अस्पतालों में बिना ज़रूरत के बढ़ते सीज़ेरियन केस

सीज़ेरियन अपने आप में ग़लत नहीं है, लेकिन जब यह व्यावसायिक फायदे के लिए या बिना ठोस मेडिकल वज़ह के किया जाता है, तब यह चिंता का विषय बन जाता है। सही जागरूकता और जिम्मेदारी से इसका उपयोग होना चाहिए। पिछले कुछ सालों में भारत सहित कई देशों में सीज़ेरियन की दर तेजी से बढ़ी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, केवल 10-15% मामलों में सीज़ेरियन आवश्यक होता है, लेकिन कई देशों में यह दर 50% या उससे अधिक हो चुकी है। भारत में कई निजी अस्पतालों में यह दर 50-80% तक देखी गई है।
नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के निजी अस्पतालों में सीज़ेरियन डिलीवरी की दर 40-50% तक पाई गई, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह लगभग 20-25% थी। स्वास्थ्य बीमा योजना और जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम जैसी योजनाओं में बिना आवश्यकता के मरीजों की सर्जरी कर दी जाती है, क्योंकि ऐसी योजनाओं में या तो प्रोत्साहन राशि मिलती है, या फिर बीमा कंपनी को लाभ होता है। इनमें सिजेरियन, हार्निया, गॉलब्लेडर, अपेंडिक्स आदि से सम्बंधित मामले अधिक हैं। यह दुखद है, क्योंकि ऐसे मामलों में सबसे ज़्यादा शोषण गर्भवती महिलाओं का होता है।
सीज़ेरियन डिलीवरी का ख़र्च सामान्य डिलीवरी से 2-5 गुना अधिक होता है, जिससे अस्पतालों को अधिक मुनाफा होता है। नार्मल डिलीवरी में घंटों का समय लग सकता है, जबकि सीज़ेरियन एक तय समय में पूरा किया जा सकता है, जिससे अस्पतालों और डॉक्टरों को कम समय में अधिक डिलीवरी करने का मौका मिलता है। कुछ डॉक्टर निजी अस्पतालों में अपनी सुविधा के अनुसार डिलीवरी शेड्यूल करना पसंद करते हैं। कुछ महिलाओं को लेबर पेन का इतना डर होता है कि वे ख़ुद सीज़ेरियन करवाने के लिए तैयार हो जाती हैं। कई बार मरीजों को डराकर यह बताया जाता है कि बच्चा खतरे में है, जिससे वे सीज़ेरियन के लिए मजबूर हो जाती हैं। कई मामलों में सीज़ेरियन ज़रूरी होता है, जैसे: बच्चे की पोज़िशन सही न हो, जैसे ब्रीच पोज़िशन।
डिलीवरी के दौरान जटिलताएँ हो जाएँ, जैसे प्लेसेंटा प्रीविया, गर्भनाल का फँसना। माँ को गंभीर स्वास्थ्य समस्या हो, जैसे हाई बीपी, डायबिटीज, हृदय रोग। बच्चे को ऑक्सीजन की कमी हो और तुरंत डिलीवरी ज़रूरी हो। पहले भी सीज़ेरियन हो चुका हो और नार्मल डिलीवरी सुरक्षित न हो। लेकिन जब बिना किसी ठोस मेडिकल वज़ह के सिर्फ़ पैसे कमाने के लिए सीज़ेरियन किया जाए, तो यह नैतिक रूप से ग़लत है। कई प्राइवेट अस्पताल सीज़ेरियन को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि यह जल्दी हो जाता है और अधिक ख़र्च आता है।
महिलाओं का डर और जागरूकता की कमी के चलते कई महिलाएँ दर्द से बचने के लिए सीज़ेरियन चुन लेती हैं, जबकि नार्मल डिलीवरी अधिक लाभदायक होती है। महिलाओं को इस बारे जागरूक किया जाए, ताकि वे नार्मल डिलीवरी को प्राथमिकता दें। डॉक्टर्स को ज़िम्मेदारी से काम करना चाहिए, सिर्फ़ ज़रूरत पड़ने पर ही सीज़ेरियन करना चाहिए। प्राकृतिक तरीकों को बढ़ावा दिया जाए, जैसे गर्भावस्था के दौरान योग और सही डाइट ताकि नार्मल डिलीवरी आसान हो सके। इन सबके साथ-साथ सरकार को सख्ती से नियम लागू करने चाहिए, ताकि अनावश्यक सीज़ेरियन कम हों। नार्मल डिलीवरी को प्राथमिकता दें, जब तक कि मेडिकल कारण से सीज़ेरियन ज़रूरी न हो। गर्भावस्था के दौरान योग, सही खान-पान और व्यायाम करें, ताकि नार्मल डिलीवरी की संभावना बढ़े। अस्पतालों को अपने सीज़ेरियन और नार्मल डिलीवरी की दरें सार्वजनिक करनी चाहिए।
महिलाओं को सीज़ेरियन की सिफ़ारिश मिलने पर दूसरे डॉक्टर से सलाह लेने की आदत डालनी चाहिए। सरकार को निजी अस्पतालों में अनावश्यक सीज़ेरियन रोकने के लिए सख्त नियम बनाने चाहिए। महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान सही जानकारी दी जानी चाहिए ताकि वे डॉक्टर के निर्णय को समझ सकें और सवाल पूछने में हिचकिचाएँ नहीं। अस्पतालों को नार्मल डिलीवरी को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहन दिया जाए।
सिजेरियन डिलीवरी के बढ़ते मामलों पर अंकुश लगाने के लिए तेलंगाना के एक जिले ने तीन मिनट की एक लघु फ़िल्म बनाई है, 'सीजेरियन ला कू कथेरेधम' (आइए सिजेरियन डिलीवरी को कम करें)। दर्द से बचने के लिए बहुत-सी महिलाएँ नॉर्मल डिलीवरी की जगह सीजेरियन का विकल्प चुनतीं हैं, जो ग़लत है। सीज़ेरियन तभी सही है जब यह माँ और बच्चे की सुरक्षा के लिए ज़रूरी हो। अनावश्यक सर्जरी से बचना चाहिए क्योंकि यह शारीरिक और मानसिक रूप से माँ के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
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