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सरकार बनने के बाद 99 किसान कर्ज से परेशान होकर कर चुके आत्महत्या

khaskhabar.com : शनिवार, 08 जुलाई 2017 5:19 PM (IST)
सरकार बनने के बाद  99 किसान कर्ज से परेशान होकर कर चुके आत्महत्या
रवि पाठक
कपूरथला। किसानों का कर्ज पल-पल बढ़ रहा है और वे तिल-तिल मरने को मजबूर हैं। पूर्व अकाली-भाजपा सरकार के सत्ता से बाहर होने के बाद भी किसानों की खुदकशी का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। कांग्रेस सरकार ने 2 लाख रुपये तक का कर्ज माफ करने की घोषणा कर बजट में पहली किस्त के तौर पर 1500 करोड़ रुपये की राशि का प्रावधान भी कर दिया, लेकिन किसान इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं।

आलम यह है कि सरकार बनने के बाद अब तक 99 किसान कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर चुके हैं। इतना ही नहीं 22 किसान तो कर्ज माफी की घोषणा के बाद ही मौत को गले लगा चुके हैं। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह ने एक ओर जहां किसानों से ऐसा कदम न उठाने की अपील की है, वहीं आढ़तियों को भी कहा है कि वे किसानों से ज्यादा ब्याज न वसूलें। उम्मीद है कि इस अपील के बाद किसान आत्महत्या जैसा कदम नहीं उठाएंगे।

देश में भले ही पंजाब के किसानों को सबसे आधुनिक को हिम्मत वाला माना जाता हो, लेकिन कर्ज के बोझ तले दबे यहां के किसानों की हिम्मत अब जवाब दे रही है। कांग्रेस किसानों की कर्ज माफी को लेकर चुनाव मैदान में आई। सरकार बनाकर 100 दिन के भीतर 1500 करोड़ रुपये के कर्ज माफी का ऐलान किया। इसके बावजूद 21 दिनों में 22 किसानों ने जान दे दी। यहीं पर सवाल खड़ा होता है क्या किसान कर्ज के बोझ तले ही आत्महत्या करता है? सरकार 2 लाख रुपये तक कर्ज माफी का वादा भी करती है, इसके बावजूद किसान ऐसा कदम क्यों उठा रहे हैं।

कर्ज को लेकर न तो पंजाब सरकार और न ही किसी सरकारी एजेंसी के पास सही आंकड़े हैं। पंजाब सरकार की ओर से बनाई गई टी. हक कमेटी ने जो आंकड़े जुटाए हैं, उसके अनुसार को-ऑपरेटिव व राष्ट्रीयकृत बैंक से कर्ज लेने वाले छोटे किसानों पर करीब 14000 करोड़ रुपये का कर्ज है। यह कर्ज 4 लाख किसानों पर है, जो दस एकड़ से कम जमीन पर खेती कर रहे हैं। चार लाख किसानों पर तो 14000 करोड़ का कर्ज है। इतना ही कर्ज 36000 बड़े किसानों पर है। यह वो किसान हैं, जो 50 एकड़ से ज्यादा जमीन पर खेती कर रहे हैं।कर्ज केवल बैंकों का ही नहीं बल्कि आढ़तियों का भी है।

कहा जाता है कि 35000 करोड़ रुपये का कर्ज केवल आढ़तियों का ही है। विधानसभा से लेकर राजनीतिक बयानबाजी में बार-बार यह बात उठती हैं कि किसान बैंकों के कर्ज से ज्यादा आढ़तियों के कर्ज के तले तब कर आत्महत्या करते है। क्योंकि आढ़ती का ब्याज बैंकों के मुकाबले कई गुणा ज्यादा होता है। सरकारें आढ़तियों को बीच से हटाने की बात तो करती हैं, लेकिन इस चेन को तोडऩे की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमदिर सिंह ने आढ़तियों से मिलकर उन्हें ज्यादा ब्याज वसूलने का रुझान कम करने को कहा है।कांग्रेस सरकार की ओर से 10.25 लाख किसानों का 2 लाख तक का कर्ज माफ करने की घोषणा के बावजूद किसानों का आत्महत्या करना सवाल खड़ा करता है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह राज्य के करीब डेढ़ दर्जन किसान संगठनों से मुलाकात कर उनका भरोसा जीतने का प्रयास कर रहे हैं।

सरकार पहली बार कृषि बजट को 10,580 करोड़ से ऊपर ले गई है। कृषि सब्सिडी भी जारी की गई है। फसल खराब होने पर मुआवजा राशि को 8000 रुपये बढ़ा कर 12000 रुपये किया है। आत्महत्या क्यों..जिस स्तर पर आवाज जानी चाहिए थी, शायद यह वहां तक पहुंच ही नहीं पा रही है। अन्यथा किसान आत्महत्या नहीं करते। कुछ दिन पहले डेराबस्सी में एक किसान ने 3 लाख रुपये के कर्ज तले होने के कारण आत्महत्या कर ली, जबकि सरकार ने घोषणा की है कि 2 लाख रुपये तक का कर्ज पंजाब सरकार उठाएगी। फिर आत्महत्या क्यों?

