Chhattisgarh Rajyotsav 2024: Three weavers of Chandrapur awarded state decoration, traditional Kosa handloom art gets recognition-m.khaskhabar.com
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Dec 11, 2024 5:12 pm
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छत्तीसगढ़ राज्योत्सव 2024 : चंद्रपुर के तीन बुनकरों को राज्य अलंकरण सम्मान, पारंपरिक कोसा हथकरघा कला को मिली पहचान

khaskhabar.com : बुधवार, 06 नवम्बर 2024 5:24 PM (IST)
छत्तीसगढ़ राज्योत्सव 2024 : चंद्रपुर के तीन बुनकरों को राज्य अलंकरण सम्मान, पारंपरिक कोसा हथकरघा कला को मिली पहचान
सक्ती। छत्तीसगढ़ राज्य के स्थापना दिवस पर आयोजित राज्य अलंकरण सम्मान समारोह 2024 में सक्ती जिले के चंद्रपुर नगर के तीन प्रख्यात बुनकरों – पन्नालाल देवांगन, बहोरी लाल देवांगन, और पुरुषोत्तम देवांगन – को राज्य अलंकरण सम्मान प्रदान किया गया। इस सम्मान से चंद्रपुर नगर की पारंपरिक कोसा हथकरघा कला को नई पहचान और प्रतिष्ठा मिली है। सम्मान मिलने पर न केवल इन बुनकरों बल्कि उनके परिवारों में भी खुशी और गर्व का माहौल देखा जा रहा है।


छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के इस विशेष अवसर पर राज्य की कला एवं सेवा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले विभूतियों को सम्मानित किया जाता है। इस वर्ष, चंद्रपुर नगर के तीन कलाकारों को बुनकर श्रेणी में इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाज़ा गया है। यह पहली बार है जब एक ही नगर से तीन कलाकारों को एक साथ यह सम्मान मिला है, जो पूरे सक्ती जिले के लिए गर्व का विषय है। चंद्रपुर के देवांगन मोहल्ले में बुनकर समाज की एक समृद्ध बस्ती है, जहाँ 500 से अधिक परिवार आज भी पारंपरिक हथकरघा के माध्यम से कोसा वस्त्र बुनाई का कार्य कर रहे हैं। यहाँ पन्नालाल, बहोरी लाल और पुरुषोत्तम देवांगन जैसे बुनकर इस कला को संजोए हुए हैं और इसे नई पीढ़ी तक पहुँचा रहे हैं।

तीनों बुनकरों का कहना है कि यह कला उनके परिवार में पीढ़ियों से चली आ रही है और उन्होंने बचपन से ही इसे सीखा है। पहले यह उनका जीविकोपार्जन का साधन था, लेकिन अब राज्य शासन द्वारा मिले प्रोत्साहन से उन्हें कला के लिए एक मंच और सम्मान प्राप्त हो रहा है। देवांगन बुनकर समाज इस हस्तकला में अपनी जिंदगी के रंग भी बुन रहे हैं। उनके द्वारा बनाए गए वस्त्रों में न केवल हुनर बल्कि उनके आपसी प्रेम और पारिवारिक सद्भाव की झलक भी देखी जा सकती है।

तीनों बुनकरों ने कम उम्र में अपनी पढ़ाई छोड़कर अपने पैतृक व्यवसाय को अपनाया था। कई वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद यह सम्मान प्राप्त कर उन्होंने अपने कार्य और धरोहर को सम्मान दिलाया है। यह उपलब्धि न केवल उनके लिए गर्व का विषय है, बल्कि अन्य बुनकरों के लिए भी प्रेरणा साबित होगी और छत्तीसगढ़ की पारंपरिक कोसा हथकरघा कला को एक नई पहचान मिलेगी।

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