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फिल्म समीक्षा : देखने व प्रशंसा के काबिल है मजा मा

—राजेश कुमार भगताणी
सितारे : माधुरी दीक्षित, गजराज राव, ऋत्विक भौमिक, सृष्टि श्रीवास्तव, बरखा सिंह
निर्माता : अमृतपाल सिंह बिंद्रा
निर्देशक : आनन्द तिवारी
कथा-पटकथा-संवाद : सुमित बथीजा
संगीतकार : गौरवदास गुप्ता, सौमिल शृंगारपुरे, सिद्धार्थ महादेवन, अनुराग शर्मा और द येलो डायरी
गीत : अनुराग शर्मा, प्रिया सरैया और राजन बत्रा
सम्पादन : संयुक्ता कजा
कैमरा-देबोजीत रे
ओटीटी प्लेटफार्म ने जहाँ कई सितारों को काम देने में सफलता प्राप्त की है वहीं दूसरी ओर उसने सिनेमाई क्षेत्र में परदे के पीछे काम करने वाले कई ऐसे युवा और उत्साही लोगों को मौका दिया है जिन्हें सिनेमाई परदे पर आने का मौका नहीं मिल पा रहा है। दर्शकों को जहाँ ओटीटी की बदौलत नया कंटेंट देखने को मिल रहा है वहीं इसके पीछे कई नए कथाकार व निर्देशक सामने आ रहे हैं। कल रात को ओटीटी प्लेटफार्म अमेजन प्राइम वीडियो पर माधुरी दीक्षित अभिनीत नई फिल्म मजा मा देखने का मौका मिला। फिल्म देखकर हैरानी हुई कि कभी जिस विषय पर बात करना भी अश्लीलता माना जाता था उस पर आज इतनी खूबसूरत फिल्म भी बनाई जा सकती है। अब तक समलैंगिकता को फिल्मों में हास्य के तौर पर पेश किया जाता रहा है लेकिन मजा मा पूरी तरह से इस विषय पर बनी अलग फिल्म है, जिसे पूरे पारिवारक माहौल के साथ आराम से देखा जा सकता है।
मजा मा फिल्म की कथा-पटकथा और संवाद सुमित बथीजा ने लिखे हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि उन्होंने हिम्मत करके बड़ा बोल्ड विषय लिया है और उस पर सोने पे सुहागा उन्होंने लेस्बियन की भूमिका में माधुरी दीक्षित को कास्ट किया है। कथा-पटकथा की सबसे बड़ी बात यह है कि देखते हुए दश्र्रक को इससे न तो घृणा होती है और न ही अटपटा लगता है। कथानक सुमित ने कथानक के सभी किरदारों के साथ इंसाफ किया है। न सिर्फ जस (ऋत्विक भौमिक) के परिवार अपितु ईशा (बरखा सिंह) के परिवारों के साथ छोटी-छोटी भूमिकाओं में नजर आने वाले किरदारों को भी उन्होंंने पूरा मौका दिया है। फिल्म के कई दृश्य दिल को छूते हैं और कहीं-कहीं पर मजबूत दिल वाले भी अपने को रूआंसा होने से रोक नहीं पाते हैं। पटकथा को वजनदार बनाने में संवादों ने अपनी अहमियत दर्शायी है।
माधुरी दीक्षित ने इस फिल्म के जरिये ओटीटी प्लेटफार्म पर डेब्यू किया है। बड़ा ही सशक्त और अविस्मरणीय प्रवेश है। उन्होंने पल्लवी की भूमिका को बेझिझक और समझदारी से निभाया है। बधाई हो से सिनेमाई दर्शकों में चर्चा का विषय बने गजराज राव ने यहाँ भी अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने लेस्बियन पत्नी के पति के किरदार को पूरी शिद्दत के साथ परदे पर उतारा है। उग्र तारा के रूप में सृष्टि श्रीवास्तव का काम सराहनीय है। ईशा के माता-पिता की भूमिका में शीबा चड्ढा और रजित कपूर का काम प्रशंसनीय है। अखरता है तो सिर्फ उनका अंग्रेजी में संवाद बोलने का लहजा, जिसे वे चाहकर भी पश्चिमी अंदाज में नहीं ला सके हैं।
निर्देशक के तौर पर आनन्द तिवारी ने प्रभावित किया है। इतने बोल्ड सब्जेक्ट को निर्देशित करने के लिए जितनी काबलियत की जरूरत थी उसे उन्होंने उसी के रूप में पेश किया है। कथानक के साथ-साथ उन्होंने माधुरी से जो भंगिमाएँ निकलवाई हैं वो काबिल-ए-तारीफ हैं।
कथा-पटकथा-संवाद, अभिनय और निर्देशक के क्षेत्र में जहां फिल्म प्रभावी है, वहीं संगीत और गीत के मामले में यह पिछड़ जाती है। विशेष रूप से फिल्म का संगीत कमजोर है। हालांकि संगीत को पांच संगीतकार ने तैयार किया है लेकिन एक भी गीत ऐसा तैयार नहीं हुआ है जो दर्शकों को याद रहता हो। हालांकि गीतों के बोल संगीत से ज्यादा अच्छे हैं। देबोजीत रे का कैमरा वर्क और संयुक्ता कजा का सम्पादन बेहतर है।
कुल मिलाकर मजा मा एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है। फिल्म के कथानक को परिपक्वता के साथ पेश किया गया है, जो अलग छाप छोड़ता है। हालांकि फिल्म का कमजोर पहलू इसका विषय है, जिसे सभी दर्शक स्वीकार नहीं करेंगे।