कर्ज माफी से नहीं रुकेगी किसानों की आत्महत्या-कृषि अर्थ शास्त्री राम सिंहका कहना है कि कर्ज माफी से आत्महत्या नहीं रुक सकती। कर्ज माफी से समस्या का समाधान नहीं हो सकता, बल्कि समस्या बढ़ती है। जब किसान लोन लेता है और यह उम्मीद करता है कि राजनीति के कारण उसका कर्ज माफ हो जाएगा, तो वह कर्ज की अदायगी नहीं करता। राजनीति फायदे के लिए करदाताओं का पैसा किसानों को दे दिया जाता है, जबकि सब किसानों की स्थिति ऐसी नहीं होती कि वह कर्ज नहीं दे सकते। ऐसी व्यवस्था में जो किसान कर्ज अदायगी करते हैैं, वह सोचते हैैं कि वह कर्ज अदा न करते तो उन्हें भी फायदा हो जाता।

किसानों की आत्महत्या का कारण केवल कर्ज नहीं होता है। यह परिस्थितियों के कारण होता है और इसके कई कारण हैैं। एक आत्महत्या से इसे पूरे एक वर्ग के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। ऐसा नहीं है कि किसान कर्ज के कारण दबाव में नहीं हैं। हर केस में इसके अलग-अलग कारण निकलेंगे। समस्या के समाधान के लिए सही कदम उठाए जाएं। सरकारों को इसके लिए अपनी रिपोट्र्स दीं, लेकिन अमल नहीं हुआ। सरकार ने किसानों के कर्ज माफी के लिए 1500 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा है। जहां कर्ज 80 हजार करोड़ से अधिक का हो वहां 1500 करोड़ रुपये से क्या होगा। सरकार केवल दो लाख तक के लोन को माफ कर रही है। क्या कोई किसान केवल दो लाख के लिए आत्महत्या करता है?

नेशनल बैैंकों के कर्ज पर सरकार की कोई पॉलिसी नहीं है। आढ़तियों या फाइनेंसरों के कर्ज का भी कोई हल नहीं निकाला गया। यही किसानों पर सबसे ज्यादा दबाव डालते हैैं।समस्या का हल निकालने के लिए पूरे सूबे में एक व्यवस्था कायम करनी होगी। जिला स्तर पर कमेटियों का गठन हो, जिनका प्रमुख रिटायर्ड जज को बनाया जाए। एक प्रशासनिक अधिकारी व एक जनप्रतिनिधि को शामिल किया जाए। जो किसान कर्ज से परेशान हैैं, वे कर्ज माफी के लिए कमेटी के पास आवेदन करें।

कमेटी जांचेगी कि केस सही है या नहीं।किसान ने जो कर्ज लिया है, वह कहां इस्तेमाल किया है, यदि खेती में इस्तेमाल करने के बाद उसे नुकसान हुआ है, तो उसका सारा कर्ज भी माफ किया जा सकता है। इस कमेटी के पास कर्ज अदायगी व्यवस्था या कम या ज्यादा करने का भी अधिकार हो तो यह समस्या सुधर सकती है। जो किसान केवल कर्ज के कारण दबाव में होते हैैं, यदि उनके पास यह विकल्प होगा कि वह अपना केस कमेटी के समक्ष रखेंगे, तो उनकी समस्या का हल हो जाएगा।

कर्ज माफी की घोषणा के बाद 22 ने की खुदकशी-

20 जून जसविंदर सिंह, बठिंडा, 21 जून इंदरप्रीत सिंह, गुरदासपुर,-22 जून मनजीत सिंह, मानसा,23 जून जोगिंदर सिंह और दलबीर सिंह तरनतारन, 25 जून प्रभदयाल सिंह, बठिंडा और भोला सिंह बरनाला,27 जून जीवन सिंह बठिंडा, 28 जून सुखजिंदर सिंह, संगरूर और बूटा सिंह मानसा,1 जुलाई जसबीर सिंह गुरदासपुर और हरमीत सिंह अमृतसर, 2 जुलाई इकबाल सिंह जगराओं, हरजिंदर सिंह, मानसा और कर्मदीप सिंह,3 जुलाई गुरदेव सिंह फिरोजपुर, रणजीत सिंह, संगरूर व सुखविंदर सिंह, होशियारपुर, 4 जुलाई जगरूप सिंह तरनतारन, -किस जिले में कितने सुसाइड-मानसा 4,होशियारपुर 3,गुरदासपुर 3,बठिंडा 3,संगरूर 2,तरनतारन 3,मुक्तसर 1,बरनाला 1,लुधियाना 1,अमृतसर 1,फिरोजपुर 1 है।

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