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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रीता बहुगुणा जोशी के खिलाफ एफआईआर की रद्द
प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भाजपा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत दर्ज एफआईआर को खारिज कर दिया और इसे दुर्भावनापूर्ण करार दिया। भाजपा सांसद के वकील एस.डी. कौटिल्य ने कहा कि शिव बाबू गुप्ता नाम के एक व्यक्ति ने जोशी और चार अन्य के खिलाफ 16 जनवरी, 2008 को एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया कि इलाहाबाद के मेयर (1995 से 2000 तक) के अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने चार अन्य लोगों के साथ मिलीभगत की और अपने निहित स्वार्थ के लिए जॉर्ज टाउन में स्थित नगर टाउन की संपत्ति का निपटान किया।
जोशी द्वारा दायर एक रिट याचिका की अनुमति देते हुए, न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति सैयद वाइज मियां की खंडपीठ ने कहा, वाद-विवाद एफआईआर से यह स्पष्ट है कि यह राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए उठाया गया कदम है। रिट याचिका में लगाए गए आरोपों पर कोई सामग्री रिकॉर्ड में नहीं रखी गई है।
बताए गए कारणों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने 16 जनवरी, 2008 की प्राथमिकी को धारा 120बी (साजिश) 420 (धोखाधड़ी) और थाना सिविल लाइंस, इलाहाबाद जिले में दर्ज भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के तहत रद्द कर दिया।
उपरोक्त निदेशरें को पारित करते हुए, अदालत ने आगे कहा, एफआईआर प्रतिशोध से भरा एक दुर्भावनापूर्ण कार्य है। शिकायतकर्ता को वास्तविकता से कोई मतलब नहीं है। वह इस मुद्दे को उठाने के लिए दशकों तक सोया रहा। उनकी तथाकथित समिति ने इस तथ्य पर गौर करने का भी प्रयास नहीं किया कि कथित अपराधों की जांच सीबीआई पहले ही कर चुकी है, जिन्हें याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी नहीं मिला था।
--आईएएनएस
जोशी द्वारा दायर एक रिट याचिका की अनुमति देते हुए, न्यायमूर्ति सुनीत कुमार और न्यायमूर्ति सैयद वाइज मियां की खंडपीठ ने कहा, वाद-विवाद एफआईआर से यह स्पष्ट है कि यह राजनीतिक हिसाब चुकता करने के लिए उठाया गया कदम है। रिट याचिका में लगाए गए आरोपों पर कोई सामग्री रिकॉर्ड में नहीं रखी गई है।
बताए गए कारणों को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने 16 जनवरी, 2008 की प्राथमिकी को धारा 120बी (साजिश) 420 (धोखाधड़ी) और थाना सिविल लाइंस, इलाहाबाद जिले में दर्ज भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के प्रावधानों के तहत रद्द कर दिया।
उपरोक्त निदेशरें को पारित करते हुए, अदालत ने आगे कहा, एफआईआर प्रतिशोध से भरा एक दुर्भावनापूर्ण कार्य है। शिकायतकर्ता को वास्तविकता से कोई मतलब नहीं है। वह इस मुद्दे को उठाने के लिए दशकों तक सोया रहा। उनकी तथाकथित समिति ने इस तथ्य पर गौर करने का भी प्रयास नहीं किया कि कथित अपराधों की जांच सीबीआई पहले ही कर चुकी है, जिन्हें याचिकाकर्ता के खिलाफ कुछ भी नहीं मिला था।
--आईएएनएस
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