सितारे : माधुरी दीक्षित, गजराज राव, ऋत्विक भौमिक, सृष्टि श्रीवास्तव, बरखा सिंह
निर्माता : अमृतपाल सिंह बिंद्रा
निर्देशक : आनन्द तिवारी
कथा-पटकथा-संवाद : सुमित बथीजा
संगीतकार : गौरवदास गुप्ता, सौमिल शृंगारपुरे, सिद्धार्थ महादेवन, अनुराग शर्मा और द येलो डायरी
गीत : अनुराग शर्मा, प्रिया सरैया और राजन बत्रा
सम्पादन : संयुक्ता कजा
कैमरा-देबोजीत रे
ओटीटी प्लेटफार्म ने जहाँ कई सितारों को काम देने में सफलता प्राप्त की है वहीं दूसरी ओर उसने सिनेमाई क्षेत्र में परदे के पीछे काम करने वाले कई ऐसे युवा और उत्साही लोगों को मौका दिया है जिन्हें सिनेमाई परदे पर आने का मौका नहीं मिल पा रहा है। दर्शकों को जहाँ ओटीटी की बदौलत नया कंटेंट देखने को मिल रहा है वहीं इसके पीछे कई नए कथाकार व निर्देशक सामने आ रहे हैं। कल रात को ओटीटी प्लेटफार्म अमेजन प्राइम वीडियो पर माधुरी दीक्षित अभिनीत नई फिल्म मजा मा देखने का मौका मिला। फिल्म देखकर हैरानी हुई कि कभी जिस विषय पर बात करना भी अश्लीलता माना जाता था उस पर आज इतनी खूबसूरत फिल्म भी बनाई जा सकती है। अब तक समलैंगिकता को फिल्मों में हास्य के तौर पर पेश किया जाता रहा है लेकिन मजा मा पूरी तरह से इस विषय पर बनी अलग फिल्म है, जिसे पूरे पारिवारक माहौल के साथ आराम से देखा जा सकता है।
मजा मा फिल्म की कथा-पटकथा और संवाद सुमित बथीजा ने लिखे हैं। इसमें कोई दोराय नहीं कि उन्होंने हिम्मत करके बड़ा बोल्ड विषय लिया है और उस पर सोने पे सुहागा उन्होंने लेस्बियन की भूमिका में माधुरी दीक्षित को कास्ट किया है। कथा-पटकथा की सबसे बड़ी बात यह है कि देखते हुए दश्र्रक को इससे न तो घृणा होती है और न ही अटपटा लगता है। कथानक सुमित ने कथानक के सभी किरदारों के साथ इंसाफ किया है। न सिर्फ जस (ऋत्विक भौमिक) के परिवार अपितु ईशा (बरखा सिंह) के परिवारों के साथ छोटी-छोटी भूमिकाओं में नजर आने वाले किरदारों को भी उन्होंंने पूरा मौका दिया है। फिल्म के कई दृश्य दिल को छूते हैं और कहीं-कहीं पर मजबूत दिल वाले भी अपने को रूआंसा होने से रोक नहीं पाते हैं। पटकथा को वजनदार बनाने में संवादों ने अपनी अहमियत दर्शायी है।
माधुरी दीक्षित ने इस फिल्म के जरिये ओटीटी प्लेटफार्म पर डेब्यू किया है। बड़ा ही सशक्त और अविस्मरणीय प्रवेश है। उन्होंने पल्लवी की भूमिका को बेझिझक और समझदारी से निभाया है। बधाई हो से सिनेमाई दर्शकों में चर्चा का विषय बने गजराज राव ने यहाँ भी अपनी छाप छोड़ी है। उन्होंने लेस्बियन पत्नी के पति के किरदार को पूरी शिद्दत के साथ परदे पर उतारा है। उग्र तारा के रूप में सृष्टि श्रीवास्तव का काम सराहनीय है। ईशा के माता-पिता की भूमिका में शीबा चड्ढा और रजित कपूर का काम प्रशंसनीय है। अखरता है तो सिर्फ उनका अंग्रेजी में संवाद बोलने का लहजा, जिसे वे चाहकर भी पश्चिमी अंदाज में नहीं ला सके हैं।
निर्देशक के तौर पर आनन्द तिवारी ने प्रभावित किया है। इतने बोल्ड सब्जेक्ट को निर्देशित करने के लिए जितनी काबलियत की जरूरत थी उसे उन्होंने उसी के रूप में पेश किया है। कथानक के साथ-साथ उन्होंने माधुरी से जो भंगिमाएँ निकलवाई हैं वो काबिल-ए-तारीफ हैं।
कथा-पटकथा-संवाद, अभिनय और निर्देशक के क्षेत्र में जहां फिल्म प्रभावी है, वहीं संगीत और गीत के मामले में यह पिछड़ जाती है। विशेष रूप से फिल्म का संगीत कमजोर है। हालांकि संगीत को पांच संगीतकार ने तैयार किया है लेकिन एक भी गीत ऐसा तैयार नहीं हुआ है जो दर्शकों को याद रहता हो। हालांकि गीतों के बोल संगीत से ज्यादा अच्छे हैं। देबोजीत रे का कैमरा वर्क और संयुक्ता कजा का सम्पादन बेहतर है।
कुल मिलाकर मजा मा एक ऐसी फिल्म है जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है। फिल्म के कथानक को परिपक्वता के साथ पेश किया गया है, जो अलग छाप छोड़ता है। हालांकि फिल्म का कमजोर पहलू इसका विषय है, जिसे सभी दर्शक स्वीकार नहीं करेंगे।
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