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बुंदेलखंड : कोरोनावायरस के कारण होली की चौपालें सूनी, फगुआ गीत गुम!
बांदा। होलिका दहन से पूर्व गांवों की चौपालों में होरियारों की जमात लगा करती थी और फगुनइया तोरी अजब बहार, सडक़ मा नीबू लगा दे बालमा जैसे बुंदेली फगुआ (होली गीत) गाए जाते थे। लेकिन इस साल कोरोनावायरस का डर शहर के अलावा देहातों में भी इस कदर छाया हुआ है कि न चौपालें सज रही हैं और न ही फगुआ ढोलक की थाप ही सुनाई दे रही है।
बुंदेलखंड के गांव-देहात में पुराना रिवाज रहा कि होलिका दहन के एक सप्ताह पहले गांवों में होरियारों की चौपालें सज जाया करती थीं और खेती-किसानी के काम से मुक्त होकर शाम को किसान इन चौपालों में फगुनइया तोरी अजब बहार सडक़ मा नीबू लगा दे बालमा जैसे फगुआ (होली) गीत गाकर दस-बीस की संख्या में होरियारे एक-दूसरे को मात देने की कोशिश किया करते थे। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होता दिखाई दे रहा है।
बड़े बुजुर्ग होरियारों का कहना है कि भीड़ से कोरोना बीमारी फैलने का डर है, इसलिए कोई घरों से बाहर निकलने को तैयार नहीं है। बांदा जिले के तेंदुरा गांव के बुजुर्ग होरियार सुधानी बाबा (75) अपनी बोल-चाल की बानी (भाषा) में बताते हैं कि झुंड में बैठने से कोउ-रोना बीमारी फैलती है। इस बीमारी से परिवार में कोई रोने वाला नहीं बचता है।
इसलिए यह होली बिना फगुआ गीत गाए ही अपने-अपने घरों में चुपचाप मनाएंगे। इसी गांव की महिला होरियार दशोदिया कहती है, डॉक्टरनी बहनजी आई थीं और कह रही थीं कि एक-दूसरे के पास न बैठना और न छूना, नहीं तो कोउ-रोना (कोरोनावायरस) बीमारी पकड़ लेगी, जिसका इलाज नहीं होता। इसलिए हम अपने काम से मतलब रखते हैं।
बुंदेलखंड के गांव-देहात में पुराना रिवाज रहा कि होलिका दहन के एक सप्ताह पहले गांवों में होरियारों की चौपालें सज जाया करती थीं और खेती-किसानी के काम से मुक्त होकर शाम को किसान इन चौपालों में फगुनइया तोरी अजब बहार सडक़ मा नीबू लगा दे बालमा जैसे फगुआ (होली) गीत गाकर दस-बीस की संख्या में होरियारे एक-दूसरे को मात देने की कोशिश किया करते थे। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होता दिखाई दे रहा है।
बड़े बुजुर्ग होरियारों का कहना है कि भीड़ से कोरोना बीमारी फैलने का डर है, इसलिए कोई घरों से बाहर निकलने को तैयार नहीं है। बांदा जिले के तेंदुरा गांव के बुजुर्ग होरियार सुधानी बाबा (75) अपनी बोल-चाल की बानी (भाषा) में बताते हैं कि झुंड में बैठने से कोउ-रोना बीमारी फैलती है। इस बीमारी से परिवार में कोई रोने वाला नहीं बचता है।
इसलिए यह होली बिना फगुआ गीत गाए ही अपने-अपने घरों में चुपचाप मनाएंगे। इसी गांव की महिला होरियार दशोदिया कहती है, डॉक्टरनी बहनजी आई थीं और कह रही थीं कि एक-दूसरे के पास न बैठना और न छूना, नहीं तो कोउ-रोना (कोरोनावायरस) बीमारी पकड़ लेगी, जिसका इलाज नहीं होता। इसलिए हम अपने काम से मतलब रखते हैं।
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