Advertisement
बांस की खेती बदल सकती है पश्चिमी राजस्थान की तस्वीर
कृषि महाविद्यालय बीकानेर ने "शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बांस: एक प्रारंभिक प्रयास" के तहत इस परियोजना को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को प्रस्तुत किया था। इस परियोजना को भारत सरकार द्वारा स्वीकृत किया गया, जिसके तहत नवसारी कृषि विश्वविद्यालय और देहरादून के भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान से बांस के पौधे मंगवाए गए।
कुलपति डॉ. अरुण कुमार ने बताया कि इस 47 लाख के प्रोजेक्ट का उद्देश्य बांस की वृद्धि और उत्पादन का अध्ययन करना है, विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान की जलवायु में। इसके साथ ही यह भी देखा जाएगा कि पौधों के बीच की दूरी क्या होनी चाहिए ताकि उनकी ग्रोथ अधिकतम हो सके और किसानों की आय में वृद्धि हो।
डॉ. कुमार का मानना है कि बांस की खेती न केवल आर्थिक दृष्टि से फायदेमंद होगी, बल्कि यह पर्यावरण को भी सहेजने में सहायक होगी। बांस से बने उत्पादों जैसे चटाई, टोकरी, खिलौने, और फर्नीचर से किसानों को अतिरिक्त आय हो सकती है। इसके अलावा, बांस जल स्तर को बढ़ाने और मिट्टी की वाटर होल्डिंग क्षमता में सुधार करने में भी मदद करता है।
कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. पीके यादव ने बताया कि राजस्थान में बांस की खेती कोई नई बात नहीं है, लेकिन पश्चिमी राजस्थान की जलवायु में किस प्रजाति की बांस आसानी से उगाई जा सकती है, इसका अध्ययन किया जा रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि बांस एक बहुउपयोगी और पर्यावरण-अनुकूल पौधा है, जिसे बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है।
डॉ. यादव ने बताया कि तीन वर्षीय कार्ययोजना के तहत बेहतर प्रदर्शन करने वाली बांस प्रजातियों का चयन किया जाएगा और उनका बड़े पैमाने पर गुणन किया जाएगा। इस प्रक्रिया में किसानों को प्रशिक्षण और प्रदर्शन इकाइयां स्थापित करने की भी योजना है।
यह बांस परियोजना न केवल शुष्क पारिस्थितिकी तंत्र में बांस की खेती की संभावनाओं को तलाशने का एक प्रयास है, बल्कि यह किसानों की आय और क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में सुधार लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। यदि यह योजना सफल होती है, तो यह पश्चिमी राजस्थान के किसानों के लिए एक नई आर्थिक संभावनाओं का द्वार खोल सकती है।
ये भी पढ़ें - अपने राज्य / शहर की खबर अख़बार से पहले पढ़ने के लिए क्लिक करे
Advertisement
Advertisement
बीकानेर
राजस्थान से
सर्वाधिक पढ़ी गई
Advertisement