से फीडबैक जुटाने का था, मगर बैठक में नेताओं की सार्वजनिक नोकझोंक ने पार्टी की आंतरिक खींचतान और अनुशासनहीनता को उजागर कर दिया। पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “जब नेता आपस में ही भिड़ जाएंगे, तो कार्यकर्ताओं में एकजुटता कैसे आएगी? संगठन सृजन का यह अभियान फीडबैक से ज्यादा शक्ति परीक्षण बनता जा रहा है।”
जोधपुर कांग्रेस लंबे समय से गुटबाजी से जूझ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का गढ़ माने जाने वाले इस शहर में कई गुट सक्रिय हैं — जिनमें गहलोत समर्थक, पायलट समर्थक और स्थानीय नेताओं के छोटे-छोटे गुट शामिल हैं।नए जिलाध्यक्ष के चयन को लेकर इन गुटों में नेतृत्व संघर्ष तेज है। हर गुट चाहता है कि उसका प्रतिनिधि जिलाध्यक्ष बने ताकि आगामी विधानसभा और निकाय चुनावों में टिकट वितरण और स्थानीय संगठन पर नियंत्रण रहे।
बैठक के बाद पर्यवेक्षक सुशांत मिश्रा ने अनुशासनहीनता पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि “संगठन निर्माण प्रक्रिया में अनुशासन सर्वोपरि है। नेताओं को मतभेदों को संवाद से सुलझाना चाहिए, न कि सार्वजनिक मंच पर टकराव दिखाना।”
कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान में पार्टी संगठन को नए सिरे से खड़ा करने के लिए ‘संगठन सृजन अभियान’ शुरू किया है। इसके तहत जिलों में कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों से फीडबैक लेकर नए जिला और शहर अध्यक्षों की नियुक्ति की जा रही है। पार्टी चाहती है कि आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले मजबूत संगठनात्मक ढांचा तैयार किया जाए।
हालांकि, जोधपुर की यह घटना यह संकेत देती है कि जमीनी स्तर पर पार्टी एकजुट नहीं है। फीडबैक की प्रक्रिया संवाद का मंच बनने के बजाय वर्चस्व की जंग में तब्दील होती जा रही है।
जोधपुर में गहलोत समर्थक नेताओं का नेटवर्क मजबूत है, जबकि पायलट खेमे ने हाल के महीनों में संगठन में सक्रियता बढ़ाई है। स्थानीय नेता प्रीतम शर्मा को गहलोत खेमे का करीबी माना जाता है, जबकि राजेश रामदेव और राजेश सारस्वत को पायलट समर्थक बताया जाता है। यही वजह है कि आज का विवाद “व्यक्तिगत नहीं बल्कि खेमे की राजनीति” के रूप में देखा जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, बैठक का वीडियो और रिपोर्ट प्रदेश नेतृत्व को भेज दी गई है। आलाकमान इस पर गंभीरता से विचार कर सकता है, क्योंकि संगठन सृजन अभियान का मकसद कार्यकर्ताओं में भरोसा और अनुशासन लाना था, लेकिन जोधपुर की घटना ने इसका उल्टा असर दिखाया है।
जोधपुर की यह घटना न सिर्फ स्थानीय स्तर की गुटबाजी को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कांग्रेस के भीतर नेतृत्व चयन की प्रक्रिया कितनी संवेदनशील और विवादास्पद हो चुकी है।
पार्टी को अब यह तय करना होगा कि वह “लोकतांत्रिक चयन” की दिशा में बढ़ेगी या “आलाकमान की पसंद” को अंतिम मानेगी।
दोनों रास्तों में से कोई भी आसान नहीं है — क्योंकि जोधपुर जैसी घटनाएं बताती हैं कि कांग्रेस में संगठन निर्माण से पहले अनुशासन निर्माण की जरूरत कहीं ज्यादा है।
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