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बूंदी जिला जज ने दिए गलत ढंग से NOC जारी करने वाले आबकारी निरीक्षक पर कार्रवाई करने के निर्देश
- विधि संवाददाता-
बूंदी। जब्तशुदा शराब को सुपुर्दगी पर दिए जाने के मामले में गलत ढंग से एनओसी जारी करने पर जिला जज दिनेश कुमार गुुप्ता ने आबकारी निरीक्षक के संदिग्ध आचरण की जांच कर आवश्यक कानूनी कार्यवाही करने के आदेश दिए हैं। आदेश की प्रति आबकारी आयुक्त उदयपुर और मुख्य सचिव को भी भेजी गई है। साथ ही आबकारी आयुक्त से अपेक्षा की है वह आबकारी निरीक्षक के खिलाफ की गई कार्रवाई से 6 मार्च, 2024 तक अदालत को अवगत कराए जाने की अपेक्षा की गई है। इसके साथ ही जिला अदालत ने शराब ठेकेदार अजय पुत्र मोहनलाल की निगरानी याचिका सारहीन और अनावश्यक तंग करने वाली मानते हुए 10,000 रुपए की कॉस्ट के साथ खारिज कर दी। कॉस्ट की राशि शराब ठेकेदार को जिला विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करानी होगी।
प्रकरण के तथ्यों के मुताबिक बूंदी पुलिस ने 24 अक्टूबर, 2023 को रामगंज बालाजी में कंचन होटल के पास शराब ठेकेदार के लाइसेंसशुदा परिसर के पास वाले स्थान से भारी मात्रा में अंग्रेजी और देशी शराब जब्त की थी। मौके से दो लोगों को भी गिरफ्तार किया गया था। इस शराब को ठेकेदार अजय ने अपनी लाइसेंसशुदा बताते हुए सुपुर्दगी पर लेने के लिए अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी लगाई थी। जिसे एसीजेएम कोर्ट ने क्षेत्राधिकार के बाहर मानते हुए खारिज कर दिया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए ठेकेदार अजय ने जिला अदालत में निगरानी याचिका प्रस्तुत की थी।
मामले की सुनवाई के दौरान ठेकेदार के वकील धनराज प्रजापत ने अदालत को बताया कि ठेकेदार को पहले वर्ष 2022-23 के लिए जो लाइसेंस जारी किया गया था, उसमें दुकान परिसर का साइज 12 गुणा 20 फीट का एरिया लिखा था। लेकिन, वर्ष 2023-24 लाइसेंस रिन्युअल के समय साइट प्लान में गलती से एरिया 12 गुणा 15 अंकित हो गया। जबिक वह 12 गुणा 20 फुट के परिसर में ही दुकान चला रहा है। इस तरह यह लाइसेंसशुदा वैध शराब है जिसे पुलिस ने मनमाने ढंग से जब्त किया है।
वकील का यह भी कहना था कि जब किसी वस्तु को आपराधिक प्रकरण में जब्त करने के बाद उसकी सूचना संबंधित कोर्ट को दे दी जाती है तो उसे सुपुर्दगी पर देने का अधिकार उस न्यायालय का हो जाता है। इस तरह सुपुर्दगी की अर्जी खारिज करके अधीनस्थ अदालत ने कानूनी भूल की है।
इस दौरान आबकारी निरीक्षक का लोक अभियोजक को संबोधित एक पत्र भी प्रस्तुत किया गया। जिसमें लिखा था कि आबकारी विभाग ने इस प्रकरण में अपनी कार्यवाही पूरी कर ली है। इसलिए अगर जब्तशुदा शराब ठेकेदार को सुपुर्दगी पर दी जाती है तो आबकारी विभाग को इसमें कोई आपत्ति नहीं है। वहीं विशेष लोक अभियोजक योगेश यादव ने निगरानीकार के वकील के तर्कों का विरोध किया।
उन्होंने अधीनस्थ कोर्ट के आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि आबकारी निरीक्षक का उनके नाम संबोधित जो पत्र पेश किया गया है, वह वास्तव में कभी उनके कार्यालय को प्राप्त ही नहीं हुआ। इसके अलावा शराब ठेकेदार के लाइसेंसशुदा परिसर से सटे विशेष रूप से डिजाइन किए गए 5 गुणा 12 फुट के परिसर से जब्त की गई है। जो लाइसेंसशुदा शराब नहीं मानी जा सकती। बल्कि अनाधिकृत परिसर में अवैध भंडारण होने से यह आपराधिक और दंडनीय अपराध है। आबकारी अधिनियम की धारा 69 (2- बी के तहत ऐसी शराब को सुपुर्दगी पर दिए जाने का मजिस्ट्रेट के न्यायालय को अधिकारी प्राप्त नहीं है। दूसरे यह शराब उपेंद्र और दयाराम के कब्जे से बरामद हुई है, जो ना तो ठेकेदार अजय के कर्मचारी हैं और ना ही उनके नाम किसी तरह का लाइसेंस जारी हुआ है। उन दोनों की जमानत अर्जी भी कोर्ट से खारिज हो चुकी है।
दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद जिला जज ने माना कि जब्तशुदा शराब ठेकेदार के लाइसेंसशुदा परिसर नहीं बल्कि विशेष रूप से डिजाइन 5 गुणा 12 फुट के परिसर से जब्त हुई है। इसे लाइसेंशुदा नहीं माना जा सकता। आबकारी अधिनियम की धारा 69 (2- बी के तहत जब्तशुदा शराब को सुपुर्दगी पर छोड़ने का अधिकारी केवल जिला आबकारी अधिकारी बूंदी को ही प्राप्त है।
इसी तरह आबकारी निरीक्षक की ओर से लोक अभियोजक को संबोधित 23 जनवरी, 2024 का पत्र भी अनधिकृत तौर पर ठेकेदार से मिलीभगत करके लिखा हुआ लगता है। इसकी गहन जांच किए जाने की जरूरत है। क्योंकि आबकारी अधिनियम की धारा 69 (2- बी) के प्रावधानों के तहत ऐसा पत्र केवल जिला आबकारी अधिकारी बूंदी या उससे उच्चतर अधिकारी द्वारा ही लिखा जा सकता था। यह मामला गंभीर होने के कारण आबकारी आयुक्त उदयपुर और मुख्य सचिव को अवगत कराया जाना आवश्यक है।
